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मंगलवार, 29 सितंबर 2020

#कबीरसागर में अध्याय ‘‘#कबीरबानी‘‘ Chapter in #KabirSagar "#KabirBani"


कबीर सागर में अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ पृष्ठ 111 पर शरीर के कमलों की यथार्थ जानकारी है जो इस प्रकार हैः-

1) प्रथम मूल कमल है, देव गणेश है। चार पंखुड़ी का कमल है।

2) दूसरा स्वाद कमल है, देवता ब्रह्मा-सावित्राी हैं। छः पंखुड़ी का कमल है।

3) तीसरा नाभि कमल है, लक्ष्मी-विष्णु देवता हैं। आठ पंखुड़ी का कमल है।

4) चैथा हृदय कमल है, पार्वती-शिव देवता हैं। 12 पंखुड़ी का कमल है।

5) पाँचवां कंठ कमल है, अविद्या (दुर्गा) देवता है। 16 पंखुड़ी का कमल है।

कबीर सागर में भवतारण बोध में पृष्ठ 57 पर लिखा है कि:-

षट्कमल पंखुड़ी है तीनी। सरस्वती वास पुनः तहाँ किन्ही।।

सप्तम् कमल त्रिकुटी तीरा। दोय दल मांही बसै दोई बीरा (शूरवीर)।।

6) यह छठा संगम कमल त्रिकुटी से पहले है जो सुष्मणा के दूसरे अंत वाले द्वार पर बना है। इसकी तीन पंखुड़ियाँ है। इसमें सरस्वती का निवास है। वास्तव में दुर्गा जी ही अन्य रूप में यहाँ रहती है। इसके साथ 72 करोड़ सुन्दर देवियाँ रहती हैं। इसकी तीन पंखुड़ियाँ हैं। इन तीनों में से एक में परमेश्वर का निवास है जो अन्य रूप में रहते हैं। एक पंखुड़ी में सरस्वती तथा 72 करोड़ देवियाँ जो ऊपर जाने वाले भक्तों को आकर्षित करके उनको अपने जाल में फँसाती हैं। दूसरी पंखुड़ी में काल अन्य रूप में रहता है। मन रूप में काल का निवास है तथा करोड़ों युवा देव रहते हैं जो भक्तमतियों को आकर्षित करके काल के जाल में फँसाते हैं। तीसरी पंखुड़ी में परमेश्वर जी हैं जो अपने भक्तों को सतर्क करते हैं जिससे सतगुरू के भक्त उन सुन्दर परियों के मोह में नहीं फँसते।

7) सातवां त्रिकुटी कमल है जिसकी काली तथा सफेद दो पंखुड़ियाँ हैं। काली में काल का सतगुरू रूप में निवास है तथा सफेद में सत्य पुरूष का सतगुरू रूप में निवास है।

8) आठवाँ कमल (अष्ट कमल) ये दो हैं। एक तो उसे कहा है जो संहस्र कमल कहा है जिसमें काल ने एक हजार ज्योति जगाई हैं जो ब्रह्मलोक में है। इसको संहस्र कमल कहते हैं। इसकी हजार पंखुड़ी हैं। यह सिर में जो चोटी स्थान (सर्वोपरि) है, उसको ब्रह्माण्ड कहा जाता है। जैसे कई ऋषियों की लीला में लिखा है कि वे ब्रह्माण्ड फोड़कर निकल गए। इनके सिर में तालु के ऊपर और चोटी स्थान के बीच में निशान बन जाता है। शरीर त्याग जाते हैं। वे शुन्य में भ्रमण करते रहते हैं। वे ओम् (Om) अक्षर का जाप तथा हठ योग करके यह गति प्राप्त करते हैं। महाप्रलय में नष्ट हो जाते हैं। फिर जीव रूप जन्मते हैं। इस सिर के ऊपर के भाग को ब्रह्माण्ड कहते हैं। यह आठवां कमल ब्रह्माण्ड में इस प्रकार कहा है।

इस कमल में काल निरंजन ने धोखा कर रखा है। केवल ज्योति दिखाई देती है जो प्रत्येक पंखुड़ी में जगमगाती है। उस कमल में परमात्मा कबीर जी भी गुप्त रूप में निवास करते हैं। इसके साथ-साथ परमात्मा जी प्रत्येक कमल में अपनी शक्ति का प्रवेश रखते हैं।

अन्य अष्ट कमल वह जो सत्यलोक में जाने वाले रास्ते में है। उसकी दश (10) पंखुड़ियाँ हैं जो ब्रह्म के साधक हैं। उनके लिए आठवां कमल संहस्र कमल है जो हजार पंखुड़ियों वाला है। इसमें निरंजन का निवास है। भवतारण बोध पृष्ठ 57 पर वाणी है:-

अष्टम कमल ब्रह्मण्ड के मांही। तहाँ निरंजन दूसर नांही।।

फर दूसरा अष्टम कमल मीनी सतलोक में जाने वाले मार्ग में है।

9) नौंमा कमल मीनी सतलोक में है। तीसरा अष्टम कमल अक्षर पुरूष के लोक में है। उसका यहाँ वर्णन नहीं करना है। वह पिण्ड (शरीर) से बाहर सूक्ष्म शरीर में है। शब्द ‘‘कर नैंनो दीदार महल में प्यारा है‘‘ में सबको भिन्न-भिन्न बताया है

