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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

पांच तत्व के गुण और 25 प्रकृति

पंच तत्वों का महत्व
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पांच तत्व के गुण
पांच तत्व के गुण

 
 👉प्राचीन समय से ही विद्वानों का मत रहा है कि इस सृष्टि की संरचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है. सृष्टि में इन पंचतत्वों का संतुलन बना हुआ है।

👉यदि यह संतुलन बिगड़ गया तो यह प्रलयकारी हो सकता है. जैसे यदि प्राकृतिक रुप से जलतत्व की मात्रा अधिक हो जाती है तो पृथ्वी पर चारों ओर जल ही जल हो सकता है अथवा बाढ़ आदि का प्रकोप अत्यधिक हो सकता है. आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को पंचतत्व का नाम दिया गया है।

👉माना जाता है कि मानव शरीर भी इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बना है।

👉वास्तविकता में यह पंचतत्व मानव की पांच इन्द्रियों से संबंधित है. जीभ, नाक, कान, त्वचा और आँखें हमारी पांच इन्द्रियों का काम करती है. इन पंचतत्वों को पंचमहाभूत भी कहा गया है. इन पांचो तत्वों के स्वामी ग्रह, कारकत्व, अधिकार क्षेत्र आदि भी निर्धारित किए गये हैं 

(1) आकाश 
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आकाश तत्व का स्वामी ग्रह गुरु है. आकाश एक ऎसा क्षेत्र है जिसका कोई सीमा नहीं है. पृथ्वी के साथ्-साथ समूचा ब्रह्मांड इस तत्व का कारकत्व शब्द है. इसके अधिकार क्षेत्र में आशा तथा उत्साह आदि आते हैं. वात तथा कफ इसकी धातु हैं। वास्तु शास्त्र में आकाश शब्द का अर्थ रिक्त स्थान माना गया है. आकाश का विशेष गुण “शब्द” है और इस शब्द का संबंध हमारे कानों से है. कानों से हम सुनते हैं और आकाश का स्वामी ग्रह गुरु है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी श्रवण शक्ति का कारक गुरु को ही माना गया है। शब्द जब हमारे कानों तक पहुंचते है तभी उनका कुछ अर्थ निकलता है. वेद तथा पुराणों में शब्द, अक्षर तथा नाद को ब्रह्म रुप माना गया है। वास्तव में आकाश में होने वाली गतिविधियों से गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश, ऊष्मा, चुंबकीय़ क्षेत्र और प्रभाव तरंगों में परिवर्तन होता है. इस परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है. इसलिए आकाश कहें या अवकाश कहें या रिक्त स्थान कहें, हमें इसके महत्व को कभी नहीं भूलना चाहिए. आकाश का देवता भगवान शिवजी को माना गया है।

(2) वायु 
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वायु तत्व के स्वामी ग्रह शनि हैं. इस तत्व का कारकत्व स्पर्श है. इसके अधिकार क्षेत्र में श्वांस क्रिया आती है. वात इस तत्व की धातु है. यह धरती चारों ओर से वायु से घिरी हुई है. संभव है कि वायु अथवा वात का आवरण ही बाद में वातावरण कहलाया हो। वायु में मानव को जीवित रखने वाली आक्सीजन गैस मौजूद होती है. जीने और जलने के लिए आक्सीजन बहुत जरुरी है. इसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. यदि हमारे मस्तिष्क तक आक्सीजन पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई तो हमारी बहुत सी कोशिकाएँ नष्ट हो सकती हैं. व्यक्ति अपंग अथवा बुद्धि से जड़ हो सकता है।
प्राचीन समय से ही विद्वानों ने वायु के दो गुण माने हैं. वह है – शब्द तथा स्पर्श. स्पर्श का संबंध त्वचा से माना गया है. संवेदनशील नाड़ी तंत्र और मनुष्य की चेतना श्वांस प्रक्रिया से जुड़ी है और इसका आधार वायु है. वायु के देवता भगवान विष्णु माने गये हैं।

