शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

पांच तत्व के गुण और 25 प्रकृति

पंच तत्वों का महत्व
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पांच तत्व के गुण
पांच तत्व के गुण

 
 👉प्राचीन समय से ही विद्वानों का मत रहा है कि इस सृष्टि की संरचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है. सृष्टि में इन पंचतत्वों का संतुलन बना हुआ है।

👉यदि यह संतुलन बिगड़ गया तो यह प्रलयकारी हो सकता है. जैसे यदि प्राकृतिक रुप से जलतत्व की मात्रा अधिक हो जाती है तो पृथ्वी पर चारों ओर जल ही जल हो सकता है अथवा बाढ़ आदि का प्रकोप अत्यधिक हो सकता है. आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को पंचतत्व का नाम दिया गया है।

👉माना जाता है कि मानव शरीर भी इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बना है।

👉वास्तविकता में यह पंचतत्व मानव की पांच इन्द्रियों से संबंधित है. जीभ, नाक, कान, त्वचा और आँखें हमारी पांच इन्द्रियों का काम करती है. इन पंचतत्वों को पंचमहाभूत भी कहा गया है. इन पांचो तत्वों के स्वामी ग्रह, कारकत्व, अधिकार क्षेत्र आदि भी निर्धारित किए गये हैं 

(1) आकाश 
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आकाश तत्व का स्वामी ग्रह गुरु है. आकाश एक ऎसा क्षेत्र है जिसका कोई सीमा नहीं है. पृथ्वी के साथ्-साथ समूचा ब्रह्मांड इस तत्व का कारकत्व शब्द है. इसके अधिकार क्षेत्र में आशा तथा उत्साह आदि आते हैं. वात तथा कफ इसकी धातु हैं। वास्तु शास्त्र में आकाश शब्द का अर्थ रिक्त स्थान माना गया है. आकाश का विशेष गुण “शब्द” है और इस शब्द का संबंध हमारे कानों से है. कानों से हम सुनते हैं और आकाश का स्वामी ग्रह गुरु है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी श्रवण शक्ति का कारक गुरु को ही माना गया है। शब्द जब हमारे कानों तक पहुंचते है तभी उनका कुछ अर्थ निकलता है. वेद तथा पुराणों में शब्द, अक्षर तथा नाद को ब्रह्म रुप माना गया है। वास्तव में आकाश में होने वाली गतिविधियों से गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश, ऊष्मा, चुंबकीय़ क्षेत्र और प्रभाव तरंगों में परिवर्तन होता है. इस परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है. इसलिए आकाश कहें या अवकाश कहें या रिक्त स्थान कहें, हमें इसके महत्व को कभी नहीं भूलना चाहिए. आकाश का देवता भगवान शिवजी को माना गया है।

(2) वायु 
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वायु तत्व के स्वामी ग्रह शनि हैं. इस तत्व का कारकत्व स्पर्श है. इसके अधिकार क्षेत्र में श्वांस क्रिया आती है. वात इस तत्व की धातु है. यह धरती चारों ओर से वायु से घिरी हुई है. संभव है कि वायु अथवा वात का आवरण ही बाद में वातावरण कहलाया हो। वायु में मानव को जीवित रखने वाली आक्सीजन गैस मौजूद होती है. जीने और जलने के लिए आक्सीजन बहुत जरुरी है. इसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. यदि हमारे मस्तिष्क तक आक्सीजन पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई तो हमारी बहुत सी कोशिकाएँ नष्ट हो सकती हैं. व्यक्ति अपंग अथवा बुद्धि से जड़ हो सकता है।
प्राचीन समय से ही विद्वानों ने वायु के दो गुण माने हैं. वह है – शब्द तथा स्पर्श. स्पर्श का संबंध त्वचा से माना गया है. संवेदनशील नाड़ी तंत्र और मनुष्य की चेतना श्वांस प्रक्रिया से जुड़ी है और इसका आधार वायु है. वायु के देवता भगवान विष्णु माने गये हैं।