कबीर सागर में कबीर बानी अध्याय के पृष्ठ 111(957) पर नौंवे (नौमें) कमल का वर्णन है। नौमें कमल की शंख पंखुड़ी हैं। पूर्ण ब्रह्म का निवास है।

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पूजा कबीर परमात्मा की। 

सम्मान ३३ करोड़ देवताओं का।

साधना ५ प्रधान देवी देवताओं की और ब्रह्म, परब्रह्म की।

वास्तविक नाम भेद

==============

सन्त अनेक जगत में, सतगुरु सत् कबीर।

और

साचा शब्द कबीर का, प्रकट किया जग माही।जैसा को तैसा कहै, वो तो निंदा नाही।।

उस कबीर साहेबजी की वाणी में असली पाँच नामों का जिक्र है। कबीर साहेबजी का एक शब्द है -

"कर नैनों दीदार महल में प्यारा है"

जो 32 कली का है जिसे नीचे पोस्ट किया जा रहा है। इस शब्द में उन पाँच नामों का न्यारा विवरण है।

ये पाँच नाम प्राइमरी पाठ है।इनके जाप से साधक भगति के योग्य बनता है।जिसका प्रमाण परमात्मा प्राप्त संत गरीबदासजी महाराज जी ने इस तरह किया है -

"पाँच नाम गुझ गायत्री, आत्मतत्व जगाओ।ओम्, सोहम्, किलियं, हरियम्, श्रीयम्, ध्यायो।।

विशेष:

इसमें ज्योति निरंजन, ररंकार, ओंकार व् सतनाम नहीं है जिसे राधास्वामी पंथ में प्रदान किया जाता है।उनके जगह पर ओम्, किलियं, हरियम् व् श्रीयम् है।

किन्तु पूर्ण मुक्ति के लिए पूर्ण कोर्स करना होता है जो सतगुरु के पास होता है।

"पाँच नाम" से आगे का पाठ है "दो अक्षर का नाम" और उसके बाद का पाठ है "एक अक्षर का नाम" जिसे सारनाम या सारशब्द भी कहा जाता है। दो और एक मिलकर तीन शब्द बनते है, जिसका जिक्र पवित्र गीता अ.17.23 में इस तरह हुआ है -

ओम् तत् सत् इति निर्देशः ब्रम्हणः त्रिविधः स्मृतः।                         (गीता अ.17.23)

सारी बाते संत शिरोमणि कबीर साहेबजी, परम संत नानकदेवजी एवं पवित्र ग्रन्थ गीताजी से भी प्रमाणित है।

परमात्मा प्राप्त संत नामदेवजी ने तीन नामों का भेद इस तरह दिया है -

नामा छिपा "ओम" तारी, पीछे "सोहम्" भेद विचारी।"सार शब्द" पाया जद लोई आवागवन बहुरि न होई।।

दो अक्षर के नाम को भी आदरणीय गरीबदास जी साहेब ने स्पष्ट किया है -

राम नाम जपकर थिर होई ओम् - तत् (सांकेतिक) मन्त्र दोई।

फिर लिखा है -

ओम् - तत् (सांकेतिक) सार संदेशा, मानों सतगुरु की उपदेशा।

इसी को कबीर साहेबजी ने फिर स्पष्ट किया हा -

कह कबीर, सुनो धर्मदाशा, ओम् - तत् शब्द प्रकाशा।।

नानकदेवजी ने दो अक्षर के मन्त्र को प्राणसंगली में खोला है-

नामों में ना ओम् - तत् है, किलविष कटै ताहि।

कबीर, सतगुरु सो सतनाम दृढ़ावे, और गुरु कोई काम न आवे।

ओम् + तत् (सांकेतिक) मिलकर सतनाम बनता है। जो दो अक्षर का होता है।सतनाम में ओम् के साथ एक अक्षर का एक और मन्त्र होता है जिसका भेद आदरणीय नानकदेवजी ने

"एक ओंकार" सतनाम 

कहकर दिया है। जिसका सीधा सा अर्थ बनता है ओम् के साथ (एक) एक अक्षर का एक अन्य मन्त्र जुड़कर सतनाम बनता है जिसे पवित्र सिख समाज भी आजतक नहीं समझकर सतनाम सतनाम जपने में लगे है।

