शनिवार, 29 मार्च 2025

संभोग ऊर्जा को ब्रह्मांडीय ऊर्जा में बदलने की विधियाँ,

यहाँ शिव-शक्ति, भैरव-भैरवी, और "संभोग से समाधि" की अवधारणा को विस्तार से देखते हैं, साथ ही संभोग ऊर्जा को बढ़ाने और उपयोग करने की विधियाँ भी बताऊँगा।


1. शिव-शक्ति और भैरव-भैरवी: मूल अवधारणा

  • शिव-शक्ति: भारतीय दर्शन में शिव चेतना (Consciousness) का प्रतीक हैं, जो स्थिर, शांत और अनंत हैं, जबकि शक्ति ऊर्जा (Energy) का प्रतीक हैं, जो गतिशील, सृजनात्मक और प्राणमयी हैं। इन दोनों का मिलन ही सृष्टि का आधार है।
  • भैरव-भैरवी: भैरव शिव का उग्र, तांत्रिक रूप हैं, जो भय का नाश करते हैं और चेतना को जागृत करते हैं। भैरवी शक्ति का वह रूप हैं, जो सृजन और संहार दोनों की शक्ति रखती हैं। यह जोड़ी तंत्र साधना में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संभोग (संयोजन) और समाधि (अंतिम मुक्ति) के बीच सेतु बनाती है।
  • संभोग से समाधि: तंत्र में संभोग केवल शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि दो ऊर्जाओं (पुरुष और स्त्री, या शिव और शक्ति) का मिलन है, जो सूक्ष्म स्तर पर कुंडलिनी जागरण और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। यहाँ संभोग को एक साधना के रूप में देखा जाता है, जो समाधि तक पहुँचने का मार्ग बन सकता है।

2. तंत्र शास्त्र में संभोग से समाधि की विधियाँ

तंत्र ग्रंथों, जैसे विज्ञान भैरव तंत्र, में 112 ध्यान विधियाँ दी गई हैं, जिनमें से कुछ संभोग ऊर्जा को समाधि में परिवर्तित करने से संबंधित हैं। यहाँ कुछ प्रमुख विधियाँ और उनके सिद्धांत हैं:

(क) प्राणायाम और श्वास नियंत्रण

  • सिद्धांत: संभोग के दौरान श्वास तेज और अनियंत्रित हो जाती है, जिससे ऊर्जा निचले चक्रों (मूलाधार और स्वाधिष्ठान) में ही व्यय हो जाती है। प्राणायाम से इसे ऊपर की ओर (सहस्रार चक्र) ले जाया जा सकता है।
  • विधि:
    1. संभोग से पहले गहरी और मंद श्वास का अभ्यास करें।
    2. क्रिया के दौरान श्वास को पेट तक सीमित रखें, न कि छाती तक।
    3. चरमोत्कर्ष (Orgasm) के समय श्वास को रोकें और ध्यान को आज्ञा चक्र (भौंहों के बीच) पर केंद्रित करें।
  • प्रभाव: इससे संभोग ऊर्जा प्राण में बदलती है और मस्तिष्क में आनंद की अनुभूति बढ़ती है।

(ख) कुंडलिनी जागरण और चक्र ध्यान

  • सिद्धांत: संभोग ऊर्जा मूलाधार चक्र में उत्पन्न होती है। इसे सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से ऊपर ले जाकर समाधि की ओर निर्देशित किया जा सकता है।
  • विधि:
    1. संभोग से पहले मूल बंध (पेरिनियल मांसपेशियों को सिकोड़ना) का अभ्यास करें।
    2. क्रिया के दौरान कल्पना करें कि ऊर्जा रीढ़ के साथ ऊपर उठ रही है, प्रत्येक चक्र (स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, आदि) को सक्रिय करते हुए।
    3. चरमोत्कर्ष पर ऊर्जा को सहस्रार (सिर के शीर्ष) तक ले जाने का प्रयास करें।
  • प्रभाव: यह ऊर्जा का संरक्षण करता है और आध्यात्मिक आनंद में बदल देता है।

(ग) भैरवी चक्र और मैथुन साधना

  • सिद्धांत: भैरवी चक्र में संभोग को एक पवित्र अनुष्ठान माना जाता है, जिसमें साधक और साधिका एक-दूसरे को शिव और शक्ति के रूप में देखते हैं।
  • विधि:
    1. एक शांत, पवित्र स्थान चुनें और दीपक, धूप आदि से वातावरण तैयार करें।
    2. दोनों साथी ध्यान में बैठें और एक-दूसरे की आँखों में देखते हुए "ॐ नमः शिवाय" या "ॐ ह्रीं भैरवी नमः" का जाप करें।
    3. संभोग के दौरान शारीरिक आकर्षण से ऊपर उठकर ऊर्जा के मिलन पर ध्यान दें।
  • प्रभाव: यह संभोग को एक तांत्रिक साधना में बदल देता है, जो शारीरिक सुख से परे आनंद देता है।

(घ) विज्ञान भैरव तंत्र की विशिष्ट विधि

  • संदर्भ: विज्ञान भैरव तंत्र में एक सूत्र है- "संभोग के समय जब दोनों प्रेमियों की श्वास एक हो जाए, तब उस एकत्व में ध्यान लगाओ।"
  • विधि:
    1. संभोग के दौरान दोनों की श्वास को तालमेल में लाएँ।
    2. चरमोत्कर्ष के क्षण में विचारों को शून्य करें और केवल उस ऊर्जा को अनुभव करें।
    3. इस शून्यता में कुछ देर रहें।
  • प्रभाव: यह समाधि जैसी स्थिति उत्पन्न करता है, जहाँ "मैं" और "तू" का भेद मिट जाता है।

