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सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

विज्ञान भैरव #तंत्र #आत्मा की झलक || विज्ञानं भैरव तंत्र #धारणा 2 Vigyan Bhairava Tantra # Dharna 2


🕉🌞विज्ञान भैरव तंत्र 🌞🕉

       ⚜🚩  धारणा -2 🚩⚜

🌞👉 भगवान शिव माता पार्वती को संबोधित करते हुए कहते हैं -है भैरवी ! प्राण और अपान नामक वायु के आधारभूत स्थान आंतरिक आकाश अर्थात हृदय और बाह्म आकाश अर्थात द्वादशांत से आवर्ती के अभाव में एक क्षण के लिए उसकी वृत्ति अंतर्मुखी हो जाती है अर्थात श्वास के आने  एवं जाने  के  बीच में  कुंभक क्रिया का संपादन होता है ।श्वास के अंदर आने और बाहर  जाने की प्रक्रिया के  मध्य में  जो शून्य स्थिति उत्पन्न होती है ,उस स्थिति को  होश पूर्वक दृष्टा बनकर  देखने से साधक का सत चित आनंद स्वरूप अर्थात भैरव स्वरूप प्रकट हो जाता है । वह भय मुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेता है।ऐसी स्थिति में ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि  प्राण और अपान कहीं विलीन हो गए हैं। इस स्थिति को ही मध्य दशा नाम से जाना गया है। इस मध्य दशा का जब विकास किया जाता है, तब प्राण शक्ति भैरवी से अभिन्न रूप में विद्यमान भगवान भैरव का स्वरूप प्रकाशित हो जाता है ।
🌞👉 वैदिक योग शास्त्र की प्रक्रिया के अनुसार यदि इस श्लोक का  तत्वार्थ समझा जाए तो वह भावार्थ इस प्रकार से लिया जा सकता है-- संसार के सभी प्राणियों के प्राण की पूरक , रेचक एवं कुंभक अवस्थाएं स्वाभाविक रूप से बिना प्रयत्न के निरंतर गतिशील रहती है। हृदय स्थित कमल कोश से ही प्राण का उदय होता है। नासिका मार्ग से बाहर निकल कर यह 12 अंगुल चलकर अंत में आकाश में विलीन हो जाता है ,इसलिए बाह्म आकाश को भी योग शास्त्र में द्वादशांत के नाम से जाना जाता है । प्राण की इस स्वाभाविक बाह्म गति को रेचक नाम से जाना जाता है ।बाह्म द्वादशांत में अपान का उदय होता है  और नासिका मार्ग से ही चल कर यह हृदय स्थित कमल कोश में आकर विलीन हो जाता है । अपान की यह स्वाभाविक आंतरिक गति पूरक  कहलाती है। प्राण द्वादशांत में और अपान हृदय में क्षण मात्र के लिए विलीन हो जाता है ।यही  प्राण की कुंभक अवस्था कही गई है । प्राण का विलय बाहर और भीतर दो स्थानों में होने के कारण इसे दो भेदों के रूप में अंतः कुंभक एवं बाह्य कुंभक के रूप में जाना जाता है । मनुष्य के शरीर में चलने वाली इस श्वास प्रश्वास की निरंतर चलने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाली इन रेचक ,पूरक  बाह्म एवं आंतरिक कुंभक अवस्थाओं का निरंतर सावधानी से निरीक्षण करने वाला योगी उस भैरव स्वरुप को प्राप्त कर लेता है । योग शास्त्र के अनुसार प्राणायाम के अभ्यास से प्राण वायु की गति को नियंत्रित किया जाता है और   हठ पूर्वक प्राण एवं अपान की कुंभक क्रिया को  बढ़ाया जाता है ,जिससे कि मन को नियंत्रित किया जा सके क्योंकि प्राण के नियंत्रण होने से ही मन का नियंत्रित किया जाना संभव होता है  किंतु यहां पर भगवान शिव किसी प्राणायाम का अभ्यास करने का ज्ञान नहीं दे रहे हैं बल्कि सहज स्वाभाविक रूप से अंदर आ रही स्वास एवं जा रही श्वास के साथ जो विराम अवस्था उत्पन्न होती है ।उसको होश पूर्वक देखने और होश के माध्यम से उसका विस्तार करने का ज्ञान दे रहे हैं।  इसी होश पूर्वक की गई प्रक्रिया से साधक का भैरव  स्वरूप  प्रकट हो जाता है।
🌞  साधक के दो शब्द--  साधक भाइयों बहनों !यहां पर स्वास के आधार पर ध्यान करने वाली प्रथम एवं द्वितीय विधि लगभग एक जैसी ही है  ।प्रथम विधि में जहां पर स्वांस के आने एवं जाने की प्रक्रिया को स्वाभाविक रूप से होश पूर्वक देखना है ।वहीं दूसरी विधि में स्वांस के आने एवं जाने के बीच में जो विराम अवस्था उत्पन्न होती है ,उस बिंदु पर  होश पूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता है। दृष्टा बनकर इस प्रक्रिया को देखने की आवश्यकता है। यहां पर आप सब साधक भाइयों बहनों  से मैं एक बात विशेष रूप से कहना चाहूंगा ।आप ध्यान की किसी भी विधि का प्रयोग करें, अनुसरण करें किंतु यदि आप किसी भी प्रकार की समस्या से बचना चाहते हैं तो एक बात निश्चित रूप से समझ लीजिए। स्वांस पर ध्यान करने से पूर्व आपको योग पद्धति के आधार पर अनुलोम-विलोम नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास अवश्य कर लेना चाहिए। इससे आपके फेफड़ों की क्षमता का विकास होगा ,नाड़ियों का शोधन होगा  और श्वास पर ध्यान करने के द्वारान  जो प्राण पर दबाव उत्पन्न होता है। उसे आसानी से सहन करने की क्षमता आपको निश्चित रूप से प्राप्त होगी और यदि आप अनुलोम-विलोम नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास नहीं करते हैं तो इस अभ्यास को करते हुए बाद में आप मेरे पास कोई न कोई समस्या लेकर उपस्थित जरूर होंगे  किंतु ध्यान की 112 धारणाओं में से किसी भी विधि का अनुसरण करने से पूर्व यदि आपने 5 से 10 मिनट अनुलोम-विलोम नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास कर लिया तो फिर हर विधि आपको उस सत्य स्वरूप पूर्ण परमात्मा के भैरव स्वरूप तक बिना किसी परेशानी के निश्चित रूप से पहुंचायेगी।  जिस आनापान ध्यान की विधि को भगवान बुद्ध की  ध्यान की विधि बताया जाता है ।वास्तविक रूप में वह विधि भगवान शिव की दी हुई है ,विज्ञान भैरव तंत्र की दी हुई है  और यहीं से भगवान बुद्ध ने  112 धारणा की विधियों में से एक धारणा विधि का चुनाव किया था।
                     
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