👉विज्ञान भैरव क्या है ?👈
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🌞👉 विज्ञान भैरव तंत्र के विषय में सर्वप्रथम प्रश्न उठता है कि यह विज्ञान भैरव क्या है? इस ग्रंथ का यह नाम क्यों रखा गया? क्षेमराज के विज्ञानोद्योग के मंगल श्लोक में इसका उत्तर मिलता है, वहां विज्ञान भैरव का स्वरूप समझाया गया है, साथ ही अभिनवगुप्त ने तंत्रालोक में समझाया है कि विज्ञान भैरव क्या है? "भयं सर्व रवयति "इस श्लोक और उसकी व्याख्या में भी भैरव पद का विश्लेषण किया गया है। इन सब का अभिप्राय यह है कि भैरव इस विश्व का सृजन ,भरण पोषण एवं संहार करने वाला है। ऐसा करके वह स्वयं भी पुष्ट होता है एवं प्रसन्न होता है। यह संसारी जीवों को अभय दान करने वाला है। संसारी जीव की छटपटाहट का कारण भी यही है और त्राहि-त्राहि पुकारने वाले भक्त जनों के हृदय में प्रकट होकर उनका उद्धार भी यही करता है, अर्थात निग्रह और अनुग्रह यह दोनों भगवान भैरव के ही व्यापार हैं, कार्य हैं, इसलिए यह पंचकृत्यकारी कहलाता है ।यह काल का भी काल है, इसीलिए इसको "काल भैरव" कहते हैं। यह तत्त्व योगियों के चित्त में समाधि दशा में प्रकट होता है और अज्ञानी जीवों के हृदय में बाह्य एवं आंतरिक इंद्रियों की शक्ति के रूप में दृष्टिगोचर होता है। परमात्मा का यह स्वरूप महाभयानक है और परम सौम्य भी।
🌞👉 यह भैरव स्वरूप विज्ञान स्वरूप है अर्थात चिदात्मक है, बोधात्मक है, जानने योग्य है। सभी स्थानों में बाह्य एवं आंतरिक सभी पदार्थों में सत्य स्वरूप परमात्मा की विज्ञानात्मक उपस्थिति का ज्ञानी योगियों को ही नहीं सामान्य जन को भी भान होता है अतः संपूर्ण ब्रह्मांड में विज्ञानात्मक भैरव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है , क्योंकि विशुद्ध विज्ञान के अतिरिक्त अन्य किसी पदार्थ की वास्तविक सत्ता नहीं । इस संपूर्ण ब्रह्मांड में कुछ भी काल्पनिक एवं चमत्कार युक्त नहीं ,जो कुछ है पूर्ण विज्ञान युक्त है , जानने योग्य है, बोधात्मक है। यदि प्राचीन काल का नाम लेकर कुछ भी अविज्ञान युक्त कल्पना प्रस्तुत की जाती है जिसका व्यक्तिगत जीवन में किसी भी प्रकार से अनुभव नहीं किया जा सकता तो निश्चित रूप से वह पाखंड है। यदि ब्रह्मांड में वास्तविक सत्ता किसी की है तो पूर्णतया विशुद्ध चेतन तत्व की है, विशुद्ध विज्ञान तत्व की है। वह विज्ञान युक्त बोधात्मक तत्व शक्ति एवं शिव का ही स्वरूप है। यही शक्ति एवं शिव का संयुक्त स्वरूप, वास्तविक स्वरूप "विज्ञान भैरव" है।
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🕉🌞विज्ञान भैरव तंत्र 🌞🕉
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🌞👉 माता पार्वती पूर्व अभ्यस्त अनेक शास्त्रों के आधार पर भगवान शिव से निवेदन करती है कि आप मुझे परम तत्व के वास्तविक स्वरुप के ज्ञान के साथ उसे प्राप्त करने की संपूर्ण विधियों का ज्ञान दीजिए। उस परम तत्व तक कैसे पहुंचा जा सकता है ?इसी जिज्ञासा को उजागर करती हुई माता पार्वती भगवान शिव से 8 प्रश्न पूछती है--
⚜👉 पहला प्रश्न- इस भयानक आकृति वाले संसार की रचना करने में समर्थ भैरव का क्या अकार से लेकर क्षकार पर्यंत शब्द राशि की कलाएं ,अनुत्तर ,आनंद इच्छा ,प्रवृत्ति ,विमर्श शक्तियां ही उसका वास्तविक स्वरुप है क्योंकि वाच्य और वाचक स्वरूप से जगत के सारे विस्तार को इसी ने समेट रखा है। इस प्रश्न का सीधा सा अर्थ यह है कि क्या यह बौद्ध भैरव शब्द ब्रह्म स्वरूप है?