3. संभोग ऊर्जा का आनंद बढ़ाने की विधियाँ

संभोग ऊर्जा को केवल शारीरिक सुख तक सीमित न रखकर इसे सूक्ष्म और दीर्घकालिक आनंद में बदला जा सकता है। यहाँ कुछ व्यावहारिक तरीके हैं:

(क) संयम और जागरूकता

  • संभोग को जल्दबाजी में न करें। धीरे-धीरे आगे बढ़ें और हर स्पर्श, हर अनुभूति को जागरूकता से महसूस करें।
  • इससे ऊर्जा का व्यय कम होता है और आनंद गहरा होता है।

(ख) मंत्र और ध्वनि का उपयोग

  • संभोग से पहले या दौरान "ॐ", "ह्रीं", या "क्लीं" जैसे बीज मंत्रों का जाप करें।
  • ये ध्वनियाँ शरीर में कंपन पैदा करती हैं, जो ऊर्जा को बढ़ाती हैं और आनंद को तीव्र करती हैं।

(ग) इंद्रिय संतुलन

  • संभोग से पहले इंद्रियों को संतुलित करें- जैसे सुगंधित तेलों का प्रयोग, मंद संगीत, और सात्विक भोजन।
  • इससे मन शांत रहता है और ऊर्जा का अनुभव गहरा होता है।

(घ) भावनात्मक जुड़ाव

  • संभोग को केवल शारीरिक न मानें, बल्कि अपने साथी के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखें।
  • यह ऊर्जा को हृदय चक्र तक ले जाता है, जिससे आनंद मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी बढ़ता है।

4. संभोग ऊर्जा का उपयोग

तंत्र में संभोग ऊर्जा को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग करने की कला सिखाई जाती है। यहाँ कुछ तरीके हैं:

(क) रचनात्मकता के लिए

  • संभोग के बाद उत्पन्न ऊर्जा को कला, लेखन, या किसी रचनात्मक कार्य में लगाएँ।
  • यह ऊर्जा स्वाधिष्ठान चक्र से जुड़ी है, जो रचनात्मकता का केंद्र है।

(ख) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य

  • संभोग ऊर्जा को प्राणायाम और योग के माध्यम से शरीर में संचित करें।
  • इससे तनाव कम होता है, प्रतिरक्षा बढ़ती है, और मानसिक स्पष्टता आती है।

(ग) आध्यात्मिक उन्नति

  • इस ऊर्जा को ध्यान और कुंडलिनी साधना में लगाएँ।
  • यह चेतना को उच्च स्तर तक ले जा सकती है, जो समाधि की ओर एक कदम है।

(घ) जीवन शक्ति का संरक्षण

  • बार-बार ऊर्जा व्यय करने के बजाय इसे संयम के साथ उपयोग करें।
  • इससे जीवन में उत्साह, शक्ति और दीर्घायु बढ़ती है।

5. सावधानियाँ

  • गुरु मार्गदर्शन: तंत्र साधना में गलत विधि से भटकाव या हानि हो सकती है। किसी योग्य गुरु से मार्गदर्शन लें।
  • शुद्धता: मन, शरीर और वातावरण की शुद्धता आवश्यक है।
  • संतुलन: संभोग को साधना बनाने के लिए लालच या अति से बचें।

निष्कर्ष

शिव-शक्ति और भैरव-भैरवी का मिलन संभोग से समाधि तक की यात्रा का प्रतीक है। यह एक ऐसी कला है, जो शारीरिक सुख को आध्यात्मिक आनंद में बदल सकती है। प्राणायाम, चक्र ध्यान, मंत्र जाप और जागरूकता के साथ संभोग ऊर्जा को न केवल बढ़ाया जा सकता है, बल्कि इसे जीवन के हर क्षेत्र में उपयोग भी किया जा सकता है। यह तंत्र का वह विज्ञान है, जो हमें सिखाता है कि ऊर्जा न तो नष्ट होती है, न ही व्यर्थ होती है- इसे केवल रूपांतरित करना सीखना है।

 

तंत्र साधना में शिव-शक्ति और भैरव-भैरवी के माध्यम से संभोग से समाधि की ओर अग्रसर होने की विधियाँ वर्णित हैं। इनका उद्देश्य यौन ऊर्जा को आध्यात्मिक उन्नति के साधन के रूप में उपयोग करना है, जिससे व्यक्ति उच्च चेतना की अवस्था प्राप्त कर सके।

शिव-शक्ति तंत्र में संभोग से समाधि की विधि:

  1. आध्यात्मिक तैयारी: साधक और साधिका को मानसिक, शारीरिक, और भावनात्मक रूप से तैयार होना आवश्यक है। ध्यान, प्राणायाम, और योग के माध्यम से मन और शरीर की शुद्धि करें।

  2. संपर्क और समर्पण: साथी के साथ पूर्ण विश्वास और समर्पण की भावना विकसित करें। एक-दूसरे को बिना किसी अपेक्षा के स्वीकार करें और प्रेम को ऊर्जा के स्तर पर अनुभव करें।

  3. धीमी गति और ध्यान: संभोग को जल्दबाजी में न करें। धीरे-धीरे आगे बढ़ें और प्रत्येक क्षण को पूर्ण जागरूकता के साथ अनुभव करें। इसे ध्यान की तरह देखें, जहाँ कोई लक्ष्य नहीं होता, केवल वर्तमान क्षण का अनुभव होता है।

  4. श्वास का समन्वय: एक-दूसरे की सांसों को महसूस करें और उन्हें सिंक्रोनाइज़ करें। गहरी और धीमी सांस लें, जिससे ऊर्जा का प्रवाह संतुलित हो सके।

  5. ऊर्जा का उत्थान: उत्तेजना के चरम पर, ऊर्जा को मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र की ओर निर्देशित करने का प्रयास करें। यह कुंडलिनी ऊर्जा के जागरण में सहायक होता है और उच्च चेतना की अवस्था में ले जाता है।

