सोमवार, 9 नवंबर 2020

श्री शनि बीज मन्त्र, शनि अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् , #शनि #चालिसा #शनिदेव के १०८ नाम

॥ श्री शनि अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

शनि बीज मन्त्र - 👇

॥ ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥

शनैश्चराय शान्ताय सर्वाभीष्टप्रदायिने । शरण्याय वरेण्याय सर्वेशाय नमो नमः ॥ १॥

सौम्याय सुरवन्द्याय सुरलोकविहारिणे । सुखासनोपविष्टाय सुन्दराय नमो नमः ॥ २॥

घनाय घनरूपाय घनाभरणधारिणे । घनसारविलेपाय खद्योताय नमो नमः ॥ ३॥

मन्दाय मन्दचेष्टाय महनीयगुणात्मने । मर्त्यपावनपादाय महेशाय नमो नमः ॥ ४॥

छायापुत्राय शर्वाय शरतूणीरधारिणे । चरस्थिरस्वभावाय चञ्चलाय नमो नमः ॥ ५॥

नीलवर्णाय नित्याय नीलाञ्जननिभाय च । नीलाम्बरविभूषाय निश्चलाय नमो नमः ॥ ६॥

वेद्याय विधिरूपाय विरोधाधारभूमये । भेदास्पदस्वभावाय वज्रदेहाय ते नमः ॥ ७॥

वैराग्यदाय वीराय वीतरोगभयाय च । विपत्परम्परेशाय विश्ववन्द्याय ते नमः ॥ ८॥

गृध्नवाहाय गूढाय कूर्माङ्गाय कुरूपिणे । कुत्सिताय गुणाढ्याय गोचराय नमो नमः ॥ ९॥

अविद्यामूलनाशाय विद्याऽविद्यास्वरूपिणे । आयुष्यकारणायाऽपदुद्धर्त्रे च नमो नमः ॥ १०॥

विष्णुभक्ताय वशिने विविधागमवेदिने । विधिस्तुत्याय वन्द्याय विरूपाक्षाय ते नमः ॥ ११॥

वरिष्ठाय गरिष्ठाय वज्राङ्कुशधराय च । वरदाभयहस्ताय वामनाय नमो नमः ॥ १२॥

ज्येष्ठापत्नीसमेताय श्रेष्ठाय मितभाषिणे । कष्टौघनाशकर्याय पुष्टिदाय नमो नमः ॥ १३॥

स्तुत्याय स्तोत्रगम्याय भक्तिवश्याय भानवे । भानुपुत्राय भव्याय पावनाय नमो नमः ॥ १४॥

धनुर्मण्डलसंस्थाय धनदाय धनुष्मते । तनुप्रकाशदेहाय तामसाय नमो नमः ॥ १५॥

अशेषजनवन्द्याय विशेषफलदायिने । वशीकृतजनेशाय पशूनाम्पतये नमः ॥ १६॥

खेचराय खगेशाय घननीलाम्बराय च । काठिन्यमानसायाऽर्यगणस्तुत्याय ते नमः ॥ १७॥

नीलच्छत्राय नित्याय निर्गुणाय गुणात्मने । निरामयाय निन्द्याय वन्दनीयाय ते नमः ॥ १८॥

धीराय दिव्यदेहाय दीनार्तिहरणाय च । दैन्यनाशकरायाऽर्यजनगण्याय ते नमः ॥ १९॥

क्रूराय क्रूरचेष्टाय कामक्रोधकराय च । कळत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमो नमः ॥ २०॥

परिपोषितभक्ताय परभीतिहराय । भक्तसङ्घमनोऽभीष्टफलदाय नमो नमः ॥ २१॥

इत्थं शनैश्चरायेदं नांनामष्टोत्तरं शतम् । प्रत्यहं प्रजपन्मर्त्यो दीर्घमायुरवाप्नुयात् ॥

