रविवार, 3 अक्तूबर 2021

घर के प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण और उपाय=

घर के प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण और उपाय
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बहुत जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृ -दोष शांति के सरल उपाय पितृ या पितृ गण कौन हैं ?आपकी जिज्ञासा को शांत करती विस्तृत प्रस्तुति।

पितृ गण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।

 आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।

वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है  जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता  मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।

पितृ दोष क्या होता है?
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 हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।

पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।

इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना , विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।
डॉ0 विजय शंकर मिश्र:

पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है

1.अधोगति वाले पितरों के कारण
2.उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण

अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।

उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।

इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?

जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।

इनमें से भी गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।

अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है।

पितृ दोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है।

विभिन्न ऋण और पितृ दोष
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हमारे ऊपर मुख्य रूप से 5 ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।

मातृ ऋण👉  माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।

पितृ ऋण👉  पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है।

पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विभिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि।

देव ऋण👉 माता-पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं।

ऋषि ऋण👉 जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है  इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।

मनुष्य ऋण👉  माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की गाय आदि पशुओं का दूध पिया जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया।

लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता ,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं।

ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।

पितृों के रूष्‍ट होने के लक्षण
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पितरों के रुष्ट होने के कुछ असामान्‍य लक्षण जो मैंने अपने निजी अनुभव के आधार एकत्रित किए है वे क्रमशः इस प्रकार हो सकते है।

खाने में से बाल निकलना
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अक्सर खाना खाते समय यदि आपके भोजन में से बाल निकलता है तो इसे नजरअंदाज न करें

बहुत बार परिवार के किसी एक ही सदस्य के साथ होता है कि उसके खाने में से बाल निकलता है, यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि वह व्यक्ति यदि रेस्टोरेंट आदि में भी जाए तो वहां पर भी उसके ही खाने में से बाल निकलता है और परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका मजाक तक उडाते है।

बदबू या दुर्गंध
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कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है, यह भी नहीं पता चलता कि दुर्गंध कहां से आ रही है। कई बार इस दुर्गंध के इतने अभ्‍यस्‍त हो जाते है कि उन्हें यह दुर्गंध महसूस भी नहीं होती लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है अब जबकि परेशानी का स्रोत पता ना चले तो उसका इलाज कैसे संभव है

पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना
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मेरे एक मित्र ने बताया कि उनका अपने पिता के साथ झगड़ा हो गया है और वह झगड़ा काफी सालों तक चला पिता ने मरते समय अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की परंतु पुत्र मिलने नहीं आया, पिता का स्वर्गवास हो गया हुआ। कुछ समय पश्चात मेरे मित्र मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता को बिना कपड़ों के देखा है ऐसा स्‍वप्‍न पहले भी कई बार आ चुका है।

शुभ कार्य में अड़चन
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कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कोई त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग डल जाता है। ऐसी घटना घटित होती है कि खुशी का माहौल बदल जाता है। मेरे कहने का तात्‍पर्य है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।

घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना
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बहुत बार आपने अपने आसपास या फिर रिश्‍तेदारी में देखा होगा या अनुभव किया होगा कि बहुत अच्‍छा युवक है, कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी शादी नहीं हो रही है। एक लंबी उम्र निकल जाने के पश्चात भी शादी नहीं हो पाना कोई अच्‍छा संकेत नहीं है। यदि घर में पहले ही किसी कुंवारे व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उपरोक्त स्थिति बनने के आसार बढ़ जाते हैं। इस समस्‍या के कारण का भी पता नहीं चलता।

मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना
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आपने देखा होगा कि कि एक बहुत अच्छी प्रॉपर्टी, मकान, दुकान या जमीन का एक हिस्सा किन्ही कारणों से बिक नहीं पा रहा यदि कोई खरीदार मिलता भी है तो बात नहीं बनती। यदि कोई खरीदार मिल भी जाता है और सब कुछ हो जाता है तो अंतिम समय पर सौदा कैंसिल हो जाता है। इस तरह की स्थिति यदि लंबे समय से चली आ रही है तो यह मान लेना चाहिए कि इसके पीछे अवश्य ही कोई ऐसी कोई अतृप्‍त आत्‍मा है जिसका उस भूमि या जमीन के टुकड़े से कोई संबंध रहा हो।

संतान ना होना
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मेडिकल रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य होने के बावजूद संतान सुख से वंचित है हालांकि आपके पूर्वजों का इस से संबंध होना लाजमी नहीं है परंतु ऐसा होना बहुत हद तक संभव है जो भूमि किसी निसंतान व्यक्ति से खरीदी गई हो वह भूमि अपने नए मालिक को संतानहीन बना देती है

उपरोक्त सभी प्रकार की घटनाएं या समस्याएं आप में से बहुत से लोगों ने अनुभव की होंगी इसके निवारण के लिए लोग समय और पैसा नष्ट कर देते हैं परंतु समस्या का समाधान नहीं हो पाता। क्या पता हमारे इस लेख से ऐसे ही किसी पीड़ित व्यक्ति को कुछ प्रेरणा मिले इसलिए निवारण भी स्पष्ट कर रहा हूं।
डॉ0 विजय शंकर मिश्र:

पितृ-दोष कि शांति के उपाय 
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1👉 सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।

2👉 वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है  अगर नित्य पठन संभव ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।
वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।

3👉 भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :

मंत्र : "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।

4👉 अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।

5👉 अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।

6👉 पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए "हरिवंश पुराण " का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।

7👉  प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।

8👉 सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।

9👉 अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

10👉 पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा।


विशिष्ट उपाय :
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1👉 किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं।

2👉 यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें।

3👉 पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए।

एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें 
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इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें उसे थोड़े  जल में मिलाकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा।