पाँच नाम के रेफरेंस कबीर साहेब जी की वाणी में देखिये

इस शब्द में-

   -: : शब्द : :-

कर नैनों दीदार महलमें प्यारा है।।टेक।।

काम क्रोध मद लोभ बिसारो, शील सँतोष क्षमा सत धारो।

मद मांस मिथ्या तजि डारो, हो ज्ञान घोडै असवार, भरम से न्यारा है।1।

धोती नेती बस्ती पाओ, आसन पदम जुगतसे लाओ।

कुम्भक कर रेचक करवाओ, पहिले मूल सुधार कारज हो सारा है।2।

मूल कँवल दल चतूर बखानो, किलियम जाप लाल रंग मानो।

देव गनेश तहँ रोपा थानो, रिद्धि सिद्धि चँवर ढुलारा है।3।

स्वाद चक्र षटदल विस्तारो, ब्रह्म सावित्री रूप निहारो।

उलटि नागिनी का सिर मारो, तहाँ शब्द ओंकारा है।।4।।

नाभी अष्ट कमल दल साजा, सेत सिंहासन बिष्णु बिराजा।

हरियम् जाप तासु मुख गाजा, लछमी शिव आधारा है।।5।।

द्वादश कमल हृदयेके माहीं, जंग गौर शिव ध्यान लगाई।

सोहं शब्द तहाँ धुन छाई, गन करै जैजैकारा है।।6।।

षोड्श कमल कंठ के माहीं, तेही मध बसे अविद्या बाई।

हरि हर ब्रह्म चँवर ढुराई, जहँ श्रीयम् नाम उचारा है।।7।।

तापर कंज कमल है भाई, बग भौंरा दुइ रूप लखाई।

निज मन करत वहाँ ठकुराई, सो नैनन पिछवारा है।।8।।

कमलन भेद किया निर्वारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।

सतसँग कर सतगुरु शिर धारा, वह सतनाम उचारा है।।9।।

आँख कान मुख बन्द कराओ, अनहद झिंगा शब्द सुनाओ।

दोनों तिल इक तार मिलाओ, तब देखो गुलजारा है।।10।।

चंद सूर एक घर लाओ, सुषमन सेती ध्यान लगाओ।

तिरबेनीके संधि समाओ, भौर उतर चल पारा है।।11।।

घंटा शंख सुनो धुन दोई, सहस्र कमल दल जगमग होई।

ता मध करता निरखो सोई, बंकनाल धस पारा है।।12।।

डाकिनी शाकनी बहु किलकारे, जम किंकर धर्म दूत हकारे।

सत्तनाम सुन भागे सारें, जब सतगुरु नाम उचारा है।।13।।

गगन मँडल बिच उर्धमुख कुइया, गुरुमुख साधू भर भर पीया।

निगुरो प्यास मरे बिन कीया, जाके हिये अँधियारा है।।14।।

त्रिकुटी महलमें विद्या सारा, धनहर गरजे बजे नगारा।

लाल बरन सूरज उजियारा, चतूर दलकमल मंझार शब्द ओंकारा है।15।

साध सोई जिन यह गढ लीनहा, नौ दरवाजे परगट चीन्हा।

दसवाँ खोल जाय जिन दीन्हा, जहाँ कुलुफ रहा मारा है।।16।।

आगे सेत सुन्न है भाई, मानसरोवर पैठि अन्हाई।

हंसन मिलि हंसा होई जाई, मिलै जो अमी अहारा है।।17।।

किंगरी सारंग बजै सितारा, क्षर ब्रह्म सुन्न दरबारा।

द्वादस भानु हंस उँजियारा, षट दल कमल मँझार शब्द ररंकारा है।।18।।

महा सुन्न सिंध बिषमी घाटी, बिन सतगुरु पावै नहिं बाटी।

व्याघर सिहं सरप बहु काटी, तहँ सहज अचिंत पसारा है।।19।।

अष्ट दल कमल पारब्रह्म भाई, दहिने द्वादश अंचित रहाई।

बायें दस दल सहज समाई, यो कमलन निरवारा है।।20।।

पाँच ब्रह्म पांचों अँड बीनो, पाँच ब्रह्म निःअच्छर चीन्हों।

चार मुकाम गुप्त तहँ कीन्हो, जा मध बंदीवान पुरुष दरबारा है।। 21।।

दो पर्वतके संध निहारो, भँवर गुफा तहां संत पुकारो।

हंसा करते केल अपारो, तहाँ गुरन दर्बारा है।।22।।

सहस अठासी दीप रचाये, हीरे पन्ने महल जड़ाये।

मुरली बजत अखंड सदा ये, तँह सोहं झनकारा है।।23।।

सोहं हद तजी जब भाई, सत्तलोककी हद पुनि आई।

उठत सुगंध महा अधिकाई, जाको वार न पारा है।।24।।

षोडस भानु हंसको रूपा, बीना सत धुन बजै अनूपा।

हंसा करत चँवर शिर भूपा, सत्त पुरुष दर्बारा है।।25।।

कोटिन भानु उदय जो होई, एते ही पुनि चंद्र लखोई।

पुरुष रोम सम एक न होई, ऐसा पुरुष दिदारा है।।26।।

आगे अलख लोक है भाई, अलख पुरुषकी तहँ ठकुराई।

अरबन सूर रोम सम नाहीं, ऐसा अलख निहारा है।।27।।

ता पर अगम महल इक साजा, अगम पुरुष ताहिको राजा।

खरबन सूर रोम इक लाजा, ऐसा अगम अपारा है।।28।।

ता पर अकह लोक है भाई, पुरुष अनामि तहां रहाई।

जो पहुँचा जानेगा वाही, कहन सुनन ते न्यारा है।।29।।

काया भेद किया निरुवारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।

माया अविगत जाल पसारा, सो कारीगर भारा है।।30।।

आदि माया कीन्ही चतूराई, झूठी बाजी पिंड दिखाई।

अवगति रचना रची अँड माहीं, ताका प्रतिबिंब डारा है।।31।।

शब्द बिहंगम चाल हमारी, कहैं कबीर सतगुरु दई तारी।

खुले कपाट शब्द झनकारी, पिंड अंडके पार सो देश हमारा है।।32।।

कबीर साहेब कह रहे हैं कि पिण्ड (शरीर) व् अण्ड (ब्रम्हांड) के पार आठवें कमल में पारब्रम्ह का स्थान सतलोक है।वही उनका धाम है।