भैरव-भैरवी साधना में संभोग से समाधि की विधि:

भैरव और भैरवी तंत्र में, साधक (भैरव) और साधिका (भैरवी) के बीच यौन मिलन को एक पवित्र अनुष्ठान माना जाता है, जहाँ ऊर्जा का आदान-प्रदान और संतुलन स्थापित किया जाता है।

  1. पवित्र स्थान का चयन: साधना के लिए एक शांत, स्वच्छ, और पवित्र स्थान चुनें, जहाँ बाहरी व्यवधान न हों।

  2. मंत्र जाप: संभोग के दौरान, विशेष मंत्रों का जाप करें जो ऊर्जा को जागृत करने और उसे उच्च स्तर पर ले जाने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए, 'ॐ भैरवाय नमः' या 'ॐ भैरवीयै नमः' का जाप किया जा सकता है।

  3. त्राटक (नेत्र संपर्क): साथी की आँखों में गहराई से देखें, जिससे ऊर्जा का प्रवाह और मानसिक समन्वय बढ़े।

  4. ऊर्जा का संतुलन और विसर्जन: संभोग के अंत में, उत्पन्न हुई ऊर्जा को ध्यान के माध्यम से पूरे शरीर में फैलाएं और उसे संतुलित करें, जिससे आध्यात्मिक उन्नति हो सके।

संभोग ऊर्जा के आनंद और उपयोग को बढ़ाने के सुझाव:

  • आत्म-जागरूकता: अपने शरीर और मन की प्रतिक्रियाओं के प्रति सतर्क रहें। यह जागरूकता ऊर्जा के प्रवाह को समझने और उसे नियंत्रित करने में मदद करती है।

  • संचार: साथी के साथ खुले दिल से संवाद करें। अपनी भावनाओं, इच्छाओं, और सीमाओं को साझा करें, जिससे आपसी समझ और विश्वास बढ़े।

  • नियमित अभ्यास: तांत्रिक विधियों का नियमित अभ्यास करें, लेकिन बिना किसी दबाव या अपेक्षा के। समय के साथ, यह अभ्यास गहरे अनुभव और आनंद की ओर ले जाएगा।

  • शरीर के विभिन्न हिस्सों पर ध्यान दें: सिर्फ यौन अंगों पर नहीं, बल्कि पूरे शरीर को ऊर्जा का स्रोत मानें। विभिन्न चक्रों पर ध्यान केंद्रित करें और ऊर्जा के प्रवाह को महसूस करें।

     

    तांत्रिक सेक्स में मंत्र जाप की विधि:

    तांत्रिक सेक्स के दौरान मंत्र जाप का उद्देश्य ऊर्जा को जागृत करना और उसे उच्च चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) की ओर निर्देशित करना है। निम्नलिखित चरणों में इस प्रक्रिया को समझा जा सकता है:

  • संतुलित श्वास (Breath Synchronization): साथी के साथ बैठकर गहरी और संतुलित श्वास लें। यह ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करता है और मन को शांत करता है।

  • मंत्र का चयन: संभोग से पहले, दोनों साथी एक विशेष मंत्र का चयन करें जो उनकी साधना के उद्देश्य से मेल खाता हो। उदाहरण के लिए, 'ॐ' या 'क्लीं' जैसे बीज मंत्रों का उपयोग किया जा सकता है।

  • मंत्र जाप: संभोग के दौरान, धीमी गति से मंत्र का जाप करें। यह जाप मानसिक या मौखिक हो सकता है। मंत्र की ध्वनि और कंपन ऊर्जा को जागृत करने में सहायक होती है।

  • ऊर्जा का संवेदन: मंत्र जाप के साथ-साथ, अपनी ऊर्जा को मूलाधार चक्र (Root Chakra) से सहस्रार चक्र (Crown Chakra) तक उठाने का प्रयास करें। यह ऊर्जा का उत्थान आध्यात्मिक जागरण में सहायक होता है।

देर तक संभोग करने के टिप्स:

तांत्रिक सेक्स में संभोग की अवधि को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित सुझाव उपयोगी हो सकते हैं:

  1. धीमी गति (Slow Pace): जल्दबाजी न करें। धीरे-धीरे आगे बढ़ें और प्रत्येक क्षण का पूर्ण आनंद लें।

  2. श्वास नियंत्रण (Breath Control): गहरी और नियंत्रित श्वास लें। यह उत्तेजना को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

  3. पोजीशन में बदलाव (Change Positions): समय-समय पर पोजीशन बदलें। इससे उत्तेजना का स्तर संतुलित रहता है और संभोग की अवधि बढ़ती है।

  4. पेल्विक मांसपेशियों का व्यायाम (Kegel Exercises): पेल्विक मांसपेशियों को मजबूत करने वाले व्यायाम करें। यह संभोग के दौरान नियंत्रण में सहायक होता है।

  5. मानसिक ध्यान (Mental Focus): ध्यान को संभोग से हटाकर अन्य विचारों पर केंद्रित करें। यह स्खलन में देरी करने में सहायक हो सकता है।

  6. ल्यूब्रिकेंट का उपयोग (Use of Lubricants): ल्यूब्रिकेंट का उपयोग करने से संभोग का अनुभव सुखद होता है और अवधि बढ़ाने में सहायता मिलती है।

महत्वपूर्ण सुझाव:

  • संचार (Communication): साथी के साथ अपनी भावनाओं और इच्छाओं के बारे में खुलकर बात करें। यह आपसी समझ और संतुष्टि को बढ़ाता है।

  • आत्म-जागरूकता (Self-Awareness): अपने शरीर और मन की प्रतिक्रियाओं के प्रति जागरूक रहें। यह तांत्रिक साधना में गहराई लाने में सहायक होता है।

  • नियमित अभ्यास (Regular Practice): तांत्रिक तकनीकों का नियमित अभ्यास करें। यह समय के साथ आपके अनुभव को समृद्ध करेगा।