卐॥ ॐ शं शनैश्वराय नम: ॥卐

शनैश्चर- धीरे- धीरे चलने वाला
शान्त- शांत रहने वाला
सर्वाभीष्टप्रदायिन्- सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला
शरण्य- रक्षा करने वाला
वरेण्य- सबसे उत्कृष्ट
सर्वेश- सारे जगत के देवता
सौम्य- नरम स्वभाव वाले
सुरवन्द्य- सबसे पूजनीय
सुरलोकविहारिण् - सुरह्स की दुनिया में भटकने वाले
सुखासनोपविष्ट - घात लगा के बैठने वाले
सुन्दर- बहुत ही सुंदर
घन – बहुत मजबूत
घनरूप - कठोर रूप वाले
घनाभरणधारिण् - लोहे के आभूषण पहनने वाले
घनसारविलेप - कपूर के साथ अभिषेक करने वाले
खद्योत – आकाश की रोशनी
मन्द – धीमी गति वाले
मन्दचेष्ट – धीरे से घूमने वाले
महनीयगुणात्मन् - शानदार गुणों वाला
मर्त्यपावनपद – जिनके चरण पूजनीय
होमहेश – देवो के देव
छायापुत्र – छाया का बेटा
शर्व – पीड़ा देना वेला
शततूणीरधारिण् - सौ तीरों को धारण करने वाले
चरस्थिरस्वभाव - बराबर या व्यवस्थित रूप से चलने वाले
अचञ्चल – कभी ना हिलने वाले
नीलवर्ण – नीले रंग वाले
नित्य - अनन्त एक काल तक रहने वाले
नीलाञ्जननिभ – नीला रोगन में दिखने वाले
नीलाम्बरविभूशण – नीले परिधान में सजने वाले
निश्चल – अटल रहने वाले
वेद्य – सब कुछ जानने वाले
विधिरूप - पवित्र उपदेशों देने वाले
विरोधाधारभूमी - जमीन की बाधाओं का समर्थन करने वाला
भेदास्पदस्वभाव - प्रकृति का पृथक्करण करने वाला
वज्रदेह – वज्र के शरीर वाला
वैराग्यद – वैराग्य के दाता
वीर – अधिक शक्तिशाली
वीतरोगभय – डर और रोगों से मुक्त रहने वाले
विपत्परम्परेश - दुर्भाग्य के देवता
विश्ववन्द्य – सबके द्वारा पूजे जाने वाले
गृध्नवाह – गिद्ध की सवारी करने वाले
गूढ – छुपा हुआ
कूर्माङ्ग – कछुए जैसे शरीर वाले
कुरूपिण् - असाधारण रूप वाले
कुत्सित - तुच्छ रूप वाले
गुणाढ्य – भरपूर गुणों वाला
गोचर - हर क्षेत्र पर नजर रखने वाले
अविद्यामूलनाश – अनदेखा करने वालो का नाश करने वाला
विद्याविद्यास्वरूपिण् - ज्ञान करने वाला और अनदेखा करने वाला
आयुष्यकारण – लम्बा जीवन देने वाला
आपदुद्धर्त्र - दुर्भाग्य को दूर करने वाले
विष्णुभक्त – विष्णु के भक्त
वशिन् - स्व-नियंत्रित करने वाले
विविधागमवेदिन् - कई शास्त्रों का ज्ञान रखने वाले
विधिस्तुत्य – पवित्र मन से पूजा जाने वाला
वन्द्य – पूजनीय
विरूपाक्ष – कई नेत्रों वाला
वरिष्ठ - उत्कृष्ट
गरिष्ठ - आदरणीय
देववज्राङ्कुशधर – वज्र-अंकुश रखने वाले
वरदाभयहस्त – भय को दूर भगाने वाले
वामन – (बौना ) छोटे कद वाला
ज्येष्ठापत्नीसमेत - जिसकी पत्नी ज्येष्ठ हो
श्रेष्ठ – सबसे उच्च
मितभाषिण् - कम बोलने वाले
कष्टौघनाशकर्त्र – कष्टों को दूर करने वाले
पुष्टिद - सौभाग्य के दाता
स्तुत्य – स्तुति करने योग्य
स्तोत्रगम्य - स्तुति के भजन के माध्यम से लाभ देने वाले
भक्तिवश्य - भक्ति द्वारा वश में आने वाला
भानु - तेजस्वी
भानुपुत्र – भानु के पुत्र
भव्य – आकर्षक
पावन – पवित्र
धनुर्मण्डलसंस्था - धनुमंडल में रहने वाले
धनदा - धन के दाता
धनुष्मत् - विशेष आकार वाले
तनुप्रकाशदेह – तन को प्रकाश देने वाले
तामस – ताम गुण वाले
अशेषजनवन्द्य – सभी सजीव द्वारा पूजनीय
विशेषफलदायिन् - विशेष फल देने वाले
वशीकृतजनेश – सभी मनुष्यों के देवता
पशूनां पति - जानवरों के देवता
खेचर – आसमान में घूमने वाले
खगेश - ग्रहो के देवता
घननीलाम्बर – गाढ़ा नीला वस्त्र पहनने वाले
काठिन्यमानस – निष्ठुर स्वभाव वाले
आर्यगणस्तुत्य – आर्य द्वारा पूजे जाने वाले
नीलच्छत्र – नीली छतरी वाले
नित्य – लगातार
निर्गुण – बिना गुण वाले
निरामय – रोग से दूर रहने वाला
गुणात्मन् - गुणों से युक्त
निन्द्य – निंदा करने वाले
वन्दनीय – वन्दना करने योग्य
धीर - दृढ़निश्चयी
दिव्यदेह – दिव्य शरीर वाले
दीनार्तिहरण – संकट दूर करने वाले
दैन्यनाशकराय – दुख का नाश करने वाला
आर्यजनगण्य – आर्य के लोग
क्रूर – कठोर स्वभाव वाले
क्रूरचेष्ट – कठोरता से दंड देने वाले
कामक्रोधकर – काम और क्रोध का दाता
कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण - पत्नी और बेटे की दुश्मनी
परिपोषितभक्त – भक्तों द्वारा पोषित
परभीतिहर – डर को दूर करने वाले
भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद – भक्तों के मन की इच्छा पूरी करने वाले।
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शनि चालिसा
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
                                   शनि चालिसा
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार 🚩🚩🌹🌹🚩🚩

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