इस शरीर में एवं इस ब्रम्हांड में जो कुछ भी दिखाई या सुनाई देता है, आँख और कान बंद करके जो प्रकाश देखा जाता है व् जो अनहद धुन सुना जाता है, वह सब इसी ब्रम्हांड का है।काल का हीं जाल है।सतलोक इन ब्रम्हांडो के पार है जिसे पूर्ण गुरु के  शरण व् सच्चे मंत्रो के जाप, जिनका संकेत उपर किया गया है, के बिना नहीं पाया जा सकता।

स्पष्ट है कि पूर्ण गुरु तीन चरणों में नाम उपदेश अपने शिष्यों को करते है -

1. प्रथम चरण 

में "पॉंच नाम" जिसे ब्रम्ह गायत्री मन्त्र कहा जाता है, प्रदान किया जाता है।तथा सारी बुराइयाँ छुड़वाई जाती है।

2. दूसरे चरण

में "दो अक्षर का मन्त्र", जिसे सतनाम कहा जाता है प्रदान किया जाता है।

3. तीसरे चरण

में "एक अक्षर मन्त्र" जिसे "सारनाम" कहा जाता है, प्रदान किया जाता है।

सभी मन्त्रों की जाप विधि भी भिन्न भिन्न होता है।

इस पुरे कोर्स को करने से पूर्ण मुक्ति संभव है।जिस गुरु के पास यह पूरा कोर्स नहीं है व् जिसे परमात्मा कविर्देव ने नाम दान के लिए अधिकृत नहीं किया उस गुरु से नाम प्राप्त करके की गयी साधना भी व्यर्थ है।