(3) अग्नि
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सूर्य तथा मंगल अग्नि प्रधान ग्रह होने से अग्नि तत्व के स्वामी ग्रह माने गए हैं. अग्नि का कारकत्व रुप है. इसका अधिकार क्षेत्र जीवन शक्ति है. इस तत्व की धातु पित्त है. हम्सभी जानते हैं कि सूर्य की अग्नि से ही धरती पर जीवन संभव है। यदि सूर्य नहीं होगा तो चारों ओर सिवाय अंधकार के कुछ नहीं होगा और मानव जीवन की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती है. सूर्य पर जलने वाली अग्नि सभी ग्रहों को ऊर्जा तथा प्रकाश देती है। इसी अग्नि के प्रभाव से पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं. शब्द तथा स्पर्श के साथ रुप को भी अग्नि का गुण माना जाता है. रुप का संबंध नेत्रों से माना गया है. ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत अग्नि तत्व है। सभी प्रकार की ऊर्जा चाहे वह सौर ऊर्जा हो या आणविक ऊर्जा हो या ऊष्मा ऊर्जा हो सभी का आधार अग्नि ही है. अग्नि के देवता सूर्य अथवा अग्नि को ही माना गया है।

(4) जल 
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चंद्र तथा शुक्र दोनों को ही जलतत्व ग्रह माना गया है. इसलिए जल तत्व के स्वामी ग्रह चंद्र तथा शुक्र दोनो ही हैं. इस तत्व का कारकत्व रस को माना गया है. इन दोनों का अधिकार रुधिर अथवा रक्त पर माना गया है क्योंकि जल तरल होता है और रक्त भी तरल होता है. कफ धातु इस तत्व के अन्तर्गत आती है। विद्वानों ने जल के चार गुण शब्द, स्पर्श, रुप तथा रस माने हैं. यहाँ रस का अर्थ स्वाद से है. स्वाद या रस का संबंध हमारी जीभ से है. पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जल स्त्रोत जल तत्व के अधीन आते हैं। जल के बिना जीवन संभ्हव नहीं है. जल तथा जल की तरंगों का उपयोग विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है. हम यह भी भली-भाँति जानते हैं कि विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं. जल के देवता वरुण तथा इन्द्र को माना गया है. मतान्तर से ब्रह्मा जी को भी जल का देवता माना गया है।

(5) पृथ्वी 
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पृथ्वी का स्वामी ग्रह बुध है. इस तत्व का कारकत्व गंध है. इस तत्व के अधिकार क्षेत्र में हड्डी तथा माँस आता है. इस तत्व के अन्तर्गत आने वाली धातु वात, पित्त तथा कफ तीनों ही आती हैं. विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी एक विशालकाय चुंबक है. इस चुंबक का दक्षिणी सिरा भौगोलिक उत्तरी ध्रुव में स्थित है. संभव है इसी कारण दिशा सूचक चुंबक का उत्तरी ध्रुव सदा उत्तर दिशा का ही संकेत देता है। पृथ्वी के इसी चुंबकीय गुण का उपयोग वास्तु शास्त्र में अधिक होता है. इस चुंबक का उपयोग वास्तु में भूमि पर दबाव के लिए किया जाता है. वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा में भार बढ़ाने पर अधिक बल दिया जाता है. हो सकता है इसी कारण दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है. यदि इस बात को धर्म से जोड़ा जाए तो कहा जाता है कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके ना सोएं क्योंकि दक्षिण में यमराज का वास होता है। पृथ्वी अथवा भूमि के पाँच गुण शब्द, स्पर्श, रुप, स्वाद तथा आकार माने गए हैं. आकार तथा भार के साथ गंध भी पृथ्वी का विशिष्ट गुण है क्योंकि इसका संबंध नासिका की घ्राण शक्ति से है। उपरोक्त विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि पंचतत्व मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं. उनके बिना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले किसी भी जीव के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। इन पांच तत्वों का प्रभाव मानव के कर्म, प्रारब्ध, भाग्य तथा आचरण पर भी पूरा पड़ता है. जल यदि सुख प्रदान करता है तो संबंधों की ऊष्मा सुख को बढ़ाने का काम करती है और वायु शरीर में प्राण वायु बनकर घूमती है. आकाश महत्वाकांक्षा जगाता है तो पृथ्वी सहनशीलता व यथार्थ का पाठ सिखाती है. यदि देह में अग्नि तत्व बढ़ता है तो जल्की मात्रा बढ़ाने से उसे संतुलित किया जा सकता है. यदि वायु दोष है तो आकाश तत्व को बढ़ाने से यह संतुलित रहेगें।
 