(3) अग्नि
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सूर्य तथा मंगल अग्नि प्रधान ग्रह होने से अग्नि तत्व के स्वामी ग्रह माने गए हैं. अग्नि का कारकत्व रुप है. इसका अधिकार क्षेत्र जीवन शक्ति है. इस तत्व की धातु पित्त है. हम्सभी जानते हैं कि सूर्य की अग्नि से ही धरती पर जीवन संभव है। यदि सूर्य नहीं होगा तो चारों ओर सिवाय अंधकार के कुछ नहीं होगा और मानव जीवन की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती है. सूर्य पर जलने वाली अग्नि सभी ग्रहों को ऊर्जा तथा प्रकाश देती है। इसी अग्नि के प्रभाव से पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं. शब्द तथा स्पर्श के साथ रुप को भी अग्नि का गुण माना जाता है. रुप का संबंध नेत्रों से माना गया है. ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत अग्नि तत्व है। सभी प्रकार की ऊर्जा चाहे वह सौर ऊर्जा हो या आणविक ऊर्जा हो या ऊष्मा ऊर्जा हो सभी का आधार अग्नि ही है. अग्नि के देवता सूर्य अथवा अग्नि को ही माना गया है।

(4) जल 
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चंद्र तथा शुक्र दोनों को ही जलतत्व ग्रह माना गया है. इसलिए जल तत्व के स्वामी ग्रह चंद्र तथा शुक्र दोनो ही हैं. इस तत्व का कारकत्व रस को माना गया है. इन दोनों का अधिकार रुधिर अथवा रक्त पर माना गया है क्योंकि जल तरल होता है और रक्त भी तरल होता है. कफ धातु इस तत्व के अन्तर्गत आती है। विद्वानों ने जल के चार गुण शब्द, स्पर्श, रुप तथा रस माने हैं. यहाँ रस का अर्थ स्वाद से है. स्वाद या रस का संबंध हमारी जीभ से है. पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जल स्त्रोत जल तत्व के अधीन आते हैं। जल के बिना जीवन संभ्हव नहीं है. जल तथा जल की तरंगों का उपयोग विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है. हम यह भी भली-भाँति जानते हैं कि विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं. जल के देवता वरुण तथा इन्द्र को माना गया है. मतान्तर से ब्रह्मा जी को भी जल का देवता माना गया है।

(5) पृथ्वी 
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पृथ्वी का स्वामी ग्रह बुध है. इस तत्व का कारकत्व गंध है. इस तत्व के अधिकार क्षेत्र में हड्डी तथा माँस आता है. इस तत्व के अन्तर्गत आने वाली धातु वात, पित्त तथा कफ तीनों ही आती हैं. विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी एक विशालकाय चुंबक है. इस चुंबक का दक्षिणी सिरा भौगोलिक उत्तरी ध्रुव में स्थित है. संभव है इसी कारण दिशा सूचक चुंबक का उत्तरी ध्रुव सदा उत्तर दिशा का ही संकेत देता है। पृथ्वी के इसी चुंबकीय गुण का उपयोग वास्तु शास्त्र में अधिक होता है. इस चुंबक का उपयोग वास्तु में भूमि पर दबाव के लिए किया जाता है. वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा में भार बढ़ाने पर अधिक बल दिया जाता है. हो सकता है इसी कारण दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है. यदि इस बात को धर्म से जोड़ा जाए तो कहा जाता है कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके ना सोएं क्योंकि दक्षिण में यमराज का वास होता है। पृथ्वी अथवा भूमि के पाँच गुण शब्द, स्पर्श, रुप, स्वाद तथा आकार माने गए हैं. आकार तथा भार के साथ गंध भी पृथ्वी का विशिष्ट गुण है क्योंकि इसका संबंध नासिका की घ्राण शक्ति से है। उपरोक्त विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि पंचतत्व मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं. उनके बिना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले किसी भी जीव के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। इन पांच तत्वों का प्रभाव मानव के कर्म, प्रारब्ध, भाग्य तथा आचरण पर भी पूरा पड़ता है. जल यदि सुख प्रदान करता है तो संबंधों की ऊष्मा सुख को बढ़ाने का काम करती है और वायु शरीर में प्राण वायु बनकर घूमती है. आकाश महत्वाकांक्षा जगाता है तो पृथ्वी सहनशीलता व यथार्थ का पाठ सिखाती है. यदि देह में अग्नि तत्व बढ़ता है तो जल्की मात्रा बढ़ाने से उसे संतुलित किया जा सकता है. यदि वायु दोष है तो आकाश तत्व को बढ़ाने से यह संतुलित रहेगें।
 