4👉 घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है  इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है।

5 👉  अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर अथवा शिवालय में पितृ गायत्री मंत्र का सवा लाख विधि से जाप कराएं जाप के उपरांत दशांश हवन के बाद संकल्प ले की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है।

6👉 पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं.|

7👉 अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र " का पाठ करना चाहिए।

8👉 पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय : इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम 10 मिनट नित्य जलना आवश्यक है।

इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ किजद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें। नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें। ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्भर करती है।


पितृदोष निवारण के लिए करें विशेष उपाय (नारायणबलि-नागबलि)
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अक्सर हम देखते हैं कि कई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। वे चाहे जितना भी समय और धन खर्च कर लें लेकिन काम सफल नहीं होता। ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है।

यह दोषी पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है, जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। आने वाली पीढ़ीयों को भी कष्ट देता है। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। श्राद्ध पक्ष यही अवसर है जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है। इसी तरह नागबलि भी होती है।

क्या है नारायणबलि और नागबलि
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नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।

इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा
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जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।


क्यों की जाती है यह पूजा...?
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शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं।संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।

कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि-नागबलि
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नारायणबलि गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।

पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय
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नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी सरोवर के किनारे में भी संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा तीन दिनों की होती है।

जाने मृत्यु औऱ आत्मा से जुड़े गहरे ओर गुप्त रहस्य जो स्वयं यमराज ने बताये थे नचिकेता को?
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हमारे हिन्दू धर्म में विश्वास है की किसी भी मनुष्य की मृत्यु के पश्चात उस मनुष्य की आत्मा को यमदूतों दवारा यामलोग ले जाया जाता है जहाँ उस आत्मा को मृत्यु के देव व सूर्य पुत्र यमराज का सामना करना पड़ता है, तथा उसके अच्छे या बुरे कर्मो के हिसाब से वह स्वर्ग अथवा नरक पाता है।

पुराणिक कथाओ में दो ऐसी कथाएँ मिलती है जिसमे बताया गया है की स्वयं मृत्युदेव यमराज को भी साधारण मनुष्य के आगे मजबूर होना पड़ा था।पहली कथा के अनुसार यमराज को पतिव्रता सवित्री के जिद के आगे उसके मृत पति सत्यवान को जीवित करना पड़ा था।तथा दूसरी कथा एक बालक से संबंधित है, जिसमे बालक नचिकेता के हठ के आगे यमराज ने उसे मृत्यु से संबंधित गूढ़ रहस्य बताये थे।

आइये जानते है आखिर क्यों बालक नचिकेता को यमराज से मृत्यु के रहस्यों को जानने की जरूरत पड़ी और क्या थे ये रहस्य ?

नचिकेता वाजश्रवस ऋषि के पुत्र थे, एक बार वाजश्रवस ऋषि ने अपने आश्रम में विश्वजीत नामक यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के सम्पन्न होने के पश्चात अब दान-दक्षिणा की बारी आई।

 वाजश्रवस ऋषि ने यज्ञ में सम्लित ब्राह्मणो को ऐसी गाये दान में दी जो पूरी तरह से कमजोर और बूढी हो चुकी थी।नचिकेता धर्मिक प्रवर्ति के और बुद्धिमान थे, वह समझ गए थे की उनके पिता ने मोह के कारण स्वस्थ एवं जवान गायों के स्थान पर कमजोर एवं बीमार गाये ब्राह्मणो को दान दी।

नचिकेता अपने पिता के समाने गए और उनसे यह सवाल किया की पिता जी आप मुझे दान में किसे देंगे। वाजश्रवस ऋषि ने नचिकेता को डाट झपट कर दूर करना चाहा परन्तु नचिकेता ने अपना सवाल पूछना जारी रखा तब वाजश्रवस ऋषि ने क्रोधित होकर नचिकेता से कहा की में तुम्हे यमराज को दान करता हूं।

नचिकेता बहुत आज्ञाकारी पुत्र थे अतः वह अपने पिता की इच्छा पूरी करने यमलोक गए तथा यमलोक के द्वार पर तीन दिन तक बगैर कुछ खाये पीये यमराज की प्रतीक्षा करते रहे।

 तब बालक नचिकेता की भूखे प्यासे यमराज के द्वार में खड़े होने की खबर सुन स्वयं यमराज ने नचिकेता को दर्शन दिया तथा नचिकेता के प्रश्न पर यमराज ने उन्हें मृत्यु से जुड़े जो रहस्य बताए वह इस प्रकार है।

किस तरह शरीर से होता है ब्रह्म का ज्ञान व दर्शन?

मनुष्य शरीर दो आंखं, दो कान, दो नाक के छिद्र, एक मुंह, ब्रह्मरन्ध्र, नाभि, गुदा और शिश्न के रूप में 11 दरवाजों वाले नगर की तरह है, जो ब्रह्म की नगरी ही है। वे मनुष्य के हृदय में रहते हैं। इस रहस्य को समझकर जो मनुष्य ध्यान और चिंतन करता है, उसे किसी प्रकार का दुख नहीं होता है. ऐसा ध्यान और चिंतन करने वाले लोग मृत्यु के बाद जन्म-मृत्यु के बंधन से भी मुक्त हो जाता है।

क्या आत्मा मरती है या मारती है ?

जो कोई भी आत्मा को मरने या मारने वाला समझता है वास्तविकता में वह भटक हुआ होता है उसे सत्य का ज्ञान नहीं होता।क्योकि न तो आत्मा मरती है और नहीं आत्मा किसी को मार सकती है।

क्यों मनुष्य के हृदय में परमात्मा का वास माना जाता है ?