कर नैनों दीदार महलमें प्यारा है।।टेक।।

 काम क्रोध मद लोभ बिसारो, शील सँतोष क्षमा सत धारो।

 मद मांस मिथ्या तजि डारो, हो ज्ञान घोडै असवार, भरम से न्यारा है।1।

 धोती नेती बस्ती पाओ, आसन पदम जुगतसे लाओ। 

कुम्भक कर रेचक करवाओ, पहिले मूल सुधार कारज हो सारा है।2। 

मूल कँवल दल चतूर बखानो, किलियम जाप लाल रंग मानो।

 देव गनेश तहँ रोपा थानो, रिद्धि सिद्धि चँवर ढुलारा है।3। 

स्वाद चक्र षटदल विस्तारो, ब्रह्म सावित्री रूप निहारो। 

उलटि नागिनी का सिर मारो, तहाँ शब्द ओंकारा है।।4।। 

नाभी अष्ट कमल दल साजा, सेत सिंहासन बिष्णु बिराजा। 

हरियम् जाप तासु मुख गाजा, लछमी शिव आधारा है।।5।।

 द्वादश कमल हृदयेके माहीं, जंग गौर शिव ध्यान लगाई। 

सोहं शब्द तहाँ धुन छाई, गन करै जैजैकारा है।।6।। 

षोड्श कमल कंठ के माहीं, तेही मध बसे अविद्या बाई।

 हरि हर ब्रह्म चँवर ढुराई, जहँ श्रीयम् नाम उचारा है।।7।। 

तापर कंज कमल है भाई, बग भौंरा दुइ रूप लखाई। 

निज मन करत वहाँ ठकुराई, सो नैनन पिछवारा है।।8।। 

कमलन भेद किया निर्वारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।

 सतसँग कर सतगुरु शिर धारा, वह सतनाम उचारा है।।9।।

 आँख कान मुख बन्द कराओ, अनहद झिंगा शब्द सुनाओ। 

दोनों तिल इक तार मिलाओ, तब देखो गुलजारा है।।10।। 

चंद सूर एक घर लाओ, सुषमन सेती ध्यान लगाओ।

 तिरबेनीके संधि समाओ, भौर उतर चल पारा है।।11।। 

घंटा शंख सुनो धुन दोई, सहस्र कमल दल जगमग होई।

 ता मध करता निरखो सोई, बंकनाल धस पारा है।।12।।

 डाकिनी शाकनी बहु किलकारे, जम किंकर धर्म दूत हकारे।

 सत्तनाम सुन भागे सारें, जब सतगुरु नाम उचारा है।।13।। 

गगन मँडल बिच उर्धमुख कुइया, गुरुमुख साधू भर भर पीया।

 निगुरो प्यास मरे बिन कीया, जाके हिये अँधियारा है।।14।।

 त्रिकुटी महलमें विद्या सारा, धनहर गरजे बजे नगारा।

 लाल बरन सूरज उजियारा, चतूर दलकमल मंझार शब्द ओंकारा है।15। 

साध सोई जिन यह गढ लीनहा, नौ दरवाजे परगट चीन्हा।

 दसवाँ खोल जाय जिन दीन्हा, जहाँ कुलुफ रहा मारा है।।16।।

 आगे सेत सुन्न है भाई, मानसरोवर पैठि अन्हाई।

 हंसन मिलि हंसा होई जाई, मिलै जो अमी अहारा है।।17।।

 किंगरी सारंग बजै सितारा, क्षर ब्रह्म सुन्न दरबारा। 

द्वादस भानु हंस उँजियारा, षट दल कमल मँझार शब्द ररंकारा है।।18।। 

महा सुन्न सिंध बिषमी घाटी, बिन सतगुरु पावै नहिं बाटी। 

व्याघर सिहं सरप बहु काटी, तहँ सहज अचिंत पसारा है।।19।।

 अष्ट दल कमल पारब्रह्म भाई, दहिने द्वादश अंचित रहाई।

 बायें दस दल सहज समाई, यो कमलन निरवारा है।।20।। 

पाँच ब्रह्म पांचों अँड बीनो, पाँच ब्रह्म निःअच्छर चीन्हों। 

चार मुकाम गुप्त तहँ कीन्हो, जा मध बंदीवान पुरुष दरबारा है।। 21।। 

दो पर्वतके संध निहारो, भँवर गुफा तहां संत पुकारो। 

हंसा करते केल अपारो, तहाँ गुरन दर्बारा है।।22।। 

सहस अठासी दीप रचाये, हीरे पन्ने महल जड़ाये। 

मुरली बजत अखंड सदा ये, तँह सोहं झनकारा है।।23।।

 सोहं हद तजी जब भाई, सत्तलोककी हद पुनि आई। 

उठत सुगंध महा अधिकाई, जाको वार न पारा है।।24।। 

षोडस भानु हंसको रूपा, बीना सत धुन बजै अनूपा। 

हंसा करत चँवर शिर भूपा, सत्त पुरुष दर्बारा है।।25।। 

कोटिन भानु उदय जो होई, एते ही पुनि चंद्र लखोई। 

पुरुष रोम सम एक न होई, ऐसा पुरुष दिदारा है।।26।। 

आगे अलख लोक है भाई, अलख पुरुषकी तहँ ठकुराई। 

अरबन सूर रोम सम नाहीं, ऐसा अलख निहारा है।।27।।

 ता पर अगम महल इक साजा, अगम पुरुष ताहिको राजा। 

खरबन सूर रोम इक लाजा, ऐसा अगम अपारा है।।28।।

 ता पर अकह लोक है भाई, पुरुष अनामि तहां रहाई।

 जो पहुँचा जानेगा वाही, कहन सुनन ते न्यारा है।।29।। 

काया भेद किया निरुवारा, यह सब रचना पिंड मँझारा। 

माया अविगत जाल पसारा, सो कारीगर भारा है।।30।। 

आदि माया कीन्ही चतूराई, झूठी बाजी पिंड दिखाई। 

अवगति रचना रची अँड माहीं, ताका प्रतिबिंब डारा है।।31।। 

शब्द बिहंगम चाल हमारी, कहैं कबीर सतगुरु दई तारी। 

खुले कपाट शब्द झनकारी, पिंड अंडके पार सो देश हमारा है।।

आपकी गीता अध्याय 4 श्लोक 34-   गीता भगवान  (काल भगवान ) कह रहा है की अर्जुन तु उस  तत्वदर्शी संत के पास जाकर भलीभाँति दण्डवत् प्रमाण करके परमात्मा पाने का मार्ग पूछ वह तत्व ज्ञान देने वाला महत्मा का ज्ञान  मुझे नहीं मालूम । आज वह तत्व ज्ञान देने वाला महत्मा / संत आज धरती पर आ चुका है जो संत रामपाल नाम से विख्यात है सभी शिक्षित भाई /बहनों से दास हाँथ जोड़कर विनती करता है कि यह वर्तमान समय बार बार नहीं आयेगा संत जी की शरण आके अपना कल्याण करके लख 84 प्रकार के  जीव /जन्तु से बचें । www.jagatgururampalji.org  पर अमृत वचन भी सुन सकते हैं जी।और संत जी जो नाम मंत्र देते हैं उनमें 1- श्री दुर्गा जी 2- श्री शंकर जी, 2-श्री  ब्रह्मा जी, 3- श्री गणेश जी, 4- विष्णु जी  इत्यादि सभी के मंत्र जाप करने को दिया जाता है ।जिससे हमारे शरीर में इन सभी देवों का शरीर में बने कमलों का जाप करने से करने से गीता जी अनुसार लाभ प्राप्त हो। फिर ज्ञान हो की मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता  इसके कुछ दिन बाद फिर आप को दुसरा नाम दिया जाएगा जिसमें दो मंत्र होते हैं जिसे= सतनाम कहते हैं  (इसमें दो अक्षरों में हैं जो गुप्त दिया जाता ) इसके बाद = सारनाम दिया जाता है जो गुरू जी द्वारा दिया जाता है ।आप सब जन को www.jagatgururampalji.org पर अमृत वचन मोबाइल द्वारा देख सकते हैं  कि परमात्मा साकार है और वह मनुष्य जैसा है ।सत् साहेब 

अवश्य पढे , पर्भु प्रेमी आत्माऐ 

 परदेश(काललोक) से स्वदेश(अमरलोक) लौटने की सडक(विधि)

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घीसादास जी कहते है मूल कमल से सीधी सडक जात है सतनाम(ओम + तत) ले जा उडा कर...