वैदिक, उपनिषदिक और आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से पंच तत्वों (पांच मूलभूत तत्वों) का विवरण निम्नलिखित है:


वैदिक और उपनिषदिक दृष्टिकोण

भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि के निर्माण में पाँच तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन्हें "पंचमहाभूत" कहा जाता है। ये तत्व निम्नलिखित हैं:

  1. आकाश (Space/Ether)

    • स्वभाव: शून्यता, ध्वनि का माध्यम।
    • संवेदना: श्रवण शक्ति (सुनना) का अनुभव।
    • गुण: हल्कापन, व्यापकता।
  2. वायु (Air)

    • स्वभाव: गति, परिवर्तन।
    • संवेदना: स्पर्श का अनुभव।
    • गुण: चलनशीलता, सूक्ष्मता।
  3. अग्नि (Fire)

    • स्वभाव: प्रकाश, ऊष्मा।
    • संवेदना: रूप (दृश्य) का अनुभव।
    • गुण: तेज, ऊर्जा।
  4. जल (Water)

    • स्वभाव: तरलता, शीतलता।
    • संवेदना: स्वाद का अनुभव।
    • गुण: प्रवाह, संतुलन।
  5. पृथ्वी (Earth)

    • स्वभाव: स्थिरता, घनत्व।
    • संवेदना: गंध का अनुभव।
    • गुण: स्थायित्व, पोषण।

आधुनिक विज्ञान का दृष्टिकोण

आधुनिक विज्ञान में इन पांच तत्वों को भौतिक तत्वों के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इनका संबंध प्रकृति के विभिन्न पहलुओं से किया जा सकता है:

  1. आकाश (Space)

    • आधुनिक विज्ञान इसे स्पेसटाइम या अंतरिक्ष के रूप में देखता है, जो ब्रह्मांड का आधार है।
  2. वायु (Air)

    • वायु का संबंध गैसों से है। पृथ्वी के वातावरण में प्रमुख रूप से नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और अन्य गैसें।
  3. अग्नि (Fire)

    • अग्नि ऊर्जा और ताप के रूप में व्याख्यायित होती है। इसे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ऊर्जा या थर्मल एनर्जी के रूप में समझा जा सकता है।
  4. जल (Water)

    • पानी, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का संयोजन है, जीवन का आधार है।
  5. पृथ्वी (Earth)

    • पृथ्वी को ठोस पदार्थों (सॉलिड मैटर) के रूप में देखा जाता है, जो खनिज, धातु, और मिट्टी का निर्माण करते हैं।

संभावित समन्वय

  • वैदिक दर्शन और विज्ञान के बीच यह समन्वय है कि पंचमहाभूत, ऊर्जा और पदार्थ के विभिन्न स्वरूपों का प्रतीक हैं।
  • इन तत्वों का संतुलन मानव जीवन और प्रकृति के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
  • आयुर्वेद और योग में भी पंचमहाभूत के संतुलन को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।

 

पांच तत्व (पंचमहाभूत)

पंचमहाभूत वे पाँच मौलिक तत्व हैं, जिनसे सृष्टि और शरीर का निर्माण हुआ है।

  1. आकाश (Space): शून्यता और विस्तार।
  2. वायु (Air): गति और परिवर्तन।
  3. अग्नि (Fire): ऊर्जा और रूपांतरण।
  4. जल (Water): तरलता और पोषण।
  5. पृथ्वी (Earth): स्थायित्व और संरचना।

ये पाँच तत्व हमारे शरीर और ब्रह्मांड दोनों में मौजूद हैं और जीवन के संतुलन के लिए जरूरी हैं।


तीन गुण (त्रिगुण)