मनुष्य का हृदय ब्रह्मा को पाने का स्थान कहलाता है तथा मनुष्य ही परमात्मा को पाने का अधिकारी माना गया है। मनुष्य का हृदय अंगूठे के माप का होता है ,शास्त्रों में ब्रह्म को अंगूठे के आकार का माना गया है। और अपने में परमात्मा का वास मानने वाला व्यक्ति दूसरे के हृदय में भी ब्रह्म को विराजमान मानता है। इसलिए दूसरों की बुराई व घृणा से दूर रहना चाहिए।


आत्मा का स्वरूप कैसा होता है ?

शरीर के नाश होने के साथ अात्मा के जीवात्मा का नाश नहीं होता क्योकि आत्मा अजर अमर है।आत्मा का भोग-विलास, नाशवान, अनित्य और जड़ शरीर से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यह अनन्त, अनादि और दोष रहित है। इसका कोई कारण है, न कोई कार्य यानी इसका न जन्म होता है, न मरती है।

यदि कोई व्यक्ति आत्मा- परमात्मा का रहस्य नहीं जनता तो उसे किस प्रकार के फल भोगने पड़ते है ?

जिस तरह बारिश का पानी होता तो एक ही है परन्तु पहाड़ों पर गिरने से वह एक जगह नहीं रुकता तथा नीचे की ओर बहता रहता है।

 इस प्रकार वह कई प्रकार के रंग रूप, गंध आदि से होकर गुजरता है. ठीक उसी प्रकार परमात्मा से जन्म लेने वाले मनुष्य, प्राणी, देव, सुर, असुर होते तो परमात्मा का ही अस्तित्व, परन्तु अपने आस-पास के वातावरण आदि से घुल-मिल कर वह उसी वातावरण के आदि हो जाते है। बारिश की बूंदों की तरह सुर असुर और दुष्ट प्रवर्ति वाले मनुष्यो को अनेको योनियों में भटकना पड़ता है।

आत्मा निकलने के बाद क्या शरीर में शेष रह जाता है ?

मनुष्य के शरीर से आत्मा निकल जाने के साथ ही साथ उसका इंद्रिय ज्ञान और प्राण दोनों ही निकल जाते है. मनुष्य शरीर में क्या बाकी रह जाता है यह तो दिखाई नहीं देता परन्तु वह परब्रह्म उस शरीर में शेष रह जाता है. जो हर चेतन और प्राणी में विदयमान है।

कैसा है ब्रह्म का स्वरूप और वे कहां और कैसे प्रकट होते हैं ?

ब्रह्म प्राकृतिक गुणों से एकदम अलग हैं, वे स्वयं प्रकट होने वाले देवता हैं. इनका नाम वसु है. वे ही मेहमान बनकर हमारे घरों में आते हैं. यज्ञ में पवित्र अग्रि और उसमें आहुति देने वाले भी वसु देवता ही होते हैं. इसी तरह सभी मनुष्यों, श्रेष्ठ देवताओं, पितरों, आकाश और सत्य में स्थित होते हैं. जल में मछली हो या शंख, पृथ्वी पर पेड़-पौधे, अंकुर, अनाज, औषधि हो या पर्वतों में नदी, झरने और यज्ञ फल के तौर पर भी ब्रह्म ही प्रकट होते हैं. इस प्रकार ब्रह्म प्रत्यक्ष देव हैं।

मृत्यु के बाद आत्मा को क्यों और कौन सी योनियां मिलती हैं?

यमदेव के अनुसार अच्छे और बुरे कामों और शास्त्र, गुरु, संगति, शिक्षा और व्यापार के माध्यम से देखी-सुनी बातों के आधार पर पाप-पुण्य होते हैं. इनके आधार पर ही आत्मा मनुष्य या पशु के रूप में नया जन्म प्राप्त करती है. जो लोग बहुत ज्यादा पाप करते हैं, वे मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त अन्य योनियों में जन्म पाते हैं. अन्य योनियां जैसे पेड़-पौध, पहाड़, तिनके आदि।

क्या है आत्मज्ञान और परमात्मा का स्वरूप ?

यमराज ने नचिकेता को ॐ का प्रतीक ही परमात्मा का स्वरूप बताया। उन्होंने बताया की अविनाशी प्रणव यानि ॐ ही परब्रह्म है. ॐ ही परमात्मा को पाने में अभी आश्रयो में सर्वश्रेष्ठ और अंतिम माध्यम है. सारे वेदो एवं छन्द मंत्रो में ॐ को ही परम रहस्य बताया गया है
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 मरने के 47 दिन बाद आत्मा पहुंचती है यमलोक, ये होता है रास्ते में

मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नरक की मान्यता है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य अच्छे कर्म करता है, वह स्वर्ग जाता है,जबकि जो मनुष्य जीवन भर बुरे कामों में लगा रहता है, उसे यमदूत नरक में ले जाते हैं। सबसे पहले जीवात्मा को यमलोक लेजाया जाता है। वहां यमराज उसके पापों के आधार पर उसे सजा देते हैं।

मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेता है।

गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है। उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं। वह जड़ अवस्था में आ जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं।

- मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं। वे बड़े भयानक, क्रोधयुक्त नेत्र वाले तथा पाशदंड धारण किए होते हैं। वे नग्न अवस्था में रहते हैं और दांतों से कट-कट की ध्वनि करते हैं। यमदूतों के कौए जैसे काले बाल होते हैं। उनका मुंह टेढ़ा-मेढ़ा होता है। नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। यमराज के इन दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मलमूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है।

- यमराज के दूत जीवात्मा के गले में पाश बांधकर यमलोक ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराजके दूत भयभीत करते हैं और उसे नरक में मिलने वाली यातनाओं के बारे में बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं।

- इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी अपने पापकर्मों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है। वह भूख-प्यास से भी व्याकुल हो उठताहै। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। इस प्रकार यमदूत उस पापी को अंधकारमय मार्ग से यमलोक ले जाते हैं।

- गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है, चार कोस यानी 13-16 कि.मी) दूर है। वहां पापी जीव को दो- तीन मुहूर्त में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसे भयानक यातना देते हैं। यह याताना भोगने के बाद यमराज की आज्ञा से यमदूत आकाशमार्ग से पुन: उसे उसके घर छोड़ आते हैं।

- घर में आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा रखती है, लेकिन यमदूत के पाश से वह मुक्त नहीं हो पातीऔर भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समयमें दान करते हैं, उससे भी प्राणी की तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से बेचैन होकर वह जीव यमलोक जाता है।

- जिस पापात्मा के पुत्र आदि पिंडदान नहीं देते हैं तो वे प्रेत रूप हो जाती हैं और लंबे समय तक निर्जन वन में दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय बीतने के बाद भी कर्म को भोगना ही पड़ता है, क्योंकि प्राणी नरक यातना भोगे बिना मनुष्य शरीर नहीं प्राप्त होता। गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत खाता है। नवें दिन पिंडदान करने से प्रेत का शरीर बनता है। दसवें दिनपिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।

- गरुड़ पुराण के अनुसार शव को जलाने के बाद पिंड से हाथ के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है। वही यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से हृदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नवें और दसवें दिन से भूख-प्यास उत्पन्न होती है। यह पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेतरूप में ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है।

- यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है। उस मार्ग पर प्रेत प्रतिदिन दो सौ योजन चलता है। इस प्रकार 47 दिन लगातार चलकर वह यमलोक पहुंचता है। मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर पापी जीव यमराज के घर जाता है।

- इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार है - सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण,शीतढ्य, बहुभीति। इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद यमराजपुरी आती है। पापी प्राणी यमपाश में बंधा मार्ग में हाहाकार करते हुए यमराज पुरी जाता है... ।

 मरने के बाद कौन पहुंचता है देवलोक
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मरने के बाद व्यक्ति की तीन तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3.
अधो गति। व्यक्ति जब देह छोड़ता है तब सर्वप्रथम वह सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर जाता है।
सूक्ष्म शरीर की गति के अनुसार ही वह भिन्न-भिन्न लोक में विचरण करता है और अंत में
अपनी गति अनुसार ही पुन: गर्भ धारण करता है।
आत्मा के तीन स्वरूप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में
वास करता है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासनामय शरीर में निवास होता है
तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। तीसरा स्वरूप है सूक्ष्म स्वरूप। मरने के बाद जब आत्मा सूक्ष्मतम
शरीर में प्रवेश करता है, तब उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।
कमजोर सूक्ष्म शरीर से ऊपर की यात्रा मुश्किल हो जाती है तब ऐसा व्यक्ति नीचे के लोक में
स्वत: ही गिर जाता है या वह मृत्युलोक में ही पड़ा रहता है और दूसरे जन्म का इंतजार करता है।
उसका यह इंतजार 100 वर्ष से 1000 वर्ष तक की अवधि का भी हो सकता है।
पहले बताए गए आत्मा के तीन स्वरूप से अलग- 1. पहली विज्ञान आत्मा, 2. दूसरी महान
आत्मा और 3. तीसरी भूत आत्मा।
1. विज्ञान आत्मा वह है, जो गर्भाधान से पहले स्त्री-पुरुष में संभोग की इच्छा उत्पन्न
करती है, वह आत्मा रोदसी नामक मंडल से आता है, उक्त मंडल पृथ्वी से सत्ताईस हजार मील
दूर है।
2. महान आत्मा वह है, जो चन्द्रलोक से अट्ठाईस अंशात्मक रेतस बनाकर आता है, उसी 28
अंश रेतस से पुरुष पुत्र पैदा करता है। 28 अंश रेतस लेकर आया महान आत्मा मरने के बाद
चन्द्रलोक पहुंच जाता है, जहां उससे वहीं 28 अंश रेतस मांगा जाता है। चंद्रलोक में वह
आत्मा अपने स्वजातीय लोक में रहता है।
3. भूतात्मा वह है, जो माता-पिता द्वारा खाने वाले अन्न के रस से बने वायु द्वारा गर्भ पिण्ड
में प्रवेश करता है। उससे खाए गए अन्न और पानी की मात्रा के अनुसार अहम भाव शामिल
होता है, इसी को प्रज्ञानात्मा तथा भूतात्मा कहते हैं। यह भूतात्मा पृथ्वी के
अलावा किसी अन्य लोक में नहीं जा सकता है।

वे लोग जो जिंदगीभर क्रोध, कलह, नशा, भोग-संभोग, मांसभक्षण आदि धर्म-विरुद्ध निंदित
कर्म में लगे रहे हैं मृत्यु के बाद उन्हें अधो गति प्राप्त होती। जिन्होंने थोड़ा-बहुत धर्म
भी साधा है या जो मध्यम मार्ग में रहे हैं उन्हें स्थिर गति प्राप्त होती है। और जिन्होंने
वेदसम्मत आचरण करते हुए जीवनपर्यंत यम-नियमों का पालन किया है उन्हें उर्ध्व गति प्राप्त
होती है।
अधो गति वाला आत्मा कीट-पतंगे, कीड़े-मकौड़े, रेंगने वाले जंतु, जलचर प्राणी और पेड़-पौधे
आदि योनि में पहुंच जाता है। स्थिर गति वाला आत्मा पशु, पक्षी और मनुष्य की योनि में पहुंच
जाता है लेकिन जो उर्ध्व गति वाला आत्मा है उनमें से कुछ पितरों के लोक और कुछ देवलोक
पहुंच जाता है।
जो आत्मा अपने आध्यात्मिक बल के द्वारा देवलोक चला जाता है वह देवलोक में रहकर
सुखों को भोगता है। यदि वहां भी वह देवतुल्य बनकर रहता है तो देवता हो जाता है। लेकिन
यदि उनमें राग-द्वेष उत्पन्न होता है तो वह फिर से मृत्युलोक में मनुष्य योनि में जन्म ले
लेता है।
लेकिन उर्ध्व गति प्राप्त कुछ आत्माएं अपने आध्यात्मिक बल की शक्ति से पितर और
देवलोक से ऊपर ब्रह्मलोक में जाकर सदा के लिए जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
यही मोक्ष है।

