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सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

#ब्रह्ममुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों #प्रात: काल उठने के बाद आवश्यक


*💥ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ?💥*
मित्रों, प्रात: काल उठने के बाद और स्नान से पूर्व जो आवश्यक विभिन्न कृत्य है,
शास्त्रों ने उनके लिये भी सुनियोजित विधि-विधान बताया गया है, गृहस्थ को अपने नित्य-कर्मों के अन्तर्गत स्नान से पूर्व के सभी कृत्य भी शास्त्र पद्धति से ही करने चाहियें, क्योंकि तभी वह अग्रिम षट्-कर्मों के करने का अधिकारी होता है, इसलिये यहाँ पर क्रमश: जागरण-कृत्य एवम् स्नान-पूर्व कृत्यों का निरूपण किया जा रहा है, जिसे आप अपना कर प्रात: को मंगलकारी बना सकते हैं।

ब्रह्म-मुहूर्त में जागना सभी भाई-बहनों को जरूरी है, सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटे पूर्व तक ही ब्रह्म मुहूर्त रहता है, ब्रह्म मुहूर्त में ही सभी को जग जाना चाहियें, इस समय के बाद तक सोना शास्त्र में निषिद्ध बताया गया है, हमारी गौरवशाली सनातनी परम्परा तो सही मायने में वैज्ञानिक मूल्यांकन पर खरी उतरती है, हमारे सभी आध्यात्मिक कृत्य विज्ञान से ओतप्रोत रहते हैं, आँखों के खुलते ही दोनों हाथों की हथेलियों को देखते हुये, इस श्लोक का पाठ करें।

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।।

हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, हाथ के मध्य में सरस्वती और हाथ के मूलभाग में ब्र्ह्मा जी निवास करते हैं, अत: प्रात: काल दोनों हाथों का अवलोकन करना चाहियें, अवलोकन का तात्पर्य है दर्शन, सुबह उठते ही माँ लक्ष्मीजी, माँ सरस्वतीजी और ब्रह्माजी का दर्शन अपने हाथों की हथेलीओं में करें, तथा शय्या से उठ कर पृथ्वी पर पैर रखने से पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करें, और माँ धरती पर पैर रखने की विवशता के लिये उनसे क्षमा माँगते हुये इस श्लोक का पाठ करें।

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।

समुद्र्रूपी वस्त्रों को धारण करने वाली, पर्वतरूप स्तनों से मण्डित भगवान् विष्णुजी की पत्नी पृथ्वीदेवि, आप मेरे पाद-स्पर्श को क्षमा करें, दोस्तों! आप विश्वास करें, ऐसा करके हम अपने पूरे दिन को मंगलमय् बना लेंगे, हम पूरे दिन अपने चेहरे पर अध्यात्म ओझ को महसूस करेंगे, हम साधु-संतों जैसी तपस्या तो नहीं कर सकते, लेकिन उन साधु-संतों के सुझायें गये छोटे-छोटे क्रियाओं से हम श्रेष्ठ जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

इन छोटे-छोटेश्लोकों का प्रात: काल पाठ करने से जीवन का बहुत कल्याण होता है, जैसे- दिन अच्छा बीतता है, दु:स्वप्न, कलिदोष, शत्रु, पाप और भव के भय का नाश हो जाते है, विष का भय नहीं होता, धर्म की वृद्धि होती है, अज्ञानी को ज्ञान प्राप्त होता है, रोग नहीं होता, पूरी आयु मिलती है, विजय प्राप्त होती है, निर्ध्न धनी होता है, भूख-प्यास और काम की बाधा नहीं होती तथा  सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है।

प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूर परिशोभित गण्ड्युग्मम्।
उद्दण्ड विघ्न परिखण्डन चण्डदण्ड माखण्डलादि सुरनायक वृन्दवन्द्यम्।।

हे अनाथों के बन्धु, सिन्दूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, यानी गाल वाले, प्रबल विघ्न का नाश करने में समर्थ एवं इन्द्रादि देवों से नमस्कृत श्री गणेशजी महाराज का मैं प्रात: काल स्मरण करता हूँ, भाई-बहनों इस गणेशस्मरण के छोटे से मंत्र में इतनी ताकत है, कि जो भी कोई कार्य आप हाथ में लोगे, वह पूर्ण होने की गारंटी है, इस मंत्र से गणेशजी हमेशा प्रसन्न रहते हैं।

प्रात: स्मरामि भवभीति महार्तिनाशम् नारायणं गरूड़वाहनमब्जनाभम्।
ग्राहाभिभूत वरवारणमुक्तिहेतुं चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम्।।

यह विष्णुस्मरण का छोटा सा मंत्र इस संसार के सभी भयरूपी महान् दु:ख को नष्ट करने की ताकत है, ग्राह से गजराज को मुक्त करने वाले, चक्रधारी एवं नवीन कमलदल के समान नेत्र वाले, पद्मनाभ गरुड़वाहन भगवान् श्रीनारायण का मैं प्रात: स्मरण करता हूँ, भगवान् श्री हरि विष्णुजी का यह मंत्र समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाला है, भगवान् विष्णुजी का सानिध्य प्राप्त कर कौन दुखी रह सकता है? भगवान् विष्णुजी सभी दुखों को हरने वाले हैं।

प्रात: स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशंगङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशंसंसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।

प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहंसर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम्।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामंसंसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।

प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम्।
नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यंसंसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।।

संसार के भय को नष्ट करने वाले, देवेश, गङ्गाधर, वृषभवाहन, पार्वतीपति, हाथ में खट्वाङ्ग एवं त्रिशूल लिये और संसार रूपी रोग का नाश करने के लिये अद्वितीय औषध-स्वरूप, अभय, एवं वरद मुद्रायुक्त हस्तवाले भगवान् शिव का मैं प्रात: काल स्मरण करता हूँ, इस शिवस्मरण मंत्र की शक्ति का बड़ा महात्म्य है, कहते इस तीन श्लोकों के मंत्र से प्रात: सुधर जाता है, और हमारे बुजुर्ग कहा करते थे कि जिसकी सुबह सुधर गयी उसका दिन सुधर गया।

प्रात: स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम्।
दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्रहस्तां रक्तोत्पलाभ चरणां भवती परेशाम्।।

शरत्कालीन चन्द्रमा के समान उज्ज्वल आभावाली, उत्तम रत्नों से जटित मकरकुण्डलों तथा हारों से सुशोभित, दिव्यायुधों से दीप्त सुन्दर नीले हजार हाथों वाली, लाल कमल की आभा युक्त चरणों वाली भगवती दुर्गा देवी का मैं प्रात: काल स्मरण करता हूँ, इस देवीस्मरण महामंत्र से माँ भगवती बहुत प्रसन्न हो जाती है, अगर माँ प्रसन्न रहें तो पिता को तो प्रसन्न होना ही है, भगवान् शिवजी की कृपा पाने के लिये माँ भगवती का यह मंत्र प्रात: पाठ करें।

प्रात: स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि।
सामानि यस्य किरणा: प्रभवादिहेतुं ब्रह्मा हरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम्।।

सूर्य का वह प्रशस्त रूप जिसका मण्डल ऋग्वेद, क्लेवर यजुर्वेद तथा किरणें सामवेद हैं, जो सृष्टि आदि के कारण हैं, ब्रह्मा और शिव के स्वरूप हैं, तथा जिनका रूप अचिन्त्य और अलक्ष्य है, प्रात: काल मैं उन भगवान् सूर्यदेव का स्मरण करता हूँ, सूर्य ही संसार का जीवन है, किसी दिन सूर्य उदय ना हो तो क्या होगा? अंधकार से संसार में हाहाकार मच जायेगा, सूर्य स्मरण के इस मंत्र पाठ से परोपकार की भावना का विकास होता है, जैसे भगवान् सूर्य देव समस्त सृष्टि पर परोपकार करते हैं।

ब्रह्मा मुरारिस्त्रीपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनि राहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे ममसुप्रभातम्।।

भाई-बहनों त्रिदेवों और नवग्रहों को प्रात: स्मरण करने से सभी मनोवांछित फल मिलता है, दसों दिशाओं का आर्शीवाद मिलता है, सभी ग्रह आपके अनुकूल हो जाते हैं, समस्त मानसिक तनाव से मुक्ति मिल जाती है, समस्त बाधायें दूर हो जाती है, सभी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती है, अत: सज्जनों! आप थोड़ा पुरूषार्थ करते हुये प्रात: जल्दी उठे, और आपको बतायें अनुसार कुछ मंत्रों को निर्मल भाव से स्मरण करें, सभी देवी-देवतायें आपको वैराग्य और भक्ति प्रदान करते हैं, आज एकादशी की शुभ अपराह्न आप सभी भाई-बहनों के लिये सौभाग्यशाली और मंगलमय् हो।

रात्रि के अंतिम प्रहर के तत्काबाद का समय को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।

ब्रह्म  मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।*

*“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।*
(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।)

सिख मत में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--*"अमृत वेला"* ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।

*ब्रह्म मुहूर्त* में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।

*पौराणिक महत्व* -- वाल्मीकि रामायण  के अनुसार श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद मंत्रो का पाठ करते माता सीता को सुना
शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है--
*वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।*
*ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥*
अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।

*ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति :--*
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।

*इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि*

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है

*ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।*

ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।

*वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।*

प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1
अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।
यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35
अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की उपासना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।
उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।
अथर्ववेद- 7/16/२
अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।

*व्यावहारिक महत्व* - व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है!

*जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या*

*प्रातः 3 से 5* – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।

*प्रातः 5 से 7* – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान का लेना चाहिए । सुबह 7 के बाद जो मल-त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।

*प्रातः 7 से 9* – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये।

*प्रातः 11 से 1* – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है।

*दोपहर 12 बजे* के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसी लिए भोजन वर्जित है । इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है ।

*दोपहर 1 से 3* -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।

*दोपहर 3 से 5* -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।

*शाम 5 से 7* -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है । इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए । शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करे। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते है । देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।

*रात्री 7 से 9* -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टी हुई है।

*रात्री 9 से 11* -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है । यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।

*रात्री 11 से 1* -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएं बनती है ।

*रात्री 1 से 3* -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।

*नोट* ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखे, जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबुफे डिनरʹ से बचना चाहिए।
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।

*शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।

*आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है .
 
#ब्रह्ममुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ? Why the tradition of getting up in #BrahmaMuhurta
 
 
#ब्रह्ममुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ? Why the tradition of getting up in #BrahmaMuhurta ब्रह्ममुहूर्त में उठने मात्र से मिलती है रहस्य्मयी आलौकिक शक्तियां | Power of Brahma

शास्त्रों के अनुसार मित्रता वाले नक्षत्र, शत्रुता वाले नक्षत्र एवं ग्रहों से सम्बन्ध

शास्त्रों के अनुसार किस नक्षत्र की किस नक्षत्र से मित्रता तथा किस नक्षत्र से शत्रुता एवं किस से सम भाव रहता है?   शास्त्रों में नक्षत्रों के...