निष्कर्ष:

तांत्रिक सेक्स और मंत्र जाप की विधियाँ शारीरिक और आध्यात्मिक जुड़ाव को गहरा करती हैं। इन तकनीकों का उद्देश्य केवल शारीरिक सुख नहीं, बल्कि ऊर्जा का उत्थान और आत्मिक संतुलन प्राप्त करना है। इनका अभ्यास सावधानीपूर्वक और समझदारी से करना चाहिए, ताकि जीवन में संतुलन और समृद्धि लाई जा सके।

 (Tantra Couple Intimacy) का चरण-दर-चरण मार्गदर्शन

1. मानसिक और भावनात्मक तैयारी

तंत्र केवल शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और भावनात्मक जुड़ाव भी है।

साथी के साथ एक-दूसरे पर भरोसा बनाएँ और एक आरामदायक वातावरण तैयार करें।

धीमी गति से गहरी साँसें लें और अपने साथी के साथ आँखों में आँखें डालकर जुड़ाव महसूस करें।


2. पवित्र स्थान बनाना


एक शांत और सकारात्मक ऊर्जा वाला स्थान चुनें।

मोमबत्तियाँ, हल्की रोशनी, सुगंधित धूप और मन को शांत करने वाला संगीत जोड़ें।


3. ध्यान और साँस नियंत्रण


एक-दूसरे के सामने बैठें और आँखें बंद करके ध्यान लगाएँ।

सिंक्रनाइज़ (समान गति से) गहरी साँसें लें और ऊर्जा प्रवाह को महसूस करें।

यह अभ्यास आपकी आत्मीयता को गहराई देगा।


4. स्पर्श और ऊर्जा जागरण

अपने साथी के शरीर को धीरे-धीरे छूकर ऊर्जा बिंदुओं को जागृत करें।

शरीर के विभिन्न हिस्सों को हल्के और सम्मानजनक तरीके से स्पर्श करें।


5. योनिशक्ति (Sexual Energy) का प्रवाह


यौन क्रिया से पहले एक-दूसरे के शरीर को समझें और धीरे-धीरे अपने स्पर्श से प्रेम बढ़ाएँ।

तंत्र में केवल आनंद नहीं बल्कि ऊर्जा को संतुलित करना महत्वपूर्ण होता है।


6. धीमी और गहरी यौन क्रिया


तंत्र सेक्स में जल्दबाजी नहीं होती, बल्कि धीमे और ध्यानपूर्वक आगे बढ़ा जाता है।

साँसों और शरीर की गति को संतुलित रखें।

प्रेम और एकता की भावना बनाए रखते हुए पूरी प्रक्रिया में समर्पित रहें।


7. चरमोत्कर्ष से परे जुड़ाव

तंत्र सेक्स केवल शारीरिक आनंद तक सीमित नहीं होता, बल्कि आत्मा का गहरा जुड़ाव होता है।

चरमोत्कर्ष (Orgasm) के बाद भी साथी के साथ जुड़े रहें और ऊर्जा को महसूस करें।


महत्वपूर्ण टिप्स

✔ जल्दबाजी न करें: तंत्र सेक्स धीरे-धीरे करने से अधिक आनंददायक होता है।
✔ संचार करें: साथी से खुले दिल से संवाद करें और अपनी भावनाओं को साझा करें।
✔ आत्म-जागरूकता बढ़ाएँ: केवल शरीर ही नहीं, मन और आत्मा का भी संबंध महत्वपूर्ण है।

 

प्रेम और संभोग में ध्यान (Tantric Love & Intimacy) - गहराई से समझें

ओशो के अनुसार, तंत्र का अर्थ केवल शारीरिक संबंधों से नहीं है, बल्कि यह प्रेम और ऊर्जा के उच्चतम स्तर पर पहुँचने की विधि है। तंत्र में संभोग को ध्यान (Meditation) की तरह देखा जाता है, जहाँ कोई जल्दबाजी नहीं होती, कोई लक्ष्य नहीं होता, और कोई अपराधबोध नहीं होता। यह एक गहरी ऊर्जा यात्रा है, जहाँ दो प्रेमी (या स्वयं भी) अपनी ऊर्जा को संपूर्ण रूप से जागरूक होकर अनुभव करते हैं।

A. तंत्र में प्रेम (Tantric Love) का सही अर्थ

आम प्रेम में आकर्षण, वासना, स्वार्थ और अपेक्षाएँ हो सकती हैं। लेकिन तंत्र प्रेम में कोई अपेक्षा नहीं होती—यह बस एक ऊर्जा प्रवाह है, एक समर्पण है।
➡ कैसे करें?

अपने साथी को बिना किसी शर्त के स्वीकार करें।

साथी के साथ समय बिताते हुए, सिर्फ "होना" सीखें, बिना किसी लक्ष्य के।

प्रेम को केवल भौतिक नहीं, बल्कि ऊर्जा और आत्मिक स्तर पर अनुभव करें।



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B. तंत्र में संभोग (Tantric Intimacy) का सही अर्थ

आम संभोग जल्दी खत्म हो जाता है और अक्सर अधूरापन छोड़ देता है। तंत्र कहता है कि जब प्रेम पूरी तरह से ध्यान में बदल जाता है, तो संभोग केवल शारीरिक क्रिया नहीं रहता, यह एक ऊर्जा ध्यान बन जाता है।

➡ कैसे करें?