-संदर्भ वेद-पुराण।

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: मृत शरीर जलाना अर्थपूर्ण
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हिंदू जलाते हैं शरीर को। क्योंकि जब तक शरीर जल न जाए, तब तक आत्मा शरीर के आसपास भटकती है। पुराने घर का मोह थोड़ा सा पकड़े रखता है।तुम्हारा पुराना घर भी गिर जाए तो भी नया घर बनाने तुम एकदम से न जाओगे। तुम पहले कोशिश करोगे, कि थोड़ा इंतजाम हो जाए और इसी में थोड़ी सी सुविधा हो जाए, थोड़ा खंभा सम्हाल दें, थोड़ा सहारा लगा दें। किसी तरह इसी में गुजारा कर लें। नया बनाना तो बहुत मुश्किल होगा, बड़ा कठिन होगा।
जैसे ही शरीर मरता है, वैसे ही आत्मा शरीर के आसपास वर्तुलाकार घूमने लगती है। कोशिश करती है फिर से प्रवेश की। इसी शरीर में प्रविष्ट हो जाए। पुराने से परिचय होता है, पहचान होती है। नए में कहां जाएंगे, कहां खोजेंगे? मिलेगा, नहीं मिलेगा?इसलिए हिंदुओं ने इस बात को बहुत सदियों पूर्व समझ लिया कि शरीर को बचाना ठीक नहीं है। इसलिए हिंदुओं ने कब्रों में शरीर को नहीं रखा। क्योंकि उससे आत्मा की यात्रा में निरर्थक बाधा पड़ती है। जब तक शरीर बचा रहेगा थोड़ा बहुत, तब तक आत्मा वहां चक्कर लगाती रहेगी।
इसलिए हिंदुओं के मरघट में तुम उतनी प्रेतात्माएं न पाओगे, जितनी मुसलमानों या ईसाइयों के मरघट में पाओगे। अगर तुम्हें प्रेतात्माओं में थोड़ा रस हो, और तुमने कभी थोड़े प्रयोग किए हों–किसी ने भी प्रेतात्माओं के संबंध में, तो तुम चकित होओगे; हिंदू मरघट करीब-करीब सूना है। कभी मुश्किल से कोई प्रेतात्मा हिंदू मरघट पर मिल सकती है। लेकिन मुसलमानों के मरघट पर तुम्हें प्रेतात्माएं ही प्रेतात्माएं मिल जाएंगी। शायद यही एक कारण इस बात का भी है, कि ईसाई और मुसलमान दोनों ने यह स्वीकार कर लिया, कि एक ही जन्म है। क्योंकि मरने के बाद वर्षों तक आत्मा भटकती रहती है कब्र के आस-पास।
हिंदुओं को तत्क्षण यह स्मरण हो गया कि जन्मों की अनंत शृंखला है। क्योंकि यहां शरीर उन्होंने जलाया कि आत्मा तत्क्षण नए जन्म में प्रवेश कर जाती है। अगर मुसलमान फिर से पैदा होता है, तो उसके एक जन्म में और दूसरे जन्म के बीच में काफी लंबा फासला होता है। वर्षों का फासला हो सकता है। इसलिए मुसलमान को पिछले जन्म की याद आना मुश्किल है।
इसलिए यह चमत्कारी बात है, और वैज्ञानिक इस पर बड़े हैरान होते हैं कि जितने लोगों को पिछले जन्म की याद आती है, वे अधिकतर हिंदू घरों में ही क्यों पैदा होते हैं? मुसलमान घर में पैदा क्यों नहीं होते? कभी एकाध घटना घटी है। ईसाई घर में कभी एकाध घटना घटी है। लेकिन हिंदुस्तान में आए दिन घटना घटती है। क्या कारण है?कारण है। क्योंकि जितना लंबा समय हो जाएगा, उतनी स्मृति धुंधली हो जाएगी पिछले जन्म की। जैसे आज से दस साल पहले अगर मैं तुमसे पूछूं, कि आज से दस साल पहले उन्नीस सौ पैंसठ, एक जनवरी को क्या हुआ? एक जनवरी उन्नीस सौ पैंसठ में हुई, यह पक्का है; तुम भी थे, यह भी पक्का है। लेकिन क्या तुम याद कर पाओगे एक जनवरी उन्नीस सौ पैंसठ?
तुम कहोगे कि एक जनवरी हुई यह भी ठीक है। मैं भी था यह भी ठीक है। कुछ न कुछ हुआ ही होगा यह भी ठीक है। दिन ऐसे ही खाली थोड़े ही चला जाएगा! ज्ञानी का दिन भला खाली चला जाए, अज्ञानी का कहीं खाली जा सकता है? कुछ न कुछ जरूर हुआ होगा। कोई झगड़ा-झांसा, उपद्रव, प्रेम, क्रोध, घृणा–मगर क्या याद आता है?
कुछ भी याद नहीं आता। खाली मालूम पड़ता है एक जनवरी उन्नीस सौ पैंसठ, जैसे हुआ ही नहीं।
जितना समय व्यतीत होता चला जाता है, उतनी नई स्मृतियों की पर्ते बनती चली जाती हैं, पुरानी स्मृति दब जाती है। तो अगर कोई व्यक्ति मरे आज, और आज ही नया जन्म ले ले तो शायद संभावना है, कि उसे पिछले जन्म की थोड़ी याद बनी रहे। क्योंकि फासला बिलकुल नहीं है। स्मृति कोई बीच में खड़ी ही नहीं है। कोई दीवाल ही नहीं है।
लेकिन आज मरे, और पचास साल बाद पैदा हो तो स्मृति मुश्किल हो जाएगी। पचास साल! क्योंकि भूत-प्रेत भी अनुभव से गुजरते हैं। उनकी भी स्मृतियां हैं; वे बीच में खड़ी हो जाएंगी। एक दीवाल बन जाएगी मजबूत।
इसलिए ईसाई, मुसलमान और यहूदी; ये तीनों कौमें जो मुर्दो को जलाती नहीं, गड़ाती हैं; तीनों मानती हैं कि कोई पुनर्जन्म नहीं है, बस एक ही जन्म है। उनके एक जन्म के सिद्धांत के पीछे गहरे से गहरा कारण यही है, कि कोई भी याद नहीं कर पाता पिछले जन्मों को।
हिंदुओं ने हजारों सालों में लाखों लोगों को जन्म दिया है, जिनकी स्मृति बिलकुल प्रगाढ़ है। और उसका कुल कारण इतना है कि जैसे ही हम मुर्दे को जला देते हैं–घर नष्ट हो गया बिलकुल। खंडहर भी नहीं बचा कि तुम उसके आसपास चक्कर काटो। वह राख ही हो गया। अब वहां रहने का कोई कारण ही नहीं। भागो और कोई नया छप्पर खोजो।
आत्मा भागती है; नए गर्भ में प्रवेश करने के लिए उत्सुक होती है। वह भी तृष्णा से शुरुआत होती है। इसलिए तो हम कहते हैं, जो तृष्णा के पार हो गया, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। क्योंकि पुनर्जन्म का कोई कारण न रहा। सब घर कामना से बनाए जाते हैं। शरीर कामना से बनाया जाता है। कामना ही आधार है शरीर का। जब कोई कामना ही न रही, पाने को कुछ न रहा, जानने को कुछ न रहा, यात्रा पूरी हो गई, तो नए गर्भ में यात्रा नहीं होती। सनातन धर्म में कहा गया है आत्मा अनन्त यात्रा पर होती है जबतक उसको परमात्मा साक्षात्कार ना हो जाये इसलिए आत्मा अपनी यात्रा को अपने कर्म अनुसार जन्म लेती है और यात्रा पर चलती रहती है सिर्फ मनुष्य जन्म ही वो है जिसमे इस यात्रा को पूर्ण किया जा सकता है लेकिन मनुष्य सांसारिक रिस्ते नातों और माया में उलझकर इस जन्म को बर्बाद कर देता है यकीन मानिए आज मनुष्य है उनमें से कोई ही दोबारा मनुष्य जन्म में आये क्योकि पाप बहुत बढ़ गए है और मनुष्य जन्म बड़ा ही दुर्लभ है ये इतनी आसानी से नही मिलता बहुत से लोग निराश होकर आत्म हत्या कर लेते है आत्म हत्या से बड़ा कोई पाप नही । सिर्फ मनुष्य ही कमाता है और कोई कमाता नही जब भगवान उनको भूखा नही मरने देता तो आपको कैसे मरने दे सकता है अगर ऐसा होता तो जो पहाड़ो गुफाओं में साधु संत रहते है वो कबके मर गए होते ।समय अभी है जो करना है अभी करना है नही तो ऐसे ही दुःख भोगते रहोगे 