वैदिक, उपनिषदिक और आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से पंच तत्वों (पांच मूलभूत तत्वों) का विवरण निम्नलिखित है:


वैदिक और उपनिषदिक दृष्टिकोण

भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि के निर्माण में पाँच तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन्हें "पंचमहाभूत" कहा जाता है। ये तत्व निम्नलिखित हैं:

  1. आकाश (Space/Ether)

    • स्वभाव: शून्यता, ध्वनि का माध्यम।
    • संवेदना: श्रवण शक्ति (सुनना) का अनुभव।
    • गुण: हल्कापन, व्यापकता।
  2. वायु (Air)

    • स्वभाव: गति, परिवर्तन।
    • संवेदना: स्पर्श का अनुभव।
    • गुण: चलनशीलता, सूक्ष्मता।
  3. अग्नि (Fire)

    • स्वभाव: प्रकाश, ऊष्मा।
    • संवेदना: रूप (दृश्य) का अनुभव।
    • गुण: तेज, ऊर्जा।
  4. जल (Water)

    • स्वभाव: तरलता, शीतलता।
    • संवेदना: स्वाद का अनुभव।
    • गुण: प्रवाह, संतुलन।
  5. पृथ्वी (Earth)

    • स्वभाव: स्थिरता, घनत्व।
    • संवेदना: गंध का अनुभव।
    • गुण: स्थायित्व, पोषण।

आधुनिक विज्ञान का दृष्टिकोण

आधुनिक विज्ञान में इन पांच तत्वों को भौतिक तत्वों के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इनका संबंध प्रकृति के विभिन्न पहलुओं से किया जा सकता है:

  1. आकाश (Space)

    • आधुनिक विज्ञान इसे स्पेसटाइम या अंतरिक्ष के रूप में देखता है, जो ब्रह्मांड का आधार है।
  2. वायु (Air)

    • वायु का संबंध गैसों से है। पृथ्वी के वातावरण में प्रमुख रूप से नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और अन्य गैसें।
  3. अग्नि (Fire)

    • अग्नि ऊर्जा और ताप के रूप में व्याख्यायित होती है। इसे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ऊर्जा या थर्मल एनर्जी के रूप में समझा जा सकता है।
  4. जल (Water)

    • पानी, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का संयोजन है, जीवन का आधार है।
  5. पृथ्वी (Earth)

    • पृथ्वी को ठोस पदार्थों (सॉलिड मैटर) के रूप में देखा जाता है, जो खनिज, धातु, और मिट्टी का निर्माण करते हैं।

संभावित समन्वय

  • वैदिक दर्शन और विज्ञान के बीच यह समन्वय है कि पंचमहाभूत, ऊर्जा और पदार्थ के विभिन्न स्वरूपों का प्रतीक हैं।
  • इन तत्वों का संतुलन मानव जीवन और प्रकृति के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
  • आयुर्वेद और योग में भी पंचमहाभूत के संतुलन को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।

 

पांच तत्व (पंचमहाभूत)

पंचमहाभूत वे पाँच मौलिक तत्व हैं, जिनसे सृष्टि और शरीर का निर्माण हुआ है।

  1. आकाश (Space): शून्यता और विस्तार।
  2. वायु (Air): गति और परिवर्तन।
  3. अग्नि (Fire): ऊर्जा और रूपांतरण।
  4. जल (Water): तरलता और पोषण।
  5. पृथ्वी (Earth): स्थायित्व और संरचना।

ये पाँच तत्व हमारे शरीर और ब्रह्मांड दोनों में मौजूद हैं और जीवन के संतुलन के लिए जरूरी हैं।


तीन गुण (त्रिगुण)

त्रिगुण प्रकृति के तीन मौलिक गुण हैं, जो हर जीव और वस्तु में विद्यमान हैं:

  1. सत्त्व (संतुलन, पवित्रता)

    • यह ज्ञान, शांति, और सद्गुण का गुण है।
    • सत्त्व बढ़ने से मन में शांति और सकारात्मकता आती है।
  2. रजस् (गतिशीलता, ऊर्जा)

    • यह क्रिया, इच्छा, और अस्थिरता का गुण है।
    • रजस् बढ़ने से व्यक्ति में कर्मशीलता और लालसा बढ़ती है।
  3. तमस् (जड़ता, अज्ञानता)