⚜👉 दूसरा प्रश्न-- माता पार्वती पूछती है अथवा प्रकृति से लेकर परम तत्व पर्यंत तत्वों के परामर्श से प्रत्यभिज्ञात तथा षडध्व में परिगणित नवात्म मंत्र राज उसका स्वरूप है ? इसका अर्थ यह किया जा सकता है कि क्या भयानक स्वरुप वाले भेरव की नौ शक्तियों के रूप में जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते हैं। यह परम तत्व अवस्थित है?
⚜👉 तीसरा प्रश्न-- देवी कहती है या उस भैरव की शक्ति नरशक्ति के रूप में इच्छा ,ज्ञान, क्रिया शक्ति के रूप में तीन तत्वों की शक्ति को अपने में समेटे हुए विशिष्ट मंत्र के रूप में विद्यमान है?
⚜👉 चौथा प्रश्न-- अथवा नर शक्ति शिवात्मक तीन तत्वों की अधिष्ठात्री अपरा ,परा -परा और अपरा नामक तीन शक्तियों वाला यह भैरव तत्व है?
⚜👉 पांचवां प्रश्न-- देवी कहती है अथवा समस्त मंत्र समूह में सामान्यतः मंत्र शक्ति के रूप में जो अवस्थित है ।वह विश्व के सभी वाच्यों में अभिन्न रुप से विद्यमान प्रकाश स्वरूप बिंदु और समस्त वाचकों में अभिन्न रूप से विद्यमान नाद उसका स्वरूप है?
⚜👉 छटा प्रश्न-- अथवा इस बिंदु और नाद के ही प्रपंच रूप अर्धचंद्र ,निरोधिका आदि उसके स्वरूप हैं?
⚜👉 सातवां प्रश्न-- देवी पूछती है कि क्या वह मूलाधार आदि स्थानों में षड्दल आदि स्वरूप वाले चक्रों में आरूढ है अर्थात उन चक्रों में लिपि संकेतों के रूप में विद्यमान कोई तत्व है?
⚜👉 अंतिम आठवां प्रश्न देवी पूछती है कि क्या यह उस सुस्पष्ट शक्ति के रूप में विद्यमान है जो कि समस्त कुटिलताओं को छोड़कर अवस्थित है ?इन सब विकल्पों में से भैरव का वास्तविक स्वरूप क्या है ?हे देव उसे मुझे आप बताइए-
🌞 साधक के दो शब्द-- जिस प्रकार गीता में अर्जुन ने भगवान वासुदेव श्री कृष्ण से आम इंसान के रुप में हर वह प्रश्न पूछा जो एक साधारण व्यक्ति पूछ सकता है बल्कि उससे भी कहीं अधिक प्रश्न अर्जुन ने पूछे ।वही कार्य विज्ञान भैरव तंत्र में मां पार्वती ने किया है । इन 8 प्रश्नों में अध्यात्म जगत के संपूर्ण रहस्यों को समेट लिया है ।इन प्रश्नों को पढ़ते हुए कुछ शब्द हो सकता है ,आपको समझ न आयें किंतु जब धारणाओं की व्याख्या की जाएगी तब प्रत्येक शब्द एवं प्रश्न का रहस्य समझ में आता चला जाएगा क्योंकि जो शब्द प्रयोग में लिए गए हैं, उनका अत्यंत गहन अर्थ है ,इसलिए उनको यहां पर समझाया नहीं जा सकता। धारणाओं में उन शब्दों की बेहतर तरीके से व्याख्या की जा सकेगी।
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🌞👉 माता पार्वती ने जो कुछ पूछा ।उसके लिए भगवान शिव उनकी प्रतिभा की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि हे प्रिय !परमानंद से प्राप्त होने वाली तृप्ति की प्राप्ति में तत्पर एवं सबका कल्याण करने वाली हे देवी! ये तुमने बहुत अच्छे प्रश्न पूछे हैं। सब शास्त्रों की सार भूत यह बात अत्यंत गोपनीय है ।ऐसा होने पर भी इस गोपनीय रहस्य को मैं तुम्हें इसलिए बताता हूंँ कि तुम उस एकाकार पद में उत्सुकता के कारण इस रहस्य को जानने की योग्यता रखती हो।