अमावस्या सर्वपितृ श्राद्ध 

  ये पितृपक्ष के सोलह दिनोंमें अमावस्या को सर्वपितृ श्राद्ध करने से सात पीढियो के सभी पितरो की पूजा हो जाती है और गोत्र देवताओ सहित सर्व पितृलोक अशिरवाद बरसाता है ।

   ब्रह्मांड बाराह राशीओ से बंधा हुवा है । मेष राशि ब्रह्मांड का प्रवेश द्वार है । मीन राशि का द्वार देवलोक ( सूर्यलोक ) की ओर है । कन्या राशि का द्वार पितृलोक ( चंद्रलोक ) की ओर है । जब किसी की मृत्यु हिती है तब जीव कर्मानुसार इनमे से एक द्वार की ओर गति करता है । सद कर्म , सदाचार ओर पैरोकारी जीव अपने पुण्यबल से सूर्यलोक जाता है । बाकी जीव पितृयान ( चन्त्रलोक ) में गति करते है ।  चंद्र सूक्ष्म सृष्टि का नियमन करते है । 
डॉ0 विजय शंकर मिश्र:

     सूर्य जब कन्या राशिमें प्रवेश करते है तब पाताल ओर पितृलोक की सृष्टि का जागरण हो जाता है । चंद्र की 16 कला है । पूर्णिमा से अमावस्या तक कि 16 तिथि सोलह कला है । जिसदिन मनुष्य की मृत्यु होती है उसदिन जो तिथि हो वो कला खुली होती है इसलिए वो जीवको उस कलामे स्थान मिलता है । भाद्रपद की पूर्णिमा से पितृलोक जागृत हो जाता है और जिस दिन जो कला खुली होती है उसदिन उस कलामे रहे जीव पृथ्वीलोकमें अपने स्नेही स्वजन , पुत्र पौत्रादिक के घर आते है । उस दिन परिवार द्वारा उनकेलिए श्रद्धापूर्वक जो भी पूजा , नैवेद्य , दान पुण्य हो रहा हो वो देखकर तृप्त होते है और आशीर्वाद देते है । कुल के आराध्य देवी देवता मृतक जीवोंको तृप्त देखकर प्रसन्न होते है और परिवार को सुख संपदा प्रदान करते है । ऐसे ही जिस घरमे श्राद्ध पूजा कुछ नही होता ये देखकर पितृ व्यथित होकर चले जाते है । और कुलके आराध्य देवी देवता उन जीवात्माओं के व्यथित होने से खिन्न होते है । जीवात्मा की गति का ये सूक्ष्म विज्ञान को समझकर हमारे ऋषि मुनियों ने मनुष्य की सुखकारी केलिए ये धर्म परम्परा स्थापित की है । 