    • यह आलस्य, अंधकार, और निष्क्रियता का गुण है।
    • तमस् बढ़ने से व्यक्ति सुस्त और नकारात्मक हो जाता है।

इन तीनों गुणों का संतुलन व्यक्ति के स्वभाव और जीवनशैली को प्रभावित करता है।


25 प्रकृति तत्व

सांख्य दर्शन के अनुसार, सृष्टि 25 तत्वों (तत्त्वों) से बनी है, जिन्हें "प्रकृति" का विस्तार माना जाता है:

  1. मूल प्रकृति (1): सृष्टि का आधार, जो अव्यक्त और जड़ है।

  2. महत्तत्त्व (1): बुद्धि या विवेक का तत्त्व, जिससे ज्ञान और निर्णय की शक्ति मिलती है।

  3. अहंकार (1): अहं का तत्त्व, जो "मैं" और "मेरा" का भाव देता है।

  4. मन (1): विचारों और भावनाओं का केंद्र।

  5. पंचज्ञानेंद्रियाँ (5):

    • कान (श्रवण), त्वचा (स्पर्श), आँख (दृष्टि), जीभ (स्वाद), नाक (गंध)।
  6. पंचकर्मेंद्रियाँ (5):

    • वाणी (बोलना), हाथ (धारण करना), पैर (चलना), मलद्वार (त्याग), जननेंद्रिय (सृजन)।
  7. पंचतन्मात्राएँ (5):

    • ध्वनि, स्पर्श, रूप, रस (स्वाद), गंध।
  8. पंचमहाभूत (5):

    • आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी।

सरल समझ

  • पांच तत्व: शरीर और सृष्टि की भौतिक रचना।
  • तीन गुण: हमारे मन और स्वभाव के गुण।
  • 25 प्रकृति तत्व: सृष्टि का पूरा तंत्र, जो भौतिक और मानसिक अस्तित्व दोनों को मिलाकर बनता है।

इन तत्वों और गुणों का संतुलन जीवन में शांति, स्वास्थ्य, और समृद्धि लाता है। यदि इनमें असंतुलन होता है, तो अशांति और रोग उत्पन्न होते हैं।

हमारा शरीर पंचतत्व से बना है यह पाँच तत्व जैसा कि ऊपर की चौपाई में लिखा है क्रमश:, क्षिति यानी कि पृथ्वी, जल यानी कि पानी, पावक यानी कि आग, गगन यानी आकाश और समीर यानी कि हवा। क्षिति (पृथ्वी):-मृत शरीर को जलाने के लिए चिता का निर्माण भूमि पर ही किया जाता है।

पंच तत्वों के देवता कौन थे?
पंचतत्व पूजा में भगवान सूर्य को आकाश तत्व, भगवान गणेश को जल तत्व, देवी दुर्गा को अग्नि तत्व, भगवान शिव को पृथ्वी तत्व और भगवान विष्णु को वायु तत्व माना गया है. धार्मिक ग्रंथों में जिक्र है कि पांच देवताओं की पूजा करने से सारे कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं.

 हिंदू धर्म में 5 तत्व क्या हैं?

पञ्चभूत (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं। आकाश (Space) , वायु (Force), अग्नि (Energy), जल (State of matter) तथा पृथ्वी (Matter) - ये पंचमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है। लेकिन इनसे बने पदार्थ जड़ (यानि निर्जीव) होते हैं, सजीव बनने के लिए इनको आत्मा चाहिए।
 
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बुधवार, 4 दिसंबर 2024

#सनातन परम्पराओं के #वैदिक एवं #वैज्ञानिक कारण बताने का कष्ट करें?

 #सनातन परम्पराओं के #वैदिक एवं #वैज्ञानिक कारण

 

#सनातन परम्पराओं के #वैदिक एवं #वैज्ञानिक कारण
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 इन सभी धार्मिक परंपराओं के पीछे गहरे वैदिक और वैज्ञानिक कारण हैं। आइए इन परंपराओं के वैज्ञानिक और धार्मिक कारणों पर विस्तार से चर्चा करें:


1. तुलसी के पेड़ की पूजा का वैज्ञानिक कारण

तुलसी का पौधा धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है, और इसके पूजा के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं।

