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शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

पारस का काम मंगल की कामना करना, Philosopher's wish

पारस का काम मंगल की कामना करना, Philosopher's wish

*जब आप किसी के लिए पारस का काम करते है तो दुसरा भी आपके लिए पारस बन जाता है*

आपकी सम्भावनाओं में इतने सूक्ष्मतम अन्तर होते हैं कि हिसाब लगाना मुश्किल है।
और हम चौबीस घंटे कुछ न कुछ कर रहे हैं। एक छोटा—सा गलत बोला गया शब्द कितनी दूर तक कांटों को बो जाएगा, हमें कुछ पता नहीं है।

बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे कि तुम चौबीस घण्टे, राह पर कोई दिखे उसकी मंगल की कामना करना। वृक्ष भी मिल जाए तो उसकी मंगल की कामना करके उसके पास से गुजरना। पहाड़ भी दिख जाए तो मंगल की कामना करके उसके निकट से गुजरना। राहगीर दिख जाए अनजान, तो उसके पास से मंगल की कामना करके राह से गुजरना।

एक भिक्षु ने पूछा, इससे क्या फायदा?
*बुद्ध ने कहा, इसके दो फायदे हैं।*
1     पहला तो यह कि तुम्हें गाली देने का अवसर न मिलेगा। तुम्हें बुरा खयाल करने का अवसर न मिलेगा। तुम्हारी शक्ति नियोजित हो जाएगी मंगल की दिशा में।

2    दूसरा फायदा यह कि जब तुम किसी के लिये मंगल की कामना करते हो तो तुम उसके भीतर भी रिजोनेंस, प्रतिध्वनि पैदा करते हो। वह भी तुम्हारे लिए मंगल की कामना से भर जाता है।

इसलिए इस मुल्क में राह पर चलते हुए अनजान आदमी को भी ‘राम—राम’ कहने की प्रक्रिया बनायी थी, जो शायद दुनियां में कहीं नहीं बनायी जा सकी।

और कभी आपने खयाल किया हो या ना किया हो, लेकिन अब आप खयाल करना कि जब किसी को हृदयपूर्वक नमस्कार करके सिर झुकायें, और अगर कल्पना भी कर सकें कि परमात्मा दूसरी तरफ है
तो आप अपने में भी फर्क पायेंगे और उस आदमी में भी फर्क पाएंगें।

*वह आदमी आपके पास से गुजरा तो आपने उसके लिए पारस का काम किया, उसके भीतर कुछ आपने सोना बना दिया। और जब आप किसी के लिए पारस का काम करते है तो दूसरा भी आपके लिए पारस बन जाता है।*

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