1. धीरे करें, जल्दबाजी न करें

आम संभोग में जल्दबाजी होती है, लेकिन तंत्र में आपको धीमा होना है।

प्रक्रिया का आनंद लें, इसे खत्म करने की कोशिश न करें।

तंत्र में संभोग घंटों तक बिना किसी जल्दबाजी के चल सकता है।



2. नेत्र संपर्क (Eye Gazing) करें

अपने साथी की आँखों में बिना पलक झपकाए देखें।

इसमें गहरी ऊर्जा महसूस करें, प्रेम को आँखों से बहने दें।



3. श्वास (Breathing) का उपयोग करें

एक-दूसरे की सांसों को महसूस करें।

एक-दूसरे के साथ अपनी सांसों को सिंक्रोनाइज़ (Synchronize) करें।

गहरी और धीमी सांस लें, इसे फेफड़ों तक महसूस करें।



4. शरीर को पूरी तरह से महसूस करें

सिर्फ शारीरिक उत्तेजना पर ध्यान न दें, बल्कि पूरे शरीर को एक ऊर्जा स्रोत मानें।

शरीर के हर हिस्से पर ध्यान दें, विशेषकर हृदय (Heart Chakra) और पेट (Sacral Chakra) क्षेत्र पर।



5. ऊर्जा (Energy) को ऊपर ले जाएँ

सामान्य संभोग में ऊर्जा जांघों (Lower Chakras) में रह जाती है, लेकिन तंत्र इसे सिर तक (Crown Chakra) ले जाने की विधि है।

इसे करने के लिए, जब आप उत्तेजना महसूस करें, तो गहरी सांस लें और ऊर्जा को अपने सिर तक महसूस करें।


C. तंत्र और आध्यात्मिक जागरण (Spiritual Awakening)

अगर सही तरीके से किया जाए, तो तंत्र केवल प्रेम और संभोग तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह आत्मज्ञान (Self-Realization) की ओर ले जाता है।

➡ कैसे समझें?

जब आप प्रेम या संभोग को ध्यान से करने लगते हैं, तो यह सिर्फ शरीर की क्रिया नहीं रहती, यह ऊर्जा का विस्तार बन जाती है।

यह आपको शरीर से परे जाने में मदद करता है, जिससे आप अस्तित्व के साथ एक महसूस करने लगते हैं।

यह ध्यान के गहरे स्तर पर ले जाता है, जहाँ व्यक्ति "समर्पण (Surrender)" को अनुभव करता है।


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निष्कर्ष (Conclusion)

ओशो का तंत्र संभोग को ध्यान और ऊर्जा की ऊँचाई तक ले जाने की विधि है। इसमें प्रेम को बिना किसी अपेक्षा के अनुभव किया जाता है, और ऊर्जा को पूरे शरीर में प्रवाहित करने की विधि सिखाई जाती है।

याद रखें:
✔ तंत्र कोई तकनीक नहीं, बल्कि एक जागरूकता (Awareness) है।
✔ संभोग का उद्देश्य चरमोत्कर्ष (Orgasm) नहीं, बल्कि ऊर्जा का विस्तार (Energy Expansion) है।
✔ प्रेम केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक भी होना चाहिए।
✔ इसे धीरे-धीरे अभ्यास करें, जल्दबाजी न करें।

 

जब यौन ऊर्जा अत्यधिक सक्रिय हो और यह असुविधा या विचलन का कारण बने, तो इसे संतुलित करने और शरीर में पुनर्निर्देशित करने के लिए विभिन्न योगिक, एक्यूप्रेशर, और चिकित्सीय उपाय अपनाए जा सकते हैं। नीचे कुछ प्रभावी तकनीकों का विवरण प्रस्तुत है:

1. योगिक उपाय

(A) प्राणायाम (श्वास नियंत्रण):

  • नाड़ी शोधन प्राणायाम (वैकल्पिक नासिका श्वास):

    • विधि: आरामदायक मुद्रा में बैठें। दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिनी नासिका बंद करें और बाईं नासिका से श्वास लें। फिर दाहिनी नासिका खोलें और बाईं नासिका बंद करके श्वास छोड़ें। इस प्रक्रिया को विपरीत क्रम में दोहराएं।

    • लाभ: यह प्राणायाम मानसिक शांति प्रदान करता है, ऊर्जा संतुलन में मदद करता है, और यौन ऊर्जा को नियंत्रित करने में सहायक है।

  • शीतली प्राणायाम:

    • विधि: जीभ को नली के आकार में मोड़ें और मुंह से श्वास लें। फिर नाक से श्वास छोड़ें। इसे 5-10 बार दोहराएं।

    • लाभ: यह प्राणायाम शरीर को शीतलता प्रदान करता है, मानसिक शांति बढ़ाता है, और उत्तेजना को कम करने में मदद करता है।

(B) आसन:

  • सर्वांगासन (कंधा खड़ा):

    • विधि: पीठ के बल लेटें, पैरों को ऊपर उठाएं, और हाथों से कमर को सहारा दें, जिससे पूरा शरीर कंधों पर संतुलित हो।

    • लाभ: यह आसन रक्त परिसंचरण में सुधार करता है, मन को शांत करता है, और यौन ऊर्जा को संतुलित करने में सहायक है।

  • पश्चिमोत्तानासन (बैठकर आगे की ओर झुकना):

    • विधि: पैरों को सीधा करके बैठें, श्वास लें, और फिर श्वास छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें, हाथों से पैरों को पकड़ने का प्रयास करें।

    • लाभ: यह आसन मन को शांत करता है, नसों को शिथिल करता है, और यौन ऊर्जा को नियंत्रित करने में मदद करता है।

2. मुद्राएँ

  • अश्विनी मुद्रा:

    • विधि: आरामदायक स्थिति में बैठें। गुदा की मांसपेशियों को संकुचित करें (जैसे मल त्याग को रोकना) और फिर शिथिल करें। इसे 10-15 बार दोहराएं।

    • लाभ: यह मुद्रा पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को मजबूत करती है, ऊर्जा को ऊपर की ओर निर्देशित करती है, और यौन ऊर्जा के संतुलन में मदद करती है।

  • मूलबंध:

    • विधि: गुदा, मूत्रमार्ग, और जननांगों की मांसपेशियों को एक साथ संकुचित करें और कुछ सेकंड के लिए रोकें, फिर शिथिल करें। इसे 10-15 बार दोहराएं।

    • लाभ: यह बंध ऊर्जा को जागृत करता है, उसे ऊपर की ओर निर्देशित करता है, और यौन ऊर्जा को नियंत्रित करने में सहायक है।

3. एक्यूप्रेशर उपाय

  • रिन 6 (Ren 6) बिंदु:

    • स्थान: नाभि से लगभग 1.5 इंच नीचे।

    • विधि: इस बिंदु पर हल्का दबाव डालें और गोलाकार गति में मालिश करें। इसे 2-3 मिनट तक करें।

    • लाभ: यह बिंदु जीवन ऊर्जा को बढ़ाता है, यौन ऊर्जा को संतुलित करता है, और मानसिक शांति प्रदान करता है।

  • स्प्लीन 6 (Spleen 6) बिंदु:

    • स्थान: टखने के अंदरूनी हिस्से से लगभग 3 इंच ऊपर, पिंडली की हड्डी के पीछे।

    • विधि: इस बिंदु पर हल्का दबाव डालें और गोलाकार गति में मालिश करें। इसे 2-3 मिनट तक करें।

    • लाभ: यह बिंदु पेल्विक क्षेत्र में रक्त परिसंचरण में सुधार करता है, यौन ऊर्जा को संतुलित करता है, और मानसिक शांति में मदद करता है।

4. चिकित्सीय उपाय

  • ध्यान (मेडिटेशन):

    • विधि: एक शांत स्थान पर बैठें, आंखें बंद करें, और अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करें। मन में उत्पन्न विचारों को बिना प्रतिक्रिया के आने और जाने दें।

    • लाभ: ध्यान मानसिक शांति बढ़ाता है, उत्तेजना को कम करता है, और यौन ऊर्जा को नियंत्रित करने में सहायक है।

  • शीतल स्नान:

    • विधि: ठंडे पानी से स्नान करें या ठंडे पानी में पैरों को डुबोकर बैठें।

    • लाभ: यह शरीर की गर्मी को कम करता है, उत्तेजना को शांत करता है, और यौन ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करता है।

  • आहार नियंत्रण:

    • विधि: मसालेदार, तैलीय, और भारी खाद्य पदार्थों से बचें। ताजे फल, सब्जियाँ, और हल्के आहार का सेवन करें।

    • लाभ: यह शरीर की ऊर्जा को संतुलित करता है, मानसिक शांति बढ़ाता है, और यौन ऊर्जा को नियंत्रित करने में सहायक है।

इन उपायों का नियमित अभ्यास यौन ऊर्जा को संतुलित करने, मानसिक शांति बढ़ाने, और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है। यदि समस्या बनी रहती है या बढ़ती है, तो किसी योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित होगा।

संभोग के समय ऊर्जा को रूपांतरित करने के लिए योग मुद्रा और एक्यूपंक्चर पॉइंट्स

संभोग को केवल एक भौतिक क्रिया न मानकर यदि इसे एक ऊर्जात्मक साधना के रूप में देखा जाए, तो इसका लाभ शरीर, मन और आत्मा के स्तर पर प्राप्त किया जा सकता है। तंत्र, योग और एक्यूपंक्चर के अनुसार, सही योग मुद्राओं और ऊर्जा बिंदुओं को सक्रिय करने से संभोग ऊर्जा को ब्रह्मांडीय ऊर्जा में रूपांतरित किया जा सकता है।


1. संभोग के समय उपयुक्त योग मुद्राएँ (Sexual Yoga Postures)

योग में कुछ विशेष मुद्राएँ (Postures) हैं, जो संभोग ऊर्जा को ऊपर की ओर प्रवाहित कर सकती हैं और कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर सकती हैं।

(A) योनि मुद्रा (Yoni Mudra)

👉 विधि:

  • संभोग के दौरान पति-पत्नी दोनों अपनी हथेलियों को जोड़कर ध्यान मुद्रा में रखें।

  • श्वास को गहरा लें और नाभि पर ध्यान केंद्रित करें।

  • इससे शरीर में ऊर्जा का संचय होता है और संभोग ऊर्जा ब्रह्मांडीय ऊर्जा में बदलने लगती है।

(B) मूलबंध (Mula Bandha) – ऊर्जा को ऊपर उठाने के लिए

👉 विधि:

  • संभोग के दौरान मूलाधार चक्र (Root Chakra) को सक्रिय करने के लिए गुदा और जननेंद्रिय की मांसपेशियों को संकुचित करें।

  • इसे "मूलबंध" कहा जाता है, जिससे वीर्य या यौन ऊर्जा बाहर न गिरकर ऊपर की ओर प्रवाहित होती है।

  • यह योग मुद्रा संभोग ऊर्जा को सहस्रार चक्र (Crown Chakra) तक पहुंचाने में सहायक होती है।

(C) वज्रासन (Vajrasana) – संभोग के बाद ऊर्जा संतुलन के लिए

👉 विधि:

  • संभोग के बाद दोनों को वज्रासन में बैठना चाहिए।

  • यह मुद्रा शरीर में प्राणशक्ति (Vital Energy) को संतुलित करती है और मन को शांत रखती है।

  • इसमें ध्यान के साथ ओम मंत्र का जाप करने से ऊर्जा का रूपांतरण होता है।


2. एक्यूपंक्चर और प्रेशर पॉइंट्स (Acupressure Points)

तंत्र और एक्यूपंक्चर के अनुसार, शरीर में कुछ विशिष्ट बिंदु (Acupoints) ऐसे होते हैं, जिन पर दबाव देने से संभोग ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सकता है।

(A) ह्वी-यिन पॉइंट (Hui Yin Point) – पेरिनियम बिंदु

👉 स्थान:

  • यह पॉइंट गुदा (Anus) और जननेंद्रिय (Genitals) के बीच स्थित होता है।

  • इसे "GV-1" या "Hui Yin" कहा जाता है।

👉 ऊर्जा रूपांतरण के लिए विधि:

  • संभोग के दौरान इस बिंदु पर हल्का दबाव देने से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है और वीर्य की हानि रोकी जा सकती है।

  • इसे दबाने से शरीर की ऊर्जा का प्रवाह ऊर्ध्वगामी हो जाता है।

  • तिब्बती और चीनी तंत्रों में इसे 'अमरत्व बिंदु' (Immortality Point) कहा जाता है।


(B) किडनी-1 पॉइंट (Kidney-1 or Yong Quan) – जीवन ऊर्जा केंद्र

👉 स्थान:

  • यह पॉइंट पैर के तलवे के बीच स्थित होता है।

  • इसे "Yong Quan" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "जीवन का फव्वारा" (Fountain of Life)।

👉 ऊर्जा रूपांतरण के लिए विधि:

  • संभोग के दौरान इस पॉइंट पर हल्की मसाज करने से ऊर्जा जाग्रत होती है।

  • यह पॉइंट विशेष रूप से पुरुषों में यौन ऊर्जा को ब्रह्मचर्य ऊर्जा में बदलने में मदद करता है।

  • यह ऊर्जा को सिर तक पहुंचाने में सहायक होता है।


(C) तीसरी आंख का पॉइंट (Third Eye Point - GV-24.5)

👉 स्थान:

  • यह पॉइंट दोनों आंखों के बीच माथे के बीचों-बीच स्थित होता है।

  • इसे "आज्ञा चक्र" (Ajna Chakra) भी कहा जाता है।

👉 ऊर्जा रूपांतरण के लिए विधि:

  • संभोग के दौरान या चरमसुख (Orgasm) के समय इस बिंदु को हल्के से दबाने से ऊर्जा सहस्रार चक्र की ओर बढ़ती है।

  • इससे संभोग केवल शारीरिक नहीं रहता, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव में बदल जाता है।


3. विशेष तांत्रिक विधि – वीर्य संरक्षण और ओजस वृद्धि

संभोग के दौरान यदि ऊर्जा को सही दिशा में प्रवाहित किया जाए, तो यह ओजस (Ojas) में परिवर्तित होकर व्यक्ति को बलशाली और तेजस्वी बना सकती है।

✅ संभोग के समय मूलबंध (Mula Bandha) और ऊर्जा बिंदुओं पर दबाव देने से वीर्य ऊर्जा बाहर नष्ट नहीं होती।
शिव-शक्ति ध्यान (Shiva-Shakti Meditation) से संभोग ऊर्जा का रूपांतरण संभव है।
✅ संभोग के बाद ध्यान मुद्रा में बैठकर ‘सोहम’ या ‘ओम’ मंत्र का जाप करने से ऊर्जा को ब्रह्मांडीय स्तर पर भेजा जा सकता है।


💡 निष्कर्ष

✅ संभोग केवल एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूपांतरण का साधन बन सकता है।
मूलबंध, योनि मुद्रा और वज्रासन से संभोग ऊर्जा को सहस्रार चक्र तक ले जाया जा सकता है।
ह्वी-यिन पॉइंट (GV-1), किडनी-1 पॉइंट और थर्ड आई पॉइंट को दबाने से संभोग ऊर्जा का सही उपयोग संभव है।
✅ वीर्य शक्ति को संरक्षित करके इसे ओजस में बदला जा सकता है, जिससे व्यक्ति तेजस्वी और ऊर्जावान बनता है।

"संभोग ऊर्जा को जाग्रत करके आत्म-साक्षात्कार प्राप्त किया जा सकता है।" – तंत्र सिद्धांत

 

संभोग ऊर्जा (Sexual Energy) एक अत्यंत शक्तिशाली जीवन-ऊर्जा (Vital Energy) है, जिसे सही दिशा में प्रयोग करके आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। तंत्र, वेद और आधुनिक विज्ञान तीनों इस विषय पर अलग-अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इनका मूल उद्देश्य संभोग ऊर्जा को केवल भौतिक सुख तक सीमित न रखकर उसे उच्च चेतना (Higher Consciousness) और ब्रह्मांडीय ऊर्जा (Cosmic Energy) से जोड़ना होता है।


1. तांत्रिक दृष्टिकोण (Tantric Perspective)

तंत्रशास्त्र में संभोग को केवल भौतिक क्रिया न मानकर आध्यात्मिक साधना (Spiritual Practice) की तरह देखा जाता है। यह ऊर्जा के संतुलन, कुंडलिनी जागरण (Kundalini Awakening), और ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ने का एक माध्यम हो सकता है।

तंत्र में संभोग ऊर्जा के सकारात्मक उपयोग के तरीके

मैथुन को एक साधना बनाना – पति-पत्नी के बीच प्रेम और श्रद्धा होनी चाहिए। वासना की बजाय इसे शक्ति जागरण का साधन बनाएं।
शरीर में ऊर्जा प्रवाह को नियंत्रित करना – ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल संभोग न करना नहीं, बल्कि ऊर्जा को सही दिशा में ले जाना है। संभोग के समय मंत्रोच्चारण, विशेष मुद्रा (यौन योगासन), और चक्र ध्यान (Chakra Meditation) करके ऊर्जा को सहस्रार चक्र (Crown Chakra) तक ले जाया जा सकता है।
काम-क्रिया को कुंडलिनी जागरण से जोड़ना – यदि संभोग ऊर्जा को उचित साधना के माध्यम से सहस्रार तक पहुंचाया जाए तो यह आत्मबोध (Self-Realization) की ओर ले जा सकता है।