  • वैज्ञानिक कारण:
    तुलसी के पौधे में उच्चतम स्तर के ऑक्सीजन उत्सर्जन की क्षमता होती है, जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध और ताजगी से भरपूर रहता है। यह पौधा एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुणों से भरपूर होता है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। तुलसी के सेवन से मानसिक शांति भी मिलती है और यह हृदय और श्वसन तंत्र के लिए लाभकारी है।

2. पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं

  • वैज्ञानिक कारण:
    पीपल का पेड़ रात में भी ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है, जबकि अधिकांश पेड़ रात में ऑक्सीजन की बजाय कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं। इसके अलावा, पीपल का पेड़ वातावरण को शुद्ध करता है और मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है। इसकी छांव में बैठने से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। इसलिए, यह विश्वास उत्पन्न हुआ कि पीपल के पेड़ की पूजा से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और यह भूत-प्रेत जैसी नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।

3. महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं

  • वैज्ञानिक कारण:
    तिलक या कुमकुम माथे पर लगाने की परंपरा में विज्ञान भी छिपा हुआ है।
    • अर्थ: तिलक लगाने से शरीर के 'आज्ञा चक्र' (Third Eye) को सक्रिय किया जाता है, जो कि मस्तिष्क के केंद्र से जुड़ा होता है। इस क्षेत्र पर दबाव डालने से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली बेहतर होती है और व्यक्ति मानसिक रूप से स्थिर रहता है।
    • वैज्ञानिक कारण: यह प्रथा सिर पर दबाव बनाने और मानसिक शक्ति को बढ़ाने के लिए है, जिससे ध्यान और एकाग्रता में सुधार होता है।

4. मंदिर में घंटा लगाने का कारण

  • वैज्ञानिक कारण:
    मंदिर में घंटा बजाने से वातावरण में उच्च ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है।
    घंटी की ध्वनि में विशिष्ट प्रकार की तरंगें होती हैं जो मस्तिष्क को शांति प्रदान करती हैं और मानसिक तनाव को कम करती हैं। यह प्रथा ध्यान में एकाग्रता और मानसिक शांति बढ़ाने के लिए है।

5. हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परंपरा

  • वैज्ञानिक कारण:
    सूर्योदय के समय सूर्य की किरणों में अमृत तुल्य ऊर्जा होती है। यह प्राचीन समय से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती है।
    • सूर्य की किरणों में विटामिन D और अन्य खनिज होते हैं जो हड्डियों को मजबूत करने में मदद करते हैं।
    • सूर्य को जल अर्पित करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और यह मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
    • सूर्य नमस्कार शरीर के लिए व्यायाम का कार्य करता है और यह रक्त संचार को बेहतर बनाता है।

6. दीपक के ऊपर हाथ घुमाने का वैज्ञानिक कारण

  • वैज्ञानिक कारण:
    दीपक जलाने से वातावरण में प्रचुर मात्रा में प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
    • जब हाथ दीपक के ऊपर घुमाए जाते हैं, तो यह सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करने जैसा होता है।
    • यह शुद्धता और नकारात्मकता को समाप्त करने की प्रक्रिया का हिस्सा होता है।
    • दीपक की ज्योति मनुष्य को आध्यात्मिक रूप से जागरूक करती है और उसे सही दिशा में प्रेरित करती है।

7. परिक्रमा करने के पीछे वैज्ञानिक कारण

  • वैज्ञानिक कारण:
    परिक्रमा करने की प्रक्रिया को "धार्मिक ध्यान" के रूप में देखा जा सकता है, जो शरीर और मन को शांति प्रदान करता है।
    • इस प्रक्रिया में एक निरंतरता होती है जो मानसिक तनाव को कम करती है और ध्यान की स्थिति उत्पन्न करती है।
    • घूमते वक्त शरीर के अंदर की ऊर्जा का संचार संतुलित होता है, और यह मानसिक और शारीरिक स्थिति को स्थिर करता है।
    • परिक्रमा के दौरान जो ऊर्जा का संचरण होता है, वह व्यक्ति को शारीरिक रूप से ताजगी और मानसिक रूप से शांति प्रदान करता है।

इन सभी परंपराओं और उपायों में न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि उनके वैज्ञानिक कारण भी छिपे हुए हैं जो शरीर, मस्तिष्क और मानसिक शांति के लिए लाभकारी हैं। यह परंपराएं प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संगम हैं।