  अमावस्या के दिन चंद्र की सभी 16 कला खुली रहती है इसलिए उसदिन भूले बिसरे सभी पितृओ पृथ्वीलोक पर आते है । इसलिए उस दिन के श्राद्ध कार्य अति महत्वपूर्ण है । चंद्र देव का दूध पर आधिपत्य है इसलिए श्राद्धमें दुधपाक या क्षीर भोजन बनाकर पितृओ को नैवेद्य भोग लगाया जाता है । श्राद्धपूजा में ये सब किया जा सकता है 

1  ब्राह्मण के पास पिंडदान तर्पण पूजा
2  दुधपाक क्षीर का नैवेद्य बनाकर घरमे पितृदेव को भोग लगाना 
3  पितृओ के नाम ब्राह्मण , भिक्षु , बटुक , कन्या को भोजन करवाना 
4  कौवे ओर पक्षियो को भोजन देना 
5  गाय , कुते ओर पशुओं को भोजन देना 
6  जलचर जीव ओर किट पतंगे जैसे जीवो को भोजन
7  पितृओ के नाम दान दक्षिणा जैसे पुण्यकार्य 
8  शिवमन्दिरमे पूजा कर पितृओ की दिव्यगति केलिए प्रार्थना करना  ।

इनमेसे जो भी शक्य हो वो करना चाहिए । पितृ पूर्वजो के आशीर्वाद से परिवार सुख सम्पति धन धान्य सुआरोग्य संतति ओर सन्मान प्राप्त करता है । कुलगोत्र के देवी देवता सह तमाम आराध्य देवी देवता पितृ पूर्वजो की प्रसन्नता देखकर ही कृपा करते है । मनुष्य जीवन को सफल और सुखी बनाने और स्वआत्मा कि दिव्य गति प्राप्त करने केलिए हिन्दू धर्म शास्त्रों की ये सर्वश्रेष्ठ भावपूजा है । जीव की सूक्ष्म गति को समझनेवाले अनेक साधक प्रतिमास अमावस्या को ये भावपूजा अवश्य ही करते है। जगत के पालनहार नारायण इस पूजा से अति प्रसन्न होते है ।
*‼️🙏💎"श्री राधे राधे"💎🙏‼️*


     *‼️🙏🌹"श्राद्ध पूजन का महत्‍व"🌹🙏‼️*
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*अगर पितर रुठ जाएं तो कुंडली में आता है बड़ा दोष*
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*✍️✍️ हिंदु धर्म में श्राद्ध का बड़ा महत्‍व है। कुंडली में पितृ दोष से बड़ा दोष और कुछ नहीं। इसीलिए श्राद्ध पक्ष महत्‍वपूर्ण माने गए हैं हिन्दू धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है। कहते हैं कि मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी है। यह मान्यता है कि अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे धरती से मुक्ति नहीं मिलती और वह आत्मा के रूप में संसार में ही रह जाता है।* 

 
*📿⚜️"ब्रह्म पुराण में इसे कहा गया है श्राद्ध"⚜️📿*
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*ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितृों के नाम उचित विधि की ओर से ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितृों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितृों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।*
*इसी के तहत वर्ष में पंद्रह दिन के लिए श्राद्ध तर्पण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर पितृ रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितृों की अशांति के कारण धनहानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।*

       *🔱💦"पितृ पक्ष का महत्व"💦🔱*
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*ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पित्रों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए।*
*पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितृों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं।*
*मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितृों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।*

*💎"क्या दिया जाता है श्राद्ध में"💎*
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*श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल* *योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र,* *प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।*

*‼️🌹"श्राद्ध में कौओं का महत्व"🌹‼️*
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*कौए को पित्रों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।*

*किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध*
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*सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है।*
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*इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है जो निम्न हैं:*
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*-पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है।*
 *जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।*
*-साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है।*
*-जिन पितृों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है।*

पितृ दोष एक पारंपरिक हिंदू अवधारणा है, जिसमें माना जाता है कि पूर्वजों की आत्माएं अपने वंशजों पर प्रभाव डालती हैं। यदि पूर्वजों की आत्माएं रुष्ट होती हैं, तो यह पितृ दोष का कारण बनता है।

पितृ दोष के कारण:

1. पूर्वजों की पूजा और श्राद्ध नहीं करना।
2. पारिवारिक रिश्तों में तनाव।
3. पूर्वजों की संपत्ति का दुरुपयोग।
4. अनैतिक और अधार्मिक जीवन।
5. पूर्वजों की इच्छाओं का पालन न करना।

पितृ दोष के लक्षण:

1. घर में बार-बार चोरी या नुकसान।
2. परिवार के सदस्यों में बीमारी या दर्द।
3. आर्थिक संकट।
4. व्यावसायिक असफलता।
5. परिवार में तनाव और मतभेद।
6. घर में अजीब सी आवाजें या गतिविधियाँ।
7. स्वप्न में पूर्वजों की आत्माएं दिखना।
8. परिवार के सदस्यों में मानसिक तनाव।

पितृ दोष के उपाय:

1. पितृ पूजा और श्राद्ध: पूर्वजों की पूजा और श्राद्ध करें।
2. तर्पण: पूर्वजों को तर्पण करें।
3. पिंड दान: पूर्वजों के लिए पिंड दान करें।
4. हवन और अनुष्ठान: हवन और अनुष्ठान करें।
5. पूर्वजों की संपत्ति का सम्मान: पूर्वजों की संपत्ति का सम्मान करें।
6. नैतिक और धार्मिक जीवन: नैतिक और धार्मिक जीवन जीने का प्रयास करें।
7. ज्योतिषी की सलाह: ज्योतिषी की सलाह लें।
8. पूर्वजों की आत्मा को शांति देने के लिए पूजा: पूर्वजों की आत्मा को शांति देने के लिए पूजा करें।
9. क्षमा और प्रार्थना: पूर्वजों से क्षमा मांगें और प्रार्थना करें।
10. सामाजिक और धार्मिक कार्य: सामाजिक और धार्मिक कार्य करें।

अन्य उपाय:

1. घर में गौमाता की पूजा करें।
2. घर में तुलसी का पौधा लगाएं।
3. घर में शिवलिंग की पूजा करें।
4. घर में गणेश जी की पूजा करें।
5. पूर्वजों की तस्वीरों को सम्मान से रखें।

पितृ दोष (Pitru Dosha) ज्योतिष और भारतीय परंपराओं में एक महत्वपूर्ण विषय है। यह तब उत्पन्न होता है जब पूर्वज (पितृ) संतुष्ट नहीं होते या उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती। इसे कुंडली में ग्रह दोष के रूप में भी देखा जाता है और यह परिवार के सदस्यों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।


पितृ दोष के कारण

  1. पूर्वजों का अंतिम संस्कार या श्राद्ध कर्म ठीक से न होना।
  2. पितरों की अपेक्षाओं को पूरा न करना।
  3. परिवार में किसी सदस्य द्वारा पूर्वजों का अपमान या अनादर किया जाना।
  4. कुंडली में सूर्य, चंद्रमा या राहु-केतु की अशुभ स्थिति।

घर में प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण

सामान्य लक्षण:

  1. परिवार में अचानक रोग, आर्थिक समस्याएं, या तनाव बढ़ना।
  2. विवाह में देरी या संबंधों में समस्याएं।
  3. घर में किसी एक या अधिक सदस्यों को बार-बार दुर्घटनाओं का सामना करना।
  4. बार-बार गर्भपात या संतान न होने की समस्या।
  5. घर में भारीपन, डरावना माहौल, या अजीब आवाजें आना।
  6. सपनों में पूर्वजों का आना और कुछ कहने की कोशिश करना।
  7. पानी के स्रोतों, जैसे कुएं या नल, का सूख जाना या खराब हो जाना।
  8. घर में पूजा-पाठ में व्यवधान आना या पवित्र स्थान का अपवित्र होना।

पितृ दोष के उपाय

1. श्राद्ध कर्म और तर्पण

  • श्राद्ध कर्म: पितरों की शांति के लिए श्राद्ध (पितृ पक्ष में) और तर्पण करना सबसे प्रभावी उपाय है।
  • अपने कुल पुरोहित या पंडित से परामर्श करके विधिपूर्वक कर्मकांड करें।
  • गंगा जल और तिल का उपयोग करें।

2. पितृ स्तुति और पितृ मंत्र का जाप

  • पितृ स्तुति का पाठ करें:
    • "ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यो नमः।"
    • "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।"
  • पितरों के लिए विष्णु सहस्त्रनाम और भगवद गीता का पाठ करें।

3. पवित्र वृक्ष लगाएं

  • पीपल का पेड़ लगाएं और उसकी नियमित रूप से पूजा करें।
  • पीपल के पेड़ के नीचे दीप जलाएं।

4. अन्न-दान और गो-सेवा

  • अनाथालय, वृद्धाश्रम, या गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें।
  • गौ माता की सेवा करें और चारा खिलाएं।

5. हर अमावस्या पर उपाय

  • अमावस्या के दिन पितरों के लिए तर्पण करें।
  • काले तिल, दूध और जल से पितरों को अर्पण करें।

6. कुंडली के आधार पर विशेष उपाय

  • यदि कुंडली में सूर्य कमजोर है, तो सूर्य को जल अर्पित करें।
  • राहु-केतु के लिए हवन और उपाय करें।
  • “ॐ आदित्याय नमः” का जाप करें।

7. विशेष पूजा

  • त्रिपिंडी श्राद्ध: यह विशेष रूप से उन पितरों के लिए किया जाता है जिनकी आत्मा को शांति नहीं मिली है।
  • नारायण बलि और नाग बलि पूजा भी पितृ दोष को शांत करने में सहायक होती है।

8. गंगा स्नान

  • पवित्र नदियों (विशेषकर गंगा) में स्नान करें और पितरों के लिए जल अर्पण करें।

9. नियमित साधना और ध्यान

  • प्रतिदिन ध्यान करें और मन को शांत रखें।
  • किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए सकारात्मक विचारों को अपनाएं।

पितृ दोष का निवारण करने के लाभ

  1. पारिवारिक शांति और समृद्धि में वृद्धि।
  2. विवाह, संतान और रोजगार में आ रही बाधाएं दूर होती हैं।
  3. स्वास्थ्य और मानसिक शांति में सुधार होता है।
  4. पितरों की कृपा से जीवन में उन्नति होती है।

निष्कर्ष

पितृ दोष को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि यह न केवल व्यक्ति के जीवन पर, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों पर भी प्रभाव डाल सकता है। सही समय पर उपयुक्त उपाय और श्रद्धा से किए गए कर्मकांड पितरों की आत्मा को शांति देते हैं और परिवार पर आने वाली समस्याओं को दूर करते हैं।


यह ध्यान रखें कि पितृ दोष के उपाय व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। इसलिए, ज्योतिषी की सलाह लेना आवश्यक है।
 
 
 
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