जैसे हमे अपने घर से दूसरे देश जाना हो तो पहले बस या कार से by सडक airport  जायेगे उसके बाद हम बस कार से नही जा सकते फिर हमे airport से हवाई जहाज से उडकर जाना पडेगा.. 

ठीक इसी तरह मूल कमल से त्रिकुटी  तक सीधी सडक जाती है गुरू जी का प्रथम मंत्र समझो बस कार जो हमे त्रिकुटी तक लेकर जायेगा.. त्रिकुटी हवाई अडडा समझो.. त्रिकुटी से आगे हमे सतनाम का मंत्र उडाकर लेकर जायेगा..  सतनाम के दो अक्षर को हवाई जहाज समझो..  ( नाम की नौका ही भवसागर से पार करती है)

विशेष जानकारी->

नोट - हमारा शरीर एक ब्रह्मांड का नक्शा है जो कुछ एक ब्रह्मांड मे है वो हम शरीर मे भी देख सकते है जैसे internet पर आप  कुछ भी देख सकते हो इसी तरह परमात्मा की पावर से हम ब्रह्मांड को इस शरीर मे देख सकते है संत कमल बोलते है योगी चक्र बोलते है ये कमल चक्र इन देवताओ के आवास स्थल है जहा ये रहते है ये ब्रह्मांड मे ही है ये समझ लो हमारा शरीर मिनी ब्रह्मांड है ये देवता कमल के अन्दर हमारे शरीर मे भी विधमान है..  

विस्तार से -  संत रामपाल जी महाराज के तीन बार मे नामदान देते है प्रथम नाम , दूसरा नाम, तीसरा नाम (सारनाम)...   अब जानिये तीनो मंत्रो का महत्व

प्रथम नाम का महत्व====== 

ये ब्रह्मांड सात कमलो(चक्रो) मे बांटा हुआ है और हर कमल मे एक एक देवी देवता को प्रधान बना रखा है..   

मूल कमल --------

मूल कमल से सीधी सडक त्रिकुटी तक जाती है.. जब साधक की भक्ति पूरी हो जाती है तो कबीर परमेश्वर एक विमान लेकर गुरू रूप मे आते है.. 

(नोट - हमारी आत्मा पर पांच शरीर चढे हुए है स्थूल, सूक्ष्म ,कारण, महाकारण, कैवल्य शरीर..)

हम 5 तत्व के स्थूल शरीर को छोडकर सूक्षम शरीर मे आ जाते है तब हमारा विमान पहले मूल कमल से गुजरता है वहा गणेश जी विधमान है हम गंणेश के मंत्र की कमाई उनको देकर उनके कर्ज से मुक्त हो जायेगे..

फिर गंणेश जी हमे आगे जाने की अनुमति देगे... 

स्वाद कमल------

फिर हम स्वाद कमल मे प्रवेश कर जायेगे यहा के प्रधान ब्रह्मा और सवित्री है.. हम ब्रह्मा सवित्री के मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि ब्रह्मा हमारी उत्पति कर्ता है..  इसके बाद ब्रह्मा जी हमे आगे जाने की अनुमति हमे देगे..

नाभी कमल------

फिर हम नाभी कमल मे प्रवेश कर जायेगे नाभी कमल मे विष्णु लक्ष्मी प्रधान है हम इनके मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि विष्णु पालन पोषण कर्ता है. फिर विष्णु जी हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति देगे.. 

हदय कमल----- 

फिर हम हदय कमल मे प्रवेश कर जायेगे. यहा के प्रधान शिव पार्वती है इनके मंत्र की कमाई इनको देकर इनका कर्ज चुका देगे.. क्योकि शिव संहार करते है.. फिर शिव हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति द्गे.

कंठ कमल-----

फिर हम कंठ कमल मे प्रवेश कर जायेगे.. यहा की प्रधान दुर्गा माता है हम दुर्गा माता के मंत्र की कमाई दुर्गा माता को देकर इसका कर्ज चुका देगे.. फिर दुर्गा माता हमे आगे जाने की अनुमति देगी.. 

त्रिकुटी कमल-----

फिर हम त्रिकुटी कमल दसवे द्वार मे प्रवेश कर जायेगे... दसवे द्वार मे आगे चलकर त्रिवेणी आती है..  तीन रास्ते हो जाते है..  ये हवाई अडडा समझो प्रथम मंत्र हमे यहा तक लाकर छोड देते है.  इससे आगे सतनाम के दो अक्षर उडाकर लेकर जाते है..

दूसरा नाम( सतनाम) का महत्व

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त्रिकुटी मे आगे चलकर तीन रास्ते हो जाते है जिसे त्रिवेणी बोलते है.. वहा काल के पुजारी दायं बाय चले जाते है..  लेकिन सामने जो रास्ता होता है उसको ब्रह्मरंद( बज्रकपाट) बोलते है.. वह अमरलोक जाने का रास्ता है.. कबीर परमात्मा कहते है शिव ने भी 97 बार try किया था.. लेकिन वो भी इस गेट को नही खोल पाये थे.. वो भी उल्टे हट गये थे क्योकि शिव के पास सतनाम मंत्र नही है.. 

गरीब-      ब्रह्मरंद को खोलत है कोई एक

            द्वारे से फिर जात है ऐसे बहुत अनेक

इस ब्रह्मरंद के बज्रकपाट को सतनाम के दो अक्षर खोलते है तब हम दसवे द्वार मे आगे सहंसार कमल मे प्रवेश करते है.. (यहा से ब्रह्मा विष्णु शिव के पिता काल की सीमा शुरू होती है.. जहा पर काल अपने भयानक वास्तविक रूप मे बैठा है) आगे बहुत भयानक आवाजे आती है डाकनी शाकनी बहुत सारी मिलती है..  सतनाम के मंत्र को सुनकर सब भाग जाते है.. (सतनाम मे इतनी पावर है अगर 12 करोड यम के दूत और साथ मे ब्रह्मा विष्णु शिव का पिता काल ये सभी एक साथ आ जाये मात्र एक जाप सबको उठाकर फैक देगा) आगे चलकर काल अपने वास्तविक रूप मे बैठा नजर आता है लेकिन गुरू रूप मे परमात्मा साथ होते है.. तब हमे तीनो मंत्रो का जाप एक साथ करना होता है..   

तीसरे नाम (सारनाम) का महत्व

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(सतनाम के बाद जब हम तीसरा सारनाम  गुरू जी से लेते है तो गुरू जी सतनाम के दो अक्षर मे ही सारनाम का एक अक्षर एड कर देते है ऐसे ब्रह्म परब्रह्म पूर्णब्रह्म तीनो का जाप एक साथ करना होता है..  जाप विधि गुरू जी बताते है गीता  अध्याय 17 के 23 मे लिखा है ओम- तत- सत ये पूर्ण परमात्मा का मंत्र(नाम) कहा है ओम सीधा ही है तत सत कोड वर्ड है सतगुरू रामपाल जी महाराज बतायेगे.. फिर इन तीनो मंत्र का एक साथ जाप करना होता है सतनाम और सारनाम एक नाम बन जाता है)

जब हम दसवे द्वार के last मे जाते है तो वहा काल वास्तविक रूप मे बैठा है.. वहा हम जब इन तीनो मंत्रो (सतनाम और सारनाम)का जाप एक साथ करते है तो काल निरंजन सर झुका देता है गीता 8/13 श्लोक मे ओम मंत्र काल ब्रह्म का है इसकी कमाई काल अपने पास रख लेता है और हमे आगे आठवे कमल ग्यारहवे द्वार मे जाने की अनुमति दे देता है. इसके सर के पीछे ग्यारहवा द्वार है. जब काल सर झुकाता है तो हम इसके सर पर पैर रख कर ग्यारहवे द्वार परब्रह्म के लोक आठवे कमल मे प्रवेश कर जाते है वहा हमारा सूक्ष्म शरीर छुट जाता है हमारे पास तत और सत मंत्र की कमाई शेष रह जाती है जब हम परब्रह्म(अक्षरपुरूष) के लोक मे आगे बढते जाते है हमारी तत मंत्र की कमाई परब्रह्म रख लेता है क्योकि तत मंत्र परब्रह्म का है और हमे आगे जाने की अनुमति दे देता है. हमारे कारण महाकारण शरीर छुट जाते है केवल कैवल्य शरीर शेष रह जाता है (नौवे कमल मे बारहरवा द्वार पार करके अमरलोक है) ग्यारहवा द्वार के last मे भव्वर गुफा आती है वहा पर मानसरोवर बना है वहा से अमरलोक दिखाई देने लगता है वहा परमात्मा इस आत्मा को मानसरोवर मे स्नान करवाते है तब इस आत्मा का कैवल्य शरीर छुट जाता है और वास्तविक नूरी रूप बन जाता है तब वहा इस आत्मा के शरीर का प्रकाश  सोलह सुरज और चंद्रमा जितना हो जाता है.. फिर सत मतलब सारनाम मंत्र की कमाई लेकर ये आत्मा सतलोक मतलब अमरलोक मे प्रवेश कर जाती है..  वहा सदा के लिए स्थाई हो जाती है.. मौज मनाती है नाचती गाती है परमात्मा कबीर साहेब के रोज दर्शन करती है..  इस तरह से ये आत्मा काल के जाल से निकलकर अपने घर अपने वतन अमरलोक लौट आती है.. फिर कभी काल के लोक मे वापिस नही आती..  सदा के लिए अमर और स्थाई हो जाती है.. सदा के लिए जन्म मरन से पीछा छुट जाता है..  फोटो मे लिखी कबीर सागर की अमरलोक की कबीर वाणी पढिये.. वहा जन्म मरण बुढापा नही होता सदा युवा रहती है आत्मा..  अमरलोक मे भी नर नारी है परिवार है. लेकिन शब्द शक्ति से बच्चे पैदा होते है गर्भ से नही होते..  वहा कोई कर्म नही करना पडता.. अमरलोक मे बाग बगीचे है फल फूल नदी मानसरोवर है लेकिन सब कुछ नूरी है हिरे की तरह स्वय प्रकासित..  वहा सभी प्रेम से रहते है..  कोई किसी को जरा भी बुरा नही बोलता..

सत साहेब जैसा इस दास ने गुरू जी के ज्ञान को समझा वैसा बता दिया कोई गलती हो तो गुरू जी क्षमा करना..  अज्ञानी जीव हु.. 

        अमरलोक  कबीर परमेश्वर की वाणी मे

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चल देखो देश हमारा रे, जहाँ कोटि पदम उजियारा रे, 

 देखो देश हमारा रे,जहाँ उजल भँवर गुंजारा रे, 

चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चवंर सुहगंम डारा रे, 

चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चन्द्र सूरज नहीं तारा रे, 

चल देखो देश हमारा रे, नहीं धर अम्बर कैनारा रे, 

चल देखो देश हमारा रे, जहाँ अनन्त फूल गुलजारा रे, 

चल देखो देश हमारा रे, जहाँ भाटी चवै कलारा रे, 

चल देखो देश हमारा रे, जहाँ धूमत है मतवारा रे, 

रे मन कीजै दारमदारा रे तुझे ले छोडूं दरबारा रे,

 फिर वापिस ना ही आवे रे सतगुरु सब नाँच मिटावै रे, 

चल अजब नगर विश्रामा रे, तुम छोड़ो देना बाना रे, 

चल देखो देश अमानी रे, जहाँ कुछ पावक ना पानीरे, 

चल देखो देश अमानी रे, जहाँ झलकै बारा बानी रे, 

चल अक्षर धाम चलाऊं रे, मैं अवगत पंथ लखाऊं रे,

 कर मकरतार पियाना रे, क्यों शब्दै शब्द समाना रे, 

जहाँ झिलझिल दरिया नागर रे, जहाँ हंस रहे सुखसागर रे, जहाँ अनहद नाद बजन्ता रे, जहाँ कुछ आदि नहीं अन्ता रे, जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे,त जहाँ हंस रहे सुख तीरा रे, जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे, जहाँ यम दण्ड नहीं दुख पीडा रे ..आदरणीय गरीब दासजी महाराज परमेश्वर कबीर साहिब जी को सतलोक में आँखों देख कर बता रहे हैं 

चल देखो देश अमानी रे मैं तो सतगुरु पर कुर्बानी रे, चल देखो देश बिलन्दा रे, जहाँ बसे कबीरा जिन्दा रे, चल देखो देश अगाहा रे, जहाँ बसे कबीर जुलाहा रे चल देखो देश अमोली रे, जहाँ बसे कबीरा कोली रे 

चल देखो देश अमाना रे, जहाँ बुने कबीरा ताना रे, 

चल अवगत नगर निबासा रे, जहाँ नहीं मन माया का बासा रे चल देखो देश अगाहा रे, जह बसै कबीर जुलाहा रे.. .

हे मालिक आपके चरणों में कोटि कोटि दण्डवत् प्रमाण, ऐसा निर्मल ग्यान देने के लिए...

ऐसा निर्मल ग्यान है जो निर्मल करे शरीर,

और ग्यान मण्डलीक कहै ये चकवै ग्यान कबीर। 

और ग्यान सब ग्यानडी कबीर ग्यान सो ग्यान,

जैसे गोला तोब का अब करता चलै मैदान।

और संत सब कूप है, केते झरिया नीर,

दादू अगम अपार है ये दरिया सत् कबीर

Plz visit - www.jagatgururampalji.org

बिना सदगुरू ज्ञान नहीं होता। 

प्रथम सदगुरू स्वयं परमात्मा होता है।

गुरू बिन काहु न पाया ज्ञाना।

ज्यों थोथा भुस छिड़े मूढ किसाना। 

गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी ।

समझे न सार रहे अज्ञानी।

ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 96 मंत्र 16

स्वायुधः सोतृभिः पृयमानोऽभयर्ष गुह्यं चारु नाम।

अभि वाजं सप्तिरिव श्रवस्याभि वायुमभि गा देव सोम।।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17

शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।

कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।

भगवद गीता।

अध्याय 4 का श्लोक 32

एवम्, बहुविधाः, यज्ञाः, वितताः, ब्रह्मणः, मुखे,

कर्मजान्, विद्धि, तान्, सर्वान्, एवम्, ज्ञात्वा, विमोक्ष्यसे।।32।।

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शास्त्रों के अनुसार मित्रता वाले नक्षत्र, शत्रुता वाले नक्षत्र एवं ग्रहों से सम्बन्ध

शास्त्रों के अनुसार किस नक्षत्र की किस नक्षत्र से मित्रता तथा किस नक्षत्र से शत्रुता एवं किस से सम भाव रहता है?   शास्त्रों में नक्षत्रों के...