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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

चित्त ही मंत्र है। प्रयत्न ही साधक है #ओशो The mind is the mantra.#Osho is the seeker


चित्त ही मंत्र है। प्रयत्न ही साधक है। गुरु उपाय है। शरीर हवि है। ज्ञान ही अन्न है। विद्या के संहार से स्वप्न पैदा होते है।

चित्त ही मंत्र है।

मंत्र ही अर्थ है: जो बार—बार पुनरूक्ति करने से शक्ति को अर्जित करे; जिसकी पुनरुक्ति शक्ति बन जाये। जिस विचार को भी बार—बार पुनरुक्त करेंगे, वह धीरे—धीरे आचरण बन जायेगा। जिस विचार को बार—बार दोहराएंगे, जीवन में वह प्रगट होना शुरू हो जायेगा। जो भी आप हैं, वह अनंत बार कुछ विचारों के दोहराए जाने का परिणाम है। सम्मोहन पर बड़ी खोजें हुईं। आधुनिक मनोविज्ञान ने सम्मोहन के बड़े गहरे तलों को खोजा है। सम्मोहन की प्रक्रिया का गहरा सूत्र एक ही है कि जिस विचार को भी वस्तु में रूपांतरित करना हो, उसे जितनी बार हो सके, दोहराओ। दोहराने से उसकी लीक बन जाती है; लीक बनने से मन का वही मार्ग बन जाता है। जैसे नदी बह जाती है, अगर एक गढ़ा खोदकर राह बना दी जाये, नहर बन जाती है—वैसे ही अगर मन में एक लीक बन जाये—किसी भी विचार की तो वह विचार परिणाम में आना शुरू हो जाता है।

फ्रांस में एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ—इमाइल कुए। उसने लाखों लोगों को केवल मंत्र के द्वारा ठीक किया। लाखों मरीज सारी दुनिया से कुए के पास पहुंचते थे। और उसका इलाज बड़ा छोटा था। वह सिर्फ मरीज को कहता था कि तुम यही दोहराए चले जाओ कि तुम बीमार नहीं हो, स्वस्थ हो, स्वस्थ हो रहे हो। रात सोते समय दोहराओ, सुबह उठते समय दोहराओ, दिन में जब स्मृति आ जाये तब दोहराओ। बस, एक विचार को दोहराते रहो कि मैं स्वस्थ हूं मैं निरंतर स्वस्थ हो रहा हूं। चमत्कार मालूम होता है कि कठिन—से—कठिन रोग के मरीज सिर्फ इस पुनरुक्ति से ठीक हुए। कुए के पास सारी दुनिया से लोग पहुंचने लगे। लेकिन बात तो बहुत छोटी है।

साधारणत: भी जब आप ठीक होते हैं बीमारी से, तो मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि उसमें दवा का काम तो दस प्रतिशत होता है, नब्बे प्रतिशत तो पुनरुक्ति का काम होता है। दवा को दिन में चार बार लेते हैं, आठ बार लेते हैं। जब भी दवा को लेते हैं, तभी मन में यह भाव आता है कि अब मैं ठीक हो जाऊंगा; ठीक दवा मिल गयी है।

होम्योपैथी की गोलियों में कुछ भी नहीं है; लेकिन उससे उतने ही लोग ठीक होते हैं जितने ऐलोपैथी से। अच्छा डाक्टर अगर पानी भी दे दे तो आप ठीक हो जायेंगे; क्योंकि सवाल दवा का नहीं है, अच्छे डाक्टर पर भरोसा होता है। भरोसा पुनरुक्ति बन जाता है। आप जानते हैं कि अच्छे डाक्टर ने इलाज किया है। इसलिए जो डाक्टर आप से कम फीस लेता है, वह शायद आपको ठीक न कर पाये। इसलिए, जो डाक्टर आप से ज्यादा फीस लेता है, वही आपको ठीक कर पायेगा; क्योंकि जब ज्यादा जेब आपकी खाली होती है, तो भरोसा बढ़ता है—लगता है कि बड़ा डाक्टर है। और आप जैसे बड़े मरीज को बड़ा डाक्टर चाहिए। पुनरुक्ति…।
मनोवैज्ञानिक एक प्रयोग किये हैं, जिसे वे पलेसिबो (Placebo ) कहते हैं—झूठी दवा। और बड़ी हैरानी मालूम हुई। एक बीमारी के मरीज हैं पचास; पच्चीस को वास्तविक दवा दी गयी और पच्चीस को सिर्फ पानी दिया गया। लेकिन पता किसी को भी नहीं है कि किसको पानी दिया गया, किसको दवा दी गयी। मरीजों को पता नहीं। वे सभी दवा मानकर चल रहे हैं। हैरानी हुई कि जितने दवा से ठीक हुए, उतने ही पानी से भी ठीक हुए। प्रतिशत बराबर वही रहा। इसलिए, जब कभी पहली बार कोई दवा खोजी जाती है तो उससे बहुत मरीज ठीक होते हैं। फिर धीरे—धीरे यह संख्या कम हो जाती है। इसलिए, हर दवा दो—तीन साल से ज्यादा नहीं चलती। क्योंकि जब पहली दफा दवा खोजी जाती है तो बड़ा भरोसा पैदा होता है कि अब खोज ली गई असली दवा। सारी दुनिया में मरीज उससे प्रभावित होते हैं। फिर धीरे— धीरे भरोसा कम होने लगता हैं; क्योंकि कभी कोई मरीज उससे ठीक भी नहीं होता। कभी कोई जिद्दी मरीज मिल जाता है, तो सुनता ही नहीं दवा की, न डाक्टर की। उसके कारण दूसरे मरीजों का भरोसा भी क्षीण होने लगता है। धीरे—धीरे दवा का प्रभाव खो जाता है। इसलिए हर दो साल में नयी दवाएं खोजनी पड़ती है।
दवाओं का प्रभाव, विज्ञापन ठीक से किया जाये, तो ही होता है। तो हर अखबार, पत्रिका, रेडियो, टेलीविजन—सब तरफ से प्रचार होना चाहिए। प्रचार ज्यादा कारगर है, जितनी दवा के तत्व, उससे ज्यादा। क्योंकि, वही प्रचार आपको सम्मोहित करेगा। वही प्रचार मंत्र बन जाता है। अखबार खोला और ‘ऐस्प्रो’, रेडियो खोला और ‘ऐस्प्रो’, टेलीविजन पर गये और ‘ऐस्प्रो’, बाजार में निकले और बोर्ड, ‘ऐस्प्रो’ —जो कुछ भी करें, ऐस्प्रो पीछा करती है। वह सिरदर्द से भी बड़ा सिरदर्द बन जाती है; फिर वह सिरदर्द को हरा देती है।

पुनरुक्ति शक्ति पैदा करती है। मंत्र का अर्थ है: किसी चीज को बार—बार दोहराना। यह सूत्र कह रहा है: चित्त ही मंत्र है—चित्त मंत्र:। यह कहता है, और किसी मंत्र की जरूरत नहीं; अगर तुम चित्त को समझ लो तो चित्त की प्रक्रिया ही पुनरुक्ति है। तुम्हारा मन कर क्या रहा है जन्मों—जन्मों से—सिर्फ दोहरा रहा है। सुबह से सांझ तक तुम करते क्या हो—रोज वही दोहराते हो, जो तुमने कल किया था, जो परसों किया था, वही तुम आज कर रहे हो; वही तुम कल भी करोगे, अगर न बदले। और तुम जितना वही करते जाओगे उतनी ही पुनरुक्ति प्रगाढ होती जायेगी और तुम झंझट में इस तरह फंस जाओगे कि बाहर आना मुश्किल हो जायेगा।

ओशो✍
शिव सूत्र प्रवचन 4

 

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