🌞👉 भगवान शिव आगे कहते हैं -हे देवी! भैरव के साकार और निराकार ये दो रूप शास्त्रों में बताए गए हैं । इनमें साकार नाम से प्रसिद्ध यह जगत रूप अर्थ ,नील- पीत ,घट -पट आदि नाना विचित्र रूपों में दिखाई देता है। ये सब इंद्रजाल के समान ,माया से निर्मित और गंधर्व नगर के भ्रम के समान स्वप्न में देखी गई वस्तु के समान ,अस्थिर एवं असत्य स्वरुप हैं । इस प्रकार के असत्य स्वरुप में भ्रांत बुद्धि रखने वाले ,फल की आकांक्षा से नाना कर्मकांडों में रुचि रखने वाले मैं विष्णु की पूजा करता हूंँ ,मैं गणपति की पूजा करता हूंँ ।ये मुझे पुत्र ,धन आदि देंगे। इस तरह के भांति भांति के संकल्प विकल्पों के कारण अपने वास्तविक स्वरुप से अपरिचित व्यक्तियों के लिए ये साकार स्वरूप उपदिष्ट हैं ।इसका उपदेश इसलिए किया गया है कि निराकार स्वरूप में प्रवेश पाने के लिए साधक को पहले साकार स्वरुप में ध्यान की योग्यता प्राप्त हो जाए । साकार स्वरूप में आस्था एवं विश्वास जागृत होने पर उस साधक को निराकार के वास्तविक सत्य दर्शन को समझाना अत्यंत आसान हो जाता है क्योंकि जब तक साधक में आस्था एवं विश्वास जागृत नहीं होता उसे अध्यात्म मार्ग पर आगे ले जाना कठिन कार्य है।साकार स्वरूप का यह उपदेश तत्व के जिज्ञासुओं के लिए नहीं है अर्थात भगवान शिव के कहने का अर्थ यह है कि जिनकी बुद्धि विकसित एवं अल्प होती हैं, उनके लिए ईश्वर के विभिन्न साकार स्वरूपों की कल्पना की गई हैं ताकि बाल बुद्धि के लोग उन रूपों में आस्था जागृत करके संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त उस सूक्ष्म चेतनामयी निराकार ब्रह्म से तादात्म्य स्थापित करने की योग्यता विकसित कर सकें किंतु जो ईश्वर के तत्व दर्शन को समझना चाहते हैं ।उनके लिए साकार स्वरूप का कोई विशेष महत्व नहीं है ।उन्हें सिर्फ और सिर्फ निराकार परमात्मा के ध्यान में तल्लीन रहना चाहिए क्योंकि निराकार स्वरूप ही उसका वास्तविक एवं सत्य स्वरूप है। निराकार के माध्यम से ही भैरव के विराट स्वरुप का साक्षात्कार होता है। साकार सीमित है, निराकार विस्तृत है।
⚜👉 इस सिद्धांत के आधार पर भगवान शिव का कहना है कि विभिन्न साकार स्वरूप उस परमात्म तत्त्व को समझाने के लिए की गई कल्पनाएं मात्र हैं क्योंकि उस परमात्मा के वास्तविक स्वरुप को शब्दों में नहीं समझाया जा सकता इसलिए उसे समझाने के लिए कल्पनाओं का सहारा लेना पड़ता है।
🌞👉 इस पर माता पार्वती पूछती है कि यदि यह सब स्वरूप कल्पना मात्र हैं तो फिर उन शास्त्रों में ऊपर बताए गए स्वरूपों का वर्णन क्यों किया गया है? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान शिव कहते हैं--
👉 तीव्र शक्तिपात से जिनकी बुद्धि अच्छी तरह से पवित्र नहीं होती हैं,ऐसे व्यक्तियों की बुद्धि परमात्मा की ओर उन्मुख हों इसलिए ऐसे लोगों को विभिन्न प्रकार के आकारों के माध्यम से भैरव का भय दिखाकर भैरव के वास्तविक स्वरुप की ओर अग्रसर किया जाता है। जिस प्रकार बालक को मां गलत राह पर जाने से डर दिखाकर रोकती है ।वही कार्य इन साकार स्वरूपों के माध्यम से विषयासक्ति की ओर अग्रसर लोगों को नियंत्रित करने में होता हैं। इन साकार स्वरूपों के माध्यम से अल्पबुद्धि व्यक्तियों को भैरव परायण करके उपासना- साधना में लगाया जाता है। जिससे कि वे धीरे-धीरे परभैरव अवस्था तक पहुंच कर उस भैरव स्वरूप के वास्तविक सत्य ज्ञान को अपने जीवन में धारण कर सकें।
विज्ञान #भैरवतंत्र परिचय👉विज्ञान भैरव क्या है ?
👈 Science #Bhairavsystem introduction
#1|| The secret of Tantra विज्ञान भैरव तंत्र के रहस्य|| Achary Rajneesh ||आनापानसती ध्यान NO MIND