महत्त्वपूर्ण तांत्रिक धारणा: तंत्र में "मैथुन साधना" (Maithuna Sadhana) का उल्लेख मिलता है, जिसमें संभोग को समाधि की तरह माना गया है। यदि यह बिना वासना और केवल आध्यात्मिक उद्देश्य से किया जाए, तो इसे ‘दिव्य योग’ कहा जाता है।


2. वैदिक दृष्टिकोण (Vedic Perspective)

वेदों और उपनिषदों में संभोग को केवल प्रजनन (Procreation) तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि इसे आध्यात्मिक विकास (Spiritual Growth) और यज्ञ (Sacred Ritual) की तरह देखा गया है।

वैदिक दृष्टिकोण में संभोग ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग

गर्भाधान संस्कार (Garbhadhana Sanskar) – वैदिक परंपरा में संभोग को एक संस्कार माना गया, जिसमें संतान को दिव्य ऊर्जा से संपन्न करने हेतु विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है।
संभोग को ब्रह्मचर्य के रूप में अपनाना – ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल स्त्री-पुरुष संबंधों से बचना नहीं, बल्कि अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करके उच्चतर चेतना में परिवर्तित करना है।
ओजस वर्धन और ऊर्जा संतुलन – वेदों में कहा गया है कि वीर्य (Semen) और रज (Egg) का सही उपयोग न होने पर यह ऊर्जा नष्ट हो सकती है। योग और प्राणायाम द्वारा इसे ओजस (Ojas) में बदला जा सकता है।

ऋग्वेद (Rigveda) में कहा गया है कि जो व्यक्ति संभोग ऊर्जा को संयमित करके उसे ब्रह्मांडीय चेतना से जोड़ता है, वह जीवन में तेजस्वी बनता है।


3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Perspective)

आधुनिक विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि संभोग केवल जैविक क्रिया नहीं है, बल्कि यह मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर भी प्रभाव डालता है।

संभोग ऊर्जा और मस्तिष्क पर प्रभाव

ऑक्सिटोसिन और डोपामिन हार्मोन का स्राव – संभोग के दौरान शरीर में ऑक्सिटोसिन (Oxytocin) और डोपामिन (Dopamine) जैसे हार्मोन रिलीज होते हैं, जो मानसिक शांति और सकारात्मकता लाते हैं।
माइंडफुल सेक्स (Mindful Sex) – आधुनिक न्यूरोसाइंस में माइंडफुलनेस (Mindfulness) को संभोग से जोड़ा गया है। यदि संभोग के दौरान व्यक्ति पूरी तरह से वर्तमान क्षण में रहता है, तो उसका मस्तिष्क उच्च कंपन (Higher Frequency) उत्पन्न करता है।
ऊर्जा संतुलन और नाड़ी विज्ञान – विज्ञान के अनुसार, संभोग के दौरान स्पाइनल कॉर्ड (Spinal Cord) से ऊर्जा पूरे शरीर में प्रवाहित होती है। यदि इस ऊर्जा को नियंत्रित किया जाए, तो यह न केवल स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है, बल्कि मानसिक संतुलन भी बनाए रखती है।

डॉ. विल्हेम रीच (Dr. Wilhelm Reich) नामक वैज्ञानिक ने ‘ऑर्गोन एनर्जी’ (Orgone Energy) की खोज की थी, जिससे यह साबित हुआ कि संभोग ऊर्जा को ब्रह्मांडीय ऊर्जा में बदला जा सकता है।


संभोग ऊर्जा को ब्रह्मांडीय ऊर्जा में बदलने की विधियाँ

संभोग ऊर्जा को ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जोड़ने के लिए निम्नलिखित साधन अपनाए जा सकते हैं:

  1. यौन ध्यान (Sexual Meditation) – संभोग के दौरान सांसों पर ध्यान दें और ऊर्जा को मूलाधार से सहस्रार चक्र तक प्रवाहित करें।

  2. मंत्र जाप (Mantra Chanting) – संभोग के समय शिव-पार्वती या राधा-कृष्ण से संबंधित मंत्रों का जाप करने से ऊर्जा शुद्ध होती है।

  3. योग और प्राणायाम (Yoga & Pranayama) – कपालभाति, नाड़ी शोधन और महामुद्रा योग द्वारा वीर्य शक्ति को ओजस में बदला जा सकता है।

  4. संभोग के बाद ध्यान (Meditation after Sex) – संभोग के पश्चात 10-15 मिनट ध्यान करने से ऊर्जा का सही उपयोग होता है।

  5. संयमित संभोग (Controlled Intercourse) – बार-बार वीर्यपात से शरीर कमजोर हो सकता है। इसलिए "अष्टांग योग" में वर्णित "ब्रह्मचर्य" का पालन आवश्यक है।


निष्कर्ष (Conclusion)

संभोग केवल भौतिक सुख प्राप्त करने का साधन नहीं, बल्कि इसे तांत्रिक, वैदिक और वैज्ञानिक रूप से एक शक्तिशाली ऊर्जा के रूप में देखा जाता है। यदि इसे सही दिशा में नियंत्रित किया जाए, तो व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से ऊँचे स्तर तक पहुंच सकता है।

💡 प्रमुख बातें:
✔ तंत्र कहता है कि संभोग ऊर्जा से कुंडलिनी जागरण हो सकता है।
✔ वेदों में संभोग को यज्ञ और संस्कार के रूप में देखा गया है।
✔ विज्ञान बताता है कि संभोग ऊर्जा से मानसिक और शारीरिक संतुलन संभव है।
✔ ध्यान, मंत्र जाप, योग और प्राणायाम द्वारा इस ऊर्जा को ब्रह्मांडीय चेतना से जोड़ा जा सकता है।

"संभोग से समाधि तक की यात्रा संभव है, यदि इसे सही दिशा में ले जाया जाए।" – ओशो

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