*तुलसी के पेड़ की पूजा*

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है। सुख शांति बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क-

तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।
*पीपल की पूजा*

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क-

इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है.
*एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं*

एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा की जेनेटिक बीमारी न हो इसका एक ही इलाज है और वो है "सेपरेशन ऑफ़ जींस".. मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नही करना चाहिए ..क्योकि नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नही हो पाता और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और एल्बोनिज्म होने की १००% चांस होती है ..आखिर हिन्दूधर्म में हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे में कैसे लिखा गया है ? जो "विज्ञान पर आधारित" है !  हिंदुत्व में कुल सात गोत्र होते है और एक गोत्र के लोग आपस में शादी नही कर सकते ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे..
*माथे पर कुमकुम का तिलक*

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क-

आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है.


*मंदिर में घंटा लगाने का कारण*

मंदिर में घंटा लगाने का कारण
जब भी मंदिर में प्रवेश किया जाता है तो दरवाजे पर घंटा टंगा होता है जिसे बजाना होता है। मुख्य मंदिर (जहां भगवान की मूर्ति होती है) में भी प्रवेश करते समय घंटा या घंटी बजानी होती है, इसके पीछे कारण यह है कि इसे बजाने से निकलने वाली आवाज से सात सेकंड तक गूंज बनी रहती है जो शरीर के सात हीलिंग सेंटर्स को सक्रिय कर देती है।
*सूर्य नमस्कार*

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क-

पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।


*दीपक के ऊपर हाथ घुमाने का वैज्ञानिक कारण*

दीपक के ऊपर हाथ घुमाने का वैज्ञानिक कारण
आरती के बाद सभी लोग दिए पर या कपूर के ऊपर हाथ रखते हैं और उसके बाद सिर से लगाते हैं और आंखों पर स्पर्श करते हैं। ऐसा करने से हल्के गर्म हाथों से दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती है और बेहतर महसूस होता है।


*चप्पल बाहर क्यों उतारते हैं ?*

चप्पल बाहर क्यों उतारते है ?
मंदिर में प्रवेश नंगे पैर ही करना पड़ता है, यह नियम दुनिया के हर हिंदू मंदिर में है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर की फर्शों का निर्माण पुराने समय से अब तक इस प्रकार किया जाता है कि ये इलेक्ट्रिक और मैग्नैटिक तरंगों का सबसे बड़ा स्त्रोत होती हैं। जब इन पर नंगे पैर चला जाता है तो अधिकतम ऊर्जा पैरों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाती है।                 

 *परिक्रमा करने के पीछे वैज्ञानिक कारण*

परिक्रमा करने के पीछे वैज्ञानिक कारण
हर मुख्य मंदिर में दर्शन करने और पूजा करने के बाद परिक्रमा करनी होती है। परिक्रमा 8 से 9 बार करनी होती है। जब मंदिर में परिक्रमा की जाती है तो सारी सकारात्मक ऊर्जा, शरीर में प्रवेश कर जाती है और मन को शांति मिलती है।

सनातन परम्पराओं में कई वैदिक और वैज्ञानिक कारण हैं जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। यहाँ कुछ वैदिक और वैज्ञानिक कारण बताए जा रहे हैं:

१) पूजा और आराधना: पूजा और आराधना करने से हमारे मन में शांति और संतुष्टि आती है। यह हमारे मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामाइन के स्तर को बढ़ाता है, जो हमारे मूड को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।

२) यज्ञ और हवन: यज्ञ और हवन करने से हमारे आसपास के वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और वायु प्रदूषण कम हो जाता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

३) सूर्य नमस्कार: सूर्य नमस्कार करने से हमारे शरीर में विटामिन डी की मात्रा बढ़ जाती है, जो हमारे हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है। यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

४) प्राणायाम और ध्यान: प्राणायाम और ध्यान करने से हमारे मस्तिष्क में स्ट्रेस हार्मोन की मात्रा कम हो जाती है और हमारे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

५) व्रत और उपवास: व्रत और उपवास करने से हमारे शरीर में डिटॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया होती है, जिससे हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थ निकल जाते हैं। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

६) दान और पुण्य: दान और पुण्य करने से हमारे मन में संतुष्टि और शांति आती है। यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

७) स्नान और शुद्धि: स्नान और शुