क्या हैं #ब्रह्मचर्य का पूरा सच |super powers of brahmacharya #celibacy #brahmacharya #semenretention लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
क्या हैं #ब्रह्मचर्य का पूरा सच |super powers of brahmacharya #celibacy #brahmacharya #semenretention लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 30 जनवरी 2021

क्या हैं #ब्रह्मचर्य का पूरा सच |super powers of brahmacharya #celibacy #brahmacharya #semenretention


🙏🏻 राधे राधे 🙏🏻

1/15
सांसारिक भोगों में एक विचित्र आकर्षण होता है. यही कारण है कि वे मनुष्य को सहज ही अपनी ओर खींच लेते हैं, किन्तु इससे भी अद्भुत बात यह है कि यह जितनी ही अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं, मनुष्य का आकर्षण उतना ही उनकी ओर बढ़ता जाता है और शीघ्र ही वह दिन आ जाता है, जब मनुष्य इनमें डूब कर नष्ट हो जाता है.

 
2/15
संयम मनुष्य की शोभा ही नहीं, शक्ति भी है. अपनी इस शक्ति के सहारे उसे अपनी रक्षा करनी चाहिए. इस प्रकार सस्ते में उसका अंत कर डालना न उचित है, न कल्याणकारी. कठिन साधनाएं न करने पर भी जो वीर्य (स्पर्म) को अखण्ड रख लेते हैं, वे अपने अन्दर शक्ति का अक्षय भण्डार अनुभव करते हैं और कुछ भी कर सकने की क्षमता रखते हैं. जीवन में कुछ अच्छा और बड़ा करना चाहते हैं तो आपको अपनी इस ताकत को बचाकर रखना होगा.

 
3/15
भारत के आध्यात्मिक गुरु ओशो ने कहा था, ब्रह्माचर्य सेक्सुअलिटी का विरोध नहीं है, बल्कि इसका ट्रांसफॉर्मेशन है. यौन ऊर्जा का अधोगमन है, नीचे की तरफ बह जाना है, ब्रह्मचर्य ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन है, ऊपर की तरफ उठ जाना है.
युवाओं के यौन संबंध पर क्या कहते हैं ओशो?
 
4/15
अगर पवित्र विचारों के जरिए सेक्सुअल एनर्जी को ओजस या आध्यात्मिक ऊर्जा में बदल लिया जाए तो इसे सेक्ससबलीमेशन कहा जाता है. यह किसी तरह का दमन नहीं है बल्कि एक सकारात्मक और स्थानांतरण की प्रक्रिया है. यौन ऊर्जा पर अपना नियंत्रण स्थापित करके इसे संचित करके दूसरी तरफ मोड़ देना है. धीरे-धीरे आप इसे ओजस शक्ति में भी तब्दील कर लेंगे. जैसे ऊष्मा प्रकाश और विद्युत में परिवर्तित कर ली जाती है वैसे ही भौतिक ऊर्जा को आध्यात्मिक ऊर्जा में बदला जा सकता है. रासायनिक पदार्थों में होने वाले परिवर्तनों की तरह सेक्सुअल पावर को साधना के जरिए आध्यात्मिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है.


5/15
इस प्रक्रिया से गुजरते हुए आत्मा के स्तर को ऊपर उठाना, शुद्ध विचारों की तरफ बढ़कर यौन ऊर्जा को ओजस शक्ति में परिवर्तित होकर दिमाग में संचित होती जाती है. इस संचित ऊर्जा को आप बड़े से बड़े कामों में लगा सकते हैं. अगर आपको बहुत क्रोध आता है या आपके पास शारीरिक बल ज्यादा है तो उसे भी ओजस शक्ति में ट्रांसफॉर्म किया जा सकता है. जिसके दिमाग में ओजस शक्ति संचित हुई रहती है, उसकी मानसिक ताकत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. वह बहुत ही बुद्धिमान हो जाता है. उसके चेहरे के पास एक दैवीय तेज झलकने लगता है. वह कुछ शब्द बोलकर ही दूसरों पर अपना प्रभाव छोड़ सकता है. उसका व्यक्तित्व फिर सामान्य नहीं रह जाता है, वह आसाधारण हो जाता है.

 
6/15
शंकराचार्य, ईसा मसीह आदि महापुरुष जीवन भर ब्रह्मचारी रहे. ऊँचे उठे हुए बुद्धिजीवी लोग अधिकतर संयमी जीवन ही बिताने की चेष्टा किया करते हैं. वैज्ञानिक, दार्शनिक, विचारक, सुधारक तथा ऐसी ही उच्च चेतना वाले लोग संयम का ही जीवन जीते दृष्टिगोचर होते हैं. संयम से तात्पर्य मात्र शारीरिक ही नहीं, मानसिक व आध्यात्मिक ब्रह्मचर्य से भी है.


7/15
यह एक सत्य है कि भोगों की अधिकता मनुष्य की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक तीनों प्रकार की शक्तियों का नुकसान कर देती है. यह रोग युवावस्था में ही अधिक लगता है. यद्यपि उठती आयु में शारीरिक शक्ति ज्यादा होती है, साथ ही कुछ-न-कुछ जीवन तत्व का नव निर्माण होता रहता है. इसलिए उसका बुरा असर शीघ्र नहीं दिखलाई पड़ता; लेकिन युवावस्था के ढलते ही इसके बुरे परिणाम सामने आने लगते हैं.

 
8/15
युवा कई तरह की कमजोरियों के शिकार बन जाते हैं. थोड़ी आयु और ढलने पर सहारा खोजने लगते हैं. इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं और जीवन एक भार बन जाता है. शरीर का तत्व वीर्य जो कि मनुष्य की शक्ति और वास्तविक जीवन कहा गया है, का अपव्यय होता चला जाता है, जिससे सारा शरीर एकदम खोखला हो जाता है. तमाम सिद्धहस्तों ने इसी वीर्य की ताकत का संचय कर बड़े-बड़े चमत्कार किए हैं. इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि हमारी अधिकतर ऊर्जा यौन ऊर्जा में संचित होती है. दृढ़ इच्छा शक्ति के जरिए हम अपनी यौन ऊर्जा को अद्भुत क्रिएटिविटी में तब्दील कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को अपने जीवन में उतारने वाले कई विश्वप्रसिद्ध हस्तियों के उदाहरण हैं, जैसे- निकोलस टेस्ला, महात्मा गांधी, रिचर्ड वेंगर, दान्ते, होमर, हेनरी थोरू और लियोनार्डो द विन्सी.

9/15
विदेशी प्रचारकों ने भी इसकी कम प्रशंसा नहीं की है. प्रसिद्ध प्राणी विज्ञानी डॉ. बोनहार्ड ने अपनी पुस्तक 'सेलिबेसी एण्ड रिहेबिलिटेश' में लिखा, 'ब्रह्मचारी यह नहीं जानता कि व्याधिग्रस्त दिन कैसा होता है. उसकी पाचन शक्ति सदा नियंत्रित रहती है और उसको वृद्धावस्था में भी बाल्यावस्था जैसा आनन्द आता है.' अमेरिकी प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. बेनीडिक्ट लुस्टा ने अपनी पुस्तक 'नेचुरल लाइफ' में कहा है कि जितने अंशों तक जो मनुष्य ब्रह्मचर्य की विशेष रूप से रक्षा और प्राकृतिक जीवन का अनुसरण करता है, उतने अंशों तक वह विशेष महत्व का कार्य कर सकता है.

10/15
स्वामी रामतीर्थ कहा करते थे कि जैसे दीपक का तेल बत्ती के ऊपर चढ़कर प्रकाश के रूप में परिणत होता है, वैसे ही ब्रह्मचारी के अंदर का वीर्य तत्व सुषुम्ना नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान दीप्ति में परिवर्तित हो जाता है. रेतस का जो तत्व रति (काम, यौन संबंध) बनाने के समय काम में लगता है, जितेन्द्रिय होने पर वही तत्व, प्राण, मन और शरीर की शक्तियों को पोषण देने वाले एक दूसरे ही तत्व में बदल जाता है.

11/15
आधुनिक विज्ञान इतना विकसित हो जाने पर भी वीर्य की उत्पत्ति का कोई सिद्धान्त निश्चित नहीं कर पाया है. सामान्य रासायनिक रचना के अतिरिक्त उन्हें इतना ही पता है कि वीर्य का एक कोश (स्पर्म) स्त्री के डिम्ब (ओवम्) से मिल जाता है. यही वीर्य कोश पुनः उत्पादन आरंभ कर देता है और अपनी तरह तमाम कोश माँ से प्राप्त आहार द्वारा कोशिका विभाजन-प्रक्रिया के अनुसार विभक्त होता चला जाता है. कहना न होगा कि वीर्य का सूक्ष्मतम स्प चेतना का एक अति सूक्ष्म अंश है. इनकी लम्बाई 1/1600 से 1/1700 इंच तक होती है, जिसमें न केवल मनुष्य शरीर, वरन् विराट विश्व के शक्ति बीज छिपे होते हैं. सृष्टि को बहुगुणित बनाने की व्यवस्था भी इन्हीं बीजों में निहित होती है. उसकी शक्ति का अनुमान किया जाना कठिन है.

12/15
भ्रूण काल के निर्माण के बाद शिशु जब विकसित होना प्रारम्भ करता है, तो ओजस उसके मस्तिष्क में ही संचित होता है. यही कारण है कि गर्भ में सन्तान का सिर नीचे की ओर होता है. जन्म के समय 10 रत्ती वीर्य बालक के ललाट में होता है. शास्त्रों के अनुसार नौ से बारह वर्ष तक वीर्य शक्ति भौंहों से उतर कर कण्ठ में आ जाती है. प्रायः इसी समय बच्चे के स्वर में सुरीलापन आता है. इससे ठीक पूर्व दोनों की ध्वनि एक जैसी होती है. 12 से 16 वर्ष तक की आयु में वीर्य मेरुदण्ड से उपस्थ की ओर बढ़ता है और धीरे-धीरे मूलाधार चक्र में अपना स्थायी स्थान बना लेता है.

13/15
काम विकार पहले मन में आता है, उसके बाद तुरन्त ही मूलाधार चक्र उत्तेजित हो उठता है और उसके उत्तेजित होने से वह सारा ही क्षेत्र जिसमें कि कामेन्द्रिय भी सम्मिलित होती है, उत्तेजित हो उठती है, ऐसी स्थिति में ब्रह्मचर्य की संभावना कठिन हो जाती है. 24 वर्ष तक की आयु में यह शक्ति मूलाधार चक्र में से समस्त शरीर में किस प्रकार व्याप्त हो जाती है इसका उल्लेख करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि जिस प्रकार दूध में घी, तिल में तेल, ईख में मीठापन तथा काष्ठ में अग्नि तत्व सर्वत्र विद्यमान रहता है, उसी प्रकार वीर्य सारी काया में व्याप्त रहता है.

14/15
यदि 25 वर्ष की आयु तक आहार-विहार को दूषित नहीं होने दिया जाय और ब्रह्मचर्यपूर्वक रहा जाय तो इस आयु में शक्ति की मस्ती और विचारों की उत्फुल्लता देखते ही बनती है. ऐसे बच्चे प्रायः जीवन भर स्वस्थ रहते हैं एवं इस प्रकार रेतस का रचना-पचना प्रायः हर क्षेत्र में उत्साह और सफलता के रूप में सामने आता है.

15/15
ऊर्ध्वरेता बनना अर्थात् जीवन को, ओज को अपने उद्गम स्थल ललाट में लाना, जहाँ से वह मूलाधार तक आया था, योग विद्या का काम है. कुण्डलिनी साधना में विभिन्न प्राणायाम साधनाओं द्वारा सूर्य चक्र की ऊष्मा को प्रज्ज्वलित कर इसी वीर्य को पकाया जाता है और उसे सूक्ष्म शक्ति का रूप दिया जाता है, तब फिर उसकी प्रवृत्ति ऊर्ध्वगामी होकर मेरु दण्ड से ऊपर चढ़ने लगती है. साधक उसे क्रमशः अन्य चक्रों में ले जाता हुआ फिर से ललाट में पहुँचाता है. शक्ति बीज का मस्तिष्क में पहुँच जाना और सहस्रार चक्र की अनुभूति कर लेना ही ब्रह्म निर्वाण है.
 
ब्रह्मचर्य शरीर का तीसरा उपस्तंभ है।

ब्रह्मचर्य का अर्थः

कर्मणा मनसा वाचा सर्वावस्थासु सर्वदा।

सर्वत्र मैथुनत्यागो ब्रह्मचर्य प्रचक्षते।।

'सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं।' याज्ञवल्क्य संहिता

ब्रह्मचर्य से शरीर को धारण करने वाली सप्तम धातु शुक्र की रक्षा होती है। शुक्रसम्पन्न व्यक्ति स्वस्थ, बलवान, बुद्धिमान व दीर्घायुषी होते हैं। वे कुशाग्र व निर्मल बुद्धि, तीव्र स्मरणशक्ति, उत्तम निर्णयशक्ति, विशाल संकल्पशक्ति, दृढ़ निश्चय, धैर्य, समझ व सदविचारों से सम्पन्न तथा आनन्दवान होते हैं।



 वृद्धावस्था तक उनकी सभी इन्द्रियाँ, दाँत, केश व दृष्टि सुदृढ़ रहती है। रोग सहसा उनके पास नहीं आते। क्वचित आ भी जायें तो अल्प उपचारों से शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।

भगवान धन्वंतरि ने ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन करते हुए कहा हैः

मृत्युव्याधिजरानाशि पीयूषं परमौषधम्।

सौख्यमूलं ब्रह्मचर्यं सत्यमेव वदाम्यहम्।।

'अकाल मृत्यु, अकाल वृद्धत्व, दुःख, रोग आदि का नाश करने के सभी उपायों में ब्रह्मचर्य का पालन सर्वश्रेष्ठ उपाय है। यह अमृत के समान सभी सुखों का मूल है यह मैं सत्य कहता हूँ।'

जैसे दही में समाविष्ट मक्खन का अंश मंथन प्रक्रिया से दही से अलग हो जाता है वैसे ही शरीर के प्रत्येक कण में समाहित सप्त धातुओं का सारस्वरूप परमोत्कृष्ट ओज मैथुन प्रक्रिया से शरीर से अलग हो जाता है। ओजक्षय से व्यक्ति असार, दुर्बल, रोगग्रस्त, दुःखी, भयभीत, क्रोधी व चिंतित होता है।

शुक्रक्षय के लक्षणः शुक्र के क्षय होने पर व्यक्ति में दुर्बलता, मुख का सूखना, शरीर में पीलापन, शरीर व इन्द्रियों में शिथिलता (अकार्यक्षमता), अल्प श्रम से थकावट व नपुंसकता ये लक्षण उत्पन्न होते हैं।

अति मैथुन से होने वाली व्याधियाँ- ज्वर (बुखार), श्वास, खाँसी, क्षयरोग, पाण्डु, दुर्बलता, उदरशूल व आक्षेपक (मस्तिष्क के संतुलन से आने वाली खेंच) आदि।

🔰ब्रह्मचर्य रक्षा के उपाय ✅

ब्रह्मचर्य-पालन का दृढ़ शुभसंकल्प, पवित्र सादा रहन-सहन, सात्त्विक-ताजा अल्पाहार, शुद्ध वायु-सेवन, सूर्यस्नान,

व्रत-उपवास, योगासन, प्राणायाम, ॐकार का दीर्घ उच्चारण, ॐ अर्यमायै नमः, मंत्र का पावन जप, शास्त्राध्ययन, सतत श्रेष्ठ कार्यों में रत रहना, संयमी व सदाचारी व्यक्तियों का संग, रात को जल्दी सोकर ब्राह्ममुहूर्त में उठना, प्रातः शीतल जल से स्नान, प्रातः सायं शीतल जल से जननेन्द्रिय-स्नान, कौपीन धारण, निर्व्यसनता,

 कुदृश्य-कुश्रवण-कुसंगति का त्याग, पुरुषों के लिए परस्त्री के प्रति मातृभाव – इन उपायों से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है। स्त्रियों के लिए परपुरुष के साथ एकांत में बैठना, गुप्त वार्तालाप करना, स्वच्छन्दता से घूमना, भड़कीले वस्त्र पहनना, कामोद्दीपक श्रृंगार करके घूमना – ये ब्रह्मचर्य-पालन में बाधक हैं।


जितना धर्ममय, परोपकार-परायण व साधनामय जीवन, उतनी ही देहासक्ति क्षीण होने से ब्रह्मचर्य का पालन सहज-स्वाभाविक रूप से हो जाता है। नैष्ठिक ब्रह्मचर्य आत्मानुभूति में परम आवश्यक है।

गार्हस्थ्य ब्रह्मचर्यः

श्री मनु महाराज ने गृहस्थाश्रम में ब्रह्मचर्य की व्याख्या इस प्रकार की हैः

ऋतुः स्वाभाविकः स्त्रीणां रात्रयः षोडश स्मृताः।

चतुर्भिरितरैः सार्द्धं अहोभिः सद्धिगर्हिते।।

अपनी धर्मपत्नी के साथ केवल ऋतुकाल में समागम करना, इसे गार्हस्थ्य ब्रह्मचर्य् कहते हैं।

रजोदर्शन के प्रथम दिन से सोलहवें दिन तक ऋतुकाल माना जाता है। इसमें मासिक धर्म की चार रात्रियाँ तथा ग्यारहवीं व तेरहवीं रात्रि निषिद्ध है। शेष दस रात्रियों में से दो सुयोग्य रात्रियों में स्वस्त्री-गमन करने वाला व्यक्ति गृहस्थ ब्रह्मचारी है।

श्री सुश्रुताचार्य जी ने इस गार्हस्थ्य ब्रह्मचर्य की प्रशंसा करते हुए कहा हैः

आयुष्मन्तो मन्दजरा वपुर्वर्णबलान्विताः।

स्थिरोपचितमांसाश्च भवन्ति स्त्रीषु संयताः।।

स्त्री प्रसंग में संयमी पुरुष आयुष्मान वे देर से वृद्ध होने वाले होते हैं। उनका शरीर शोभायमान, वर्ण और बल से युक्त तथा स्थिर व मजबूत मांसपेशियों वाला होता है।'

सुश्रुत संहिता, चिकित्स्थानम् 24,112

इस प्रकार आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य का युक्तिपूर्वक सेवन व्यक्ति को स्वस्थ्, सुखी व सम्मानित जीवन की प्राप्ति में सहायक होता है।
🔥🔥ब्रह्मचर्य पालन के लाभ - 3 🔥🔥
                
               💫शारीरिक लाभ💫

💥१. शारीरिक स्वास्थ्य सदैव अच्छा बना रहता है ।
💥२. शरीर तेजोमय व आरोग्य बन जाता है ।
💥३ . शारीरिक बल की प्राप्ति होती है । शरीर दीर्घायु को प्राप्त करता है ।
💥५ . मुख मण्डल पर अलौकिक आभा होती है ।
💥६ . उत्तम व संस्कारित सन्तान प्राप्त होती है ।
💥७. समस्त इन्द्रिय समुह स्वस्थ्य एवं संयम में रहता है ।
💥८. शरीर के त्यागने पर सद्गति मिलती है ।
💥९ . सहन शक्ति , उत्साह व साहस में बृद्धि होती है ।

💥१० . समाज व राष्ट्र जीवन सुदृढ़ बनता है ।

             💫बौद्विक लाभ💫

💥१. ब्रह्मचर्य सदाचार ( सज्जनों का आचरण ) का आधार है ।
💥२. ब्रह्मचर्य से समस्त दोषों का नाश होता है ।
💥३ . यह हमारी श्रेष्ठता एवं सम्पूर्ण उन्नति का साधन है ।
💥४. वेद - अध्ययन एवं ईश्वर चिन्तन में मन लगता है ।
💥५. जीवन के उत्थान एवं सफलता में सहायक है ।
💥६ . बौद्विक बल की प्राप्ति होती है ।
💥७. स्मरण शक्ति तेज व स्थायी बनी रहती है।
💥८. मनुष्य धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की दिशा में प्राप्त उन्नति करता हुआ सद्गति को प्राप्त करता है ।

📚  ब्रह्मचर्य एक बहुत ही महत्वपूर्ण अनुशासन, नियम अथवा व्रत है ।

◼️ इस द्वारा मनुष्य अपने भीतर एक बहुत ही उत्तम शक्ति का भंडार एकत्रित और सुरक्षित कर लेता है ।

◼️ यह शक्ति शरीर को स्वास्थ्य, बल, तेज, सौंदर्य और दीर्घायु प्रदान करती है ।

◼️ब्रह्मचर्य की शक्ति मनुष्य के मनोबल को बढ़ाती है, उसकी वाणी को प्रभाव उत्पादक एवं ओजस्वी बनाती है और उसके मुख्य मंडल को दिव्य कांति देती है ।

◼️ जो कोई भी ब्रह्मचर्य का पालन करता है यह शक्ति उसके नेत्रों में एक अद्भुत आभा भर देती है उसके ललाट को एक अलौकिक चमक प्रदान करती है और उसके व्यक्तित्व में चुंबकीय आकर्षण तथा एक अपूर्व उल्लास ला देती हैं ।

◼️ ब्रह्मचर्य द्वारा मनुष्य जिस शक्ति का संचय करता है, वह शक्ति उसके सद्गुणों के विकास में तथा समाज सेवा में भी बहुत सहयोगी होती है ।

◼️ इससे मनुष्य आत्मा महान और श्रेष्ठ बन जाती है ।

◼️ ब्रह्मचर्य शक्ति को मनुष्य विद्योपार्जन में लगाकर अपना बौद्धिक विकास तथा आत्मिक उन्नति कर सकता है ।

◼️ इस तप द्वारा जितेंद्रीय बनकर वह संतोष सुख पा सकता है और इच्छाओं की गुलामी से छूट सकता है ।

◼️ इस प्रकार ब्रह्मचर्य एक ऐसी साधना है जिस द्वारा मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक सब तरफ से विकास एक साथ ही हो जाता है ।

◼️ ब्रह्मचर्य के बिना मनुष्य निस्तेज, आलसी अथवा मुर्दा सा हो जाता है क्योंकि यही वह शक्ति है जो शरीर को स्फूर्ति और सार, मन को अदम्य उत्साह और उमंग और आत्मा को वर्चस्व प्रदान करती है ।

◼️ स्थूल रूप में यह मनुष्य के भोजन का सार है और उसके तेज का आधार है ।

◼️ सूक्ष्म रूप में यह उसके मन का वेग और वोल्व अथवा ब्रेक है और मूल रूप से यही आत्मा के परम उत्कर्ष का साधन है ।

◼️ भारत में जितने भी भक्त, संत, संन्यासी इत्यादि हुए हैं, उन सभी ने आध्यात्मिक साधना की सफलता के लिए ब्रह्मचर्य को बहुत आवश्यक बताया है ।

◼️ योग दर्शन में इसकी गणना 5 यमों के अंतर्गत की गई है । गांधी जी ने भी अपने लेखों तथा पत्रों में इसका बहुत उच्च महत्व बताया हैं ।

📚 प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में तो इसे ईश्वर अनुभूति तथा राजयोंग के अभ्यास के लिए अनिवार्य बताया गया है ।

◼️ क्योंकि इस द्वारा प्राप्त शक्ति से मनुष्य अन्य विकारों का भी अंत कर सकता है तथा जितेंद्रिय एवं एकाग्र होकर ईश्वर लग्न में मग्न होने का परम आनंद प्राप्त कर सकता है ।

🗒️🗒️🗒️🗒️🗒️🗒️🗒️🗒️🗒️🗒️

1️⃣ 🦚 ब्रह्मचर्य का पालन करना 🦚

◼️ इनमे से एक है – ब्रह्मचर्य या पवित्रता योगी शारीरिक सुंदरता या वासना-भोग की और आकर्षित नहीं होता

◼️ क्योंकि उसका दृष्टी कोण बदल चूका होता है वह आत्मा की सुंदरता को ही पूर्ण महत्व देता है!

◼️ उसका जीवन ‘ब्रहमचर्य’ शब्द के वास्तविक अर्थ में ढला होता है अर्थात उसका मन ब्रह्म में स्थित होता है और वह देह की अपेक्षा विदेही (आत्माभिमानी) अवस्था में रहता है!

◼️ अत: वह सबको भाई भाई के रूप में देखता है और आत्मिक प्रेम व सम्बन्ध का ही आनन्द लेता है यहाँ आत्मिक स्मृति और ब्रह्मचर्य इसे ही महान शारीरिक शक्ति, कार्य-क्षमता, नैतिक बल और आत्मिक शक्ति देते है!

◼️ यह उसके मनोबल को बढाते है और उसे निर्णय शक्ति, मानसिक संतुलन और कुशलता देते है!


💫💫🔥ब्रह्मचर्य के पालन से शारीरिक और मानसिक बल की प्राप्ति होती है : योग दर्शन 💫💫🔥
क्या हैं #ब्रह्मचर्य का पूरा सच |super powers of brahmacharya #celibacy #brahmacharya #semenretention

शास्त्रों के अनुसार मित्रता वाले नक्षत्र, शत्रुता वाले नक्षत्र एवं ग्रहों से सम्बन्ध

शास्त्रों के अनुसार किस नक्षत्र की किस नक्षत्र से मित्रता तथा किस नक्षत्र से शत्रुता एवं किस से सम भाव रहता है?   शास्त्रों में नक्षत्रों के...