..........🌹प्रिया आत्मन🌹..............
"योनमुद्रा"
काम उर्जा का साक्षी साधना में उपयोग करने का बेजोड़ उपाय...।
सद्गुरु इसे 'योनमुद्रा' कहते हैं। जब भी मन को कामवासना पकड़े या उत्तेजना हो, तो आत्मग्लानि न महसूस करते हुए इस प्रयोग को करें। उर्जा यदि कामकेन्द्र पर पहुंच चुकी है, तो उसे लौटाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है! तो क्यों न हम इस उर्जा का, जो उठ चुकी है, यदि हम इसका उपयोग नहीं करेंगे तो यह अपना काम करेगी! 'सृजन' नहीं, तो 'विध्वंस'!! उर्ध्वगामी नहीं तो अधोगामी! इस बाहर जाती उर्जा का, क्यों न हम भीतर के लिए उपयोग करें?
वे कहते हैं कि' कामवासना के पकड़ने पर, मूत्रद्वार और गुदाद्वार दोनों को भीतर सिकोड़ लें, ठीक उसी तरह जिस तरह से हम मल-मूत्र को रोकते हैं। और सारा ध्यान सिर में केन्द्रित करें, ठीक उसी तरह जिस तरह से हम कमरे में बैठे छत को देखते हैं। आँखें बंद करके सारा ध्यान सिर में लगा दें, जहां अंतिम सहस्त्रार चक्र है।
हम चकित होंगे! यदि हमने मूत्रद्वार और गुदाद्वार को भीतर सिकोड़ लिया (जिसे मूलबंध लगाना कहते हैं। सक्रिय ध्यान करें तो यह 'अपने' से लगता है।)। और आँखें बंद कर सारा ध्यान सिर में केन्द्रित करते हैं... और देखते रहते हैं... देखते रहते हैं... देखते रहते हैं, तो कुछ ही क्षणों में कामकेन्द्र (मूलाधार) पर उठी उर्जा, रीढ़ के माध्यम से चक्रों पर गति करती हुई सहस्त्रार की ओर, यानी काम से राम की ओर बढ़ने लगती है।
...एक बात और! इस प्रयोग को हम एक महत्वपूर्ण 'समय' पर भी कर सकते हैं। जब हम रात को सोते हैं, तो हमारी श्वास गहरी होती है। यानी नाभि के नीचे कामकेन्द्र को छूती है। और सुबह तक कामकेन्द्र पर बहुत सारी उर्जा इकठ्ठी हो जाती है, जिसके कारण लिंगोत्थान होता है... बिस्तर से उठने के बाद यह उर्जा मूत्रद्वार से बाहर चली जाती है! यानी यह उर्जा बहुत थी 'कामवासना' के लिए! अर्थात हमारी जो उर्जा हम कामवासना में खर्च कर रहे हैं, वह उर्जा 'फिजूल' जा रही!! तो क्यों न हम इस बाहर जाती उर्जा का 'स्खलन' से 'उर्ध्वगमन' की ओर मुंह मोड़ दें?
सुबह जैसे ही नींद से बाहर आएं, सोये रहें और आँखें बंद कर इस प्रयोग को शुरू करें। मूत्रद्वार और गुदाद्वार को भीतर सिकोड़ लें और फिर सारा ध्यान सिर में केन्द्रित करें। हम यहां एक चमत्कार घटित होते देखेंगे! कुछ ही क्षणों में उर्जा रीढ़ के माध्यम से कामकेन्द्र से उपर की ओर बहनी शुरू हो जायेगी और कामकेन्द्र शिथिल हो जायेगा। इस तरह से हम बाहर जाती उर्जा को भीतर की ओर दिशा दे देंगे, तो ध्यान के लिए हमें अलग से समय और उर्जा की जरूरत नहीं रह जायेगी। कहते हैं कि बूंद- बूंद से ही घड़ा भरता है... लेकिन घड़े में यदि छेद हो तो नहीं भरेगा! इस बाहर जाती उर्जा को भीतर लौटाना ही घड़े का छेद बंद करना है। भीतर लौटकर यह उर्जा हमारे साक्षी की ओर बहने लगती है, तथा साक्षी को और भी प्रगाढ़ करती है। यह छोटे - छोटे प्रयोग यदि हम अपनाते हैं, तो ध्यान का हमारे जीवन में प्रवेश आसान हो जाएगा।
(यह विधि ओशो की पुस्तक 'ओशो ध्यान योग' में संकलित है)
ल्बर्ट आइंस्टीन ने खोज की और निश्चित ही यह सही होगी, क्योंकि अंतरिक्ष के बारे में इस व्यक्ति ने बहुत कठोर परिश्रम किया था। उसकी खोज बहुत गजब की है। उसने स्वयं ने कई महीनों तक इस खोज को अपने मन में रखी और विज्ञान जगत को इसकी सूचना नहीं दी क्योंकि उसे भय था कि कोई उस पर विश्वास नहीं करेगा।
खोज ऐसी थी कि लोग सोचेंगे कि वह पागल हो गया है। परंतु खोज इतनी महत्वपूर्ण थी की उसने अपनी बदनामी की कीमत पर जग जाहिर करने का तय किया।
खोज यह थी कि गुरुत्वाकर्षण के बाहर तुम्हारी उम्र बढ़नी रूक जाती है। यदि आदमी दूर के किसी ग्रह पर जाए और उसे वहां तक पहुंचने में तीस साल लगे और फिर तीस साल में नीचे आये, और जब उसने पृथ्वी को छोड़ा था उसकी उम्र तीस साल थी, तब यदि तुम सोचो कि जब वह पुन: आए तब वह नब्बे साल का होगा, तो तुम गलत हो, वह अब भी तीस साल का ही होगा। उसके सभी दोस्त और संगी साथी कब्र में जा चुके होंगे। शायद एक या दो अब भी जिंदा हो परंतु उनका एक पैर कब्र में होगा। परंतु वह उतना ही जवान होगा जितना तब था जब उसने जमीन को छोड़ा था।
जिस क्षण तुम गुरुत्वाकर्षण के बाहर जाते हो, उम्र की प्रक्रिया रूक जाती है। उम्र बढ़ रही है तुम्हारे शरीर पर एक निश्चित दबाव के कारण। जमीन लगातार तुम्हें खींच रही है और तुम इस खिंचाव से लड़ रहे हो। तुम्हारी ऊर्जा इस खींच रही है और तुम इस खिंचाव से लड़ रहे हो। तुम्हारी ऊर्जा इस खिंचाव सक बाधित होती है। व्यय होती है। परंतु एक बार जब तुम इस जमीन के गुरुत्वाकर्षण से बहार हो जाते हो तुम वैसे ही बने रहते हो जैसे हो। तुम अपने समसामयिक लोगों को नहीं पाओगे, तुम वह फैशन नहीं पाओगे जो तुमने छोड़ी थी। तुम पाओगे कि साठ साल बीत गये।
परंतु गुरुत्वाकर्षण के बाहर होने की अनुभूति ध्यान में भी पाई जा सकती है—ऐसा होता है। और यह कई लोगों को भटका देती है। अपनी बंद आँखो के साथ जब तुम पूरी तरह से मौन हो तुम गुरुत्वाकर्षण के बाहर हो। परंतु मात्र तुम्हारा मौन गुरुत्वाकर्षण के बाहर है, तुम्हारा शरीर नहीं। परंतु उस क्षण में जब तुम अपने मौन से एकाकार होते हो, तुम महसूस करते हो कि तुम ऊपर उठ रहे हो। इसे योग में ‘’हवा में उड़ना’’ कहते है।
और बिना आंखे खोले तुम्हें लगेगा कि यह मात्र लगता ही नहीं बल्कि तुम्हारा शरीर मौन गुरुत्वाकर्षण के बाहर है—यक सच्चा अनुभव है। परंतु अभी भी तुम शरीर के साथ एकाकार हो। तुम महसूस करते हो कि तुम्हारा शरीर उठ रहा है। यदि तुम आँख खोलोगे तो पाओगे कि तुम उसी आसन में जमीन पर बैठे हो।
ओशो
दि न्यू डॉन
मनुष्य के मस्तिष्क की 20 महान शक्तियाँ
- मस्तिष्क में कल्पना शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा आशाओं और उद्देश्यों को साकार करने के तरीके सुझाएँ जाते हैं। इसमें इच्छा और उत्साह की प्रेरक क्षमता दी गई हैं, जिसके द्वारा योजनाओं और उद्देश्यों के अनुरूप कर्म किया जा सके। इसमें इच्छा शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा योजना पर लंबे समय तक काम किया जा सके।
- इसमें आस्था की क्षमता दी गई हैं, जिसके द्वारा पूरा मस्तिष्क
असीम बुद्धि की प्रेरक शक्ति की तरफ मुड जाता हैं तथा इस दौरान इच्छाशक्ति और तर्कशक्ति शान्त रहती हैं।
- इसमें तर्कशक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा तथ्यों और सिद्दांतों को अवधारणाओं, विचारों और योजनाओं में बदला जा सकता हैं।
- इसे यह शक्ति दी गई हैं कि यह दुसरें मस्तिष्कों के साथ मौन सम्प्रेषण (Transmission) कर सके, जिसे टेलीपैथी(Telepathy) कहते हैं।
- इसे निष्कर्ष की शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा अतीत का विश्लेषण करके भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जा सकता हैं। यह क्षमता स्पष्ठ करती हैं कि दार्शनिक भविष्य का अनुमान लगाने के लिए अतीत की तरफ क्यों देखते हैं।
- इसे अपने विचारों की प्रकर्ति
चुननें, संशोधित करने और नियंत्रित करने के साधन दिए गए हैं, इसके द्वारा व्यक्ति को अपने चरित्र के निर्माण का अधिकार दिया गया हैं, जोकि इच्छानुसार ढाला जा सकता हैं। और इसे यह शक्ति भी दी गई हैं कि यह यह तय करें कि मस्तिष्क में किस तरह के विचार प्रबल होंगे।
- इसे अपने हर विचार को ग्रहण करने,
Record करने और याद करने के एक अदभुदत फाइलइंग सिस्टम (filing system) दिया गया हैं जिसे स्मरण शक्ति कहा जाता हैं। यह अदभुद तंत्र अपने आप सम्बन्ध विचारों को इस तरह से वर्गीकृत कर देता हैं कि किसी विशिष्ट विचार को याद करने से उससे जुड़े विचार अपने आप याद आ
जातें हैं।
- इसे भावनाओं की शक्ति दी गई हैं। जिसके द्वारा यह शरीर को इच्छित कर्म के लिए प्रेरित का सकता हैं।
- इसे गोपनीय रूप से और ख़ामोशी से कार्य करने की शक्ति दी गई हैं जिससे सभी परिस्थितियों में विचार की गोपनीयता सुनिश्चित होती हैं।
- इसके पास सभी विषयों पर ज्ञान प्राप्त करने, संगठित करने, संगृहीत करने और व्यक्त करने की असीमित क्षमता होती हैं, चाहे यह ज्ञान भोतिकी का हो या रहस्यवाद का, बाह्यः जगत का हो या आन्तरिक जगत का।
- इसके पास शारीरिक सेहत को अच्छा बनायें रखने की शक्ति भी हैं और स्पष्ठ रूप से यह सभी बीमारियों के उपचार का एकमात्र स्त्रोत भी हैं बाकी सभी स्त्रोत तो सिर्फ योगदान देते हैं यह तो शरीर को संतुलित रखने के लिए मरम्मत-तंत्र भी चलाता हैं, जो स्वचालित हैं।
- इसमें रसायनों का अद्भुद स्वचालित तंत्र भी होता हैं जो शरीर के रखरखाव और मरम्मत के लिए आहार को आवश्यक तत्वों में बदलता हैं।
- यह हर्दय को अपने आप चलाता हैं, जिसके द्वारा यह रक्त के जरिएं भोजन को शरीर के हर अंग तह पहुचाता हैं और अवशिष्ट सामग्री तथा मृत कोशिकाओं
को शरीर से बाहर निकलता हैं।
- इसके पास आत्म-अनुशासन की शक्ति हैं, जिसके द्वारा यह किसी भी अच्छी आदत को ढाल लेता हैं और तब तक कायम रख सकता हैं, जब तक की आदत स्वचलित नहीं हो जाती।
- यहाँ हम प्रार्थना द्वारा असीम बुद्दिमता से सम्प्रेषण कर सकते हैं इसको प्रक्रिया बहुत आसान हैं इसके लिए आस्था के साथ अवचेतन मस्तिष्क के प्रयोग की जरुरत होती हैं।
- यह भौतिक जगत के हर विचार, हर औजार, हर मशीन और हर यन्त्र के अविष्कार
का एकमात्र जनक हैं।
- यह सुख और दुःख का एक मात्र स्त्रोत हैं यह गरीबी और अमीरी का स्त्रोत हैं इन दोनों विरोधी विचारों में से जिसकी शक्ति भी प्रबल होती हैं यह उसे अभिव्यक्ति
करने में अपनी उर्जा लगाता हैं।
- यह समस्त मानवीय संबंधों और समस्त मानवीय व्यवहारों
का स्त्रोत हैं इसी से मित्रता और शत्रुता होती हैं, जो इस बात पर निर्भर करता हैं कि इसे किस तरह के निर्देश दियें गए हैं।
- इसकें पास सभी बाह्य परिस्थितियों
और स्थितियों का विरोध करने तथा उनसे अपनी रक्षा करने की शक्ति हैं, हालंकि यह हमेशा उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकता।
- तर्क के भीतर इसकी कोई सीमा नहीं हैं, इसकी सीमायें वही हैं, जिन्हें व्यक्ति आस्था के आभाव के कारण स्वीकार करता हैं, यह सच हैं मस्तिष्क जो सोच सकता हैं और जिसमे विश्वास कर सकता हैं, उसे वह हासिल भी कर सकता हैं।
मानसिक तरंगे
कभी आपने सोचा है की कोई कोई व्यक्ति बहुत ही विलक्षण बुद्धि का होता है ..
ऐसा कई बार हम अपने आस पास होता देखते हैं जैसे की
एक बहुत ही मशहूर आदमी 4000 साल बाद आने वाले सप्ताह के दिनो को बता देता है
एक और आदमी था जो अँधा था और चाकू और काँटा भी हाथ से उठा नही पाता था
परन्तु जब उसने 13 साल की आयु में एक प्यानो धुन को सुना और उसी वक़्त सबको वही धुन वैसे
ही सुना के हैरान कर दिया
... यह हमारी बुद्धि का ही चमत्कार है .. हम अपनी बुद्धि का बहुत कम हिस्सा
केवल 10% हिस्सा ही प्रयोग कर पाते हैं
हमारा अचेतन मन हमारी शक्ति का ख़ज़ाना है अपने अंदर की उर्जा को जगा के हम अपने जीवन को और सुंदर बना सकते हैं
हमारे मस्तिष्क में जो तरंगे उठती है उनको उर्जा वान करके कई समस्याओ को सुलझा सकते हैं
तरंगे 4 तरह की है ..
डेल्टा तरंगे ,, हमारे शरीर के प्रत्येक चक्र को कुछ मिनट तक उर्जा दे कर जागृत करके इनको जागृत किया जा सकता है
यह मूल रूप से नींद की गहरी अवस्था होती है
थीटा तरंगे ... यह हमारी अर्ध चेतन अवस्था है इस में चक्रो को उर्जा दे के कल्पना शक्ति
संवेदन शीलता और सम्मोहन की अवस्था को पाया जा सकता है
अल्फ़ा तरंगे .. यह चेतन और अवचेतन मन का संगम कहलाती है ..यह हमारे सच और ख़्याली पुलाव की अवस्था
.इस में बाहरी चेतना और अंतरिक चेतना को चक्रो को जागृत कर के मिलाया जाता है
बीटा तरंगे .. यह पूर्ण चेतन अवस्था है ..इस में हमारा ध्यान अपनी सभी केंद्रों
पर रहता है पर हम बाहरी दुनिया के काम करते रहते हैं
इन तरंगो के माध्यम से आप जो भी जीवन का उद्देश्य पाना चाहे पा सकते हैं
बस ध्यान की अवस्था में आपको सोचना है की आपको सच में मिल गयी है
और यह विचार आपको पॉसिटीव [सकरात्मक]जीवन की सफलता की और लेते जाएँगे ...
संसार भर में कई मानसिक और आध्यतमिक डाक्टर इस को अपना रहे हैं और सफलता पा रहे हैं ..