त्रिगुण प्रकृति के तीन मौलिक गुण हैं, जो हर जीव और वस्तु में विद्यमान हैं:

  1. सत्त्व (संतुलन, पवित्रता)

    • यह ज्ञान, शांति, और सद्गुण का गुण है।
    • सत्त्व बढ़ने से मन में शांति और सकारात्मकता आती है।
  2. रजस् (गतिशीलता, ऊर्जा)

    • यह क्रिया, इच्छा, और अस्थिरता का गुण है।
    • रजस् बढ़ने से व्यक्ति में कर्मशीलता और लालसा बढ़ती है।
  3. तमस् (जड़ता, अज्ञानता)

    • यह आलस्य, अंधकार, और निष्क्रियता का गुण है।
    • तमस् बढ़ने से व्यक्ति सुस्त और नकारात्मक हो जाता है।

इन तीनों गुणों का संतुलन व्यक्ति के स्वभाव और जीवनशैली को प्रभावित करता है।


25 प्रकृति तत्व

सांख्य दर्शन के अनुसार, सृष्टि 25 तत्वों (तत्त्वों) से बनी है, जिन्हें "प्रकृति" का विस्तार माना जाता है:

  1. मूल प्रकृति (1): सृष्टि का आधार, जो अव्यक्त और जड़ है।

  2. महत्तत्त्व (1): बुद्धि या विवेक का तत्त्व, जिससे ज्ञान और निर्णय की शक्ति मिलती है।

  3. अहंकार (1): अहं का तत्त्व, जो "मैं" और "मेरा" का भाव देता है।

  4. मन (1): विचारों और भावनाओं का केंद्र।

  5. पंचज्ञानेंद्रियाँ (5):

    • कान (श्रवण), त्वचा (स्पर्श), आँख (दृष्टि), जीभ (स्वाद), नाक (गंध)।
  6. पंचकर्मेंद्रियाँ (5):

    • वाणी (बोलना), हाथ (धारण करना), पैर (चलना), मलद्वार (त्याग), जननेंद्रिय (सृजन)।
  7. पंचतन्मात्राएँ (5):

    • ध्वनि, स्पर्श, रूप, रस (स्वाद), गंध।
  8. पंचमहाभूत (5):

    • आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी।

सरल समझ

  • पांच तत्व: शरीर और सृष्टि की भौतिक रचना।
  • तीन गुण: हमारे मन और स्वभाव के गुण।
  • 25 प्रकृति तत्व: सृष्टि का पूरा तंत्र, जो भौतिक और मानसिक अस्तित्व दोनों को मिलाकर बनता है।

इन तत्वों और गुणों का संतुलन जीवन में शांति, स्वास्थ्य, और समृद्धि लाता है। यदि इनमें असंतुलन होता है, तो अशांति और रोग उत्पन्न होते हैं।

हमारा शरीर पंचतत्व से बना है यह पाँच तत्व जैसा कि ऊपर की चौपाई में लिखा है क्रमश:, क्षिति यानी कि पृथ्वी, जल यानी कि पानी, पावक यानी कि आग, गगन यानी आकाश और समीर यानी कि हवा। क्षिति (पृथ्वी):-मृत शरीर को जलाने के लिए चिता का निर्माण भूमि पर ही किया जाता है।

पंच तत्वों के देवता कौन थे?
पंचतत्व पूजा में भगवान सूर्य को आकाश तत्व, भगवान गणेश को जल तत्व, देवी दुर्गा को अग्नि तत्व, भगवान शिव को पृथ्वी तत्व और भगवान विष्णु को वायु तत्व माना गया है. धार्मिक ग्रंथों में जिक्र है कि पांच देवताओं की पूजा करने से सारे कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं.

 हिंदू धर्म में 5 तत्व क्या हैं?

पञ्चभूत (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं। आकाश (Space) , वायु (Force), अग्नि (Energy), जल (State of matter) तथा पृथ्वी (Matter) - ये पंचमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है। लेकिन इनसे बने पदार्थ जड़ (यानि निर्जीव) होते हैं, सजीव बनने के लिए इनको आत्मा चाहिए।
 
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