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मंगलवार, 29 सितंबर 2020

#उपनिषद यात्रा -- #कठोउपनिषाद Upanishad #Yatra - #Kathupanishad


उपनिषद यात्रा -- कठोउपनिषाद

*उपनिषद यात्रा-सदगुरु ओशो के साथ*

      *आज हम एक ऐसी यात्रा पर चले है। जो पथ हजारों साल बाद भी उतना ही....साफ सुथरा और रमणीक है। वैसे तो* *भारत के अध्‍यात्‍म जगत में न जाने कितने हीर-मोती-पन्‍ने...भरे पड़े है। न जाने कितने चाँद सितारे जो संत बन कर चमक रहे है। जिनका प्रकाश सदियों से मनुष्‍य को पथ दिखाता रहा है....ओर करोड़ो सालों तक दिखाता रहेगा।*
      *लेकिन उन सब में उपनिषद अदभुत है। बेजोड़ है....जिनका कोई सानी नहीं है। आज से आप जगमगाते उन उपनिषदों को ओशो के वचनों से जीवित होता हुआ पाओगे। जो सालों से उन पर पड़ धूल-धमास। हटा को उनका अर्थ हमारे सामने लाये है मानों वो दोबारा जीवित हो गये है। आज कि यात्रा सुखद तो होगी ही इसके साथ हम आध्यात्मिक के उन गहरे रहस्यों को भी बार-बार छूते चले जायेंगे।*

      *नचिकेता और यम का संवाद।*
      *एक बच्‍चे का जिज्ञासु मन, नचिकेता मन, कितने-कितने प्रश्‍न उठाता है। कठोपनिषद बाल सुलभ मन। गहरे से गहरे प्रश्‍न उठाता है। मानों वो समय इतना अध्‍यात्‍म की उँचाई पर था कि ये गुढ़ प्रश्‍न एक बाल मन में भी उठ सकते है। अकसर तो मौत हमारे द्वार पर आती है। और हम उससे बचने के नाना उपाय करते रहते है।* *लेकिन नचिकेता खूद मौत के घर पर चला जाता हे। यह बड़ी ही प्रतीकात्मक कथा है। ख्‍याल रखना, तुम कहीं भी छुप जाओ मौत तुम्‍हें ढूंढ ही लेती है। परंतु नचिकेता जब मौत के घर जाता है तो वो वहाँ नहीं होती। कितना रहस्‍य है। मौत वहां थी ही नहीं।*
      *और नचिकेता ने मृत्‍यु से भी अमृत को खोज लिया। लेकिन सूत्र इतना ही है। कि अपनी इच्‍छा से अपनी स्‍वेच्‍छा से वह मौत के पास चला गया।*
      *जो व्‍यक्‍ति मृत्‍यु को भी स्‍वीकार कर लेता है, वह मृत्‍यु के पास चला जाता है। और वह अमृत पुत्र हो जाता है।*
    
      *‘’उपनिषद जीवन के रहस्‍य के संबंध में इस पृथ्‍वी पर अनूठे शास्‍त्र है। कठोपनिषद उन सब उपनिषदों में भी अनूठा है.....।*
      *कठोपनिषद बहुत बार आपने पढ़ा होगा। बहुत बार कठोपनिषद के संबंध में बातें सुनी होगी। *लेकिन कठोपनिषद जितना सरल मालूम पड़ता है, उतना सरल नहीं है।*
      *कठोपनिषद एक कथा हे, एक कहानी है। लेकिन उस कहानी में वह सब है, जो जीवन में छिपा है। जीवन को जानना हो तो मरने की कला सीखनी पड़ती है। जो मृत्‍यु से भयभीत है, वह जीवन से भी अपरिचित रह जाएगा। क्‍योंकि मृत्‍यु जीवन का गुह्मातम, गहन से गहन केंद्र है। केवल वे ही लोग जीवन को जान पाते है जो सचेतन, होशपूर्वक, स्‍वागत से भरे मृत्‍यु में प्रवेश कर सकते है........।*
      *........यम ने जो नचिकेता को कहा था, वहीं मैंने आपको कहा है। नचिकेता को जो हुआ है, वही आपको भी हो सकता है। लेकिन आपको कुछ करना पड़ेगा। मात्र सुनकर नहीं। जो सुना है, उसे जीकर। जो सुना है, उस दिशा में थोड़ा कदम उठाकर। हो सकता है निश्‍चित, आश्वासन पक्‍का है। जिसने भी कदम उठाए,वह कभी चूका नहीं।*
      यात्रा सोचने से नहीं होती, चलने से होती है। और उसकी भी चिंता मत लेना कि एक-एक कदम उठाकर, इतना लंबा पथ है यह ब्रह्म तक पहुंचने का, यह कैसे पूरा होगा? दो कदम दुनिया में कोई भी आदमी एक साथ उठा नहीं सकता। इसलिए कदम उठाने के मामले में सब समान है। कोई असमानता नहीं है। एक ही कदम एक बार उठता है। जितनी क्षमता आपकी है, उतना दीया काफी है। बस बैठ न जाएं, सोचने न लगें। जितना हम सोचने में समय गंवाते है, उतना प्रयास करने में लगा दे, उतना ध्‍यान बन जाए, तो मंजिल दूर नहीं है।‘’
कठोपनिषद
ओशो

ओशो ने दिया सबसे गहरे प्रश्न का जवाब - Deepest question answered by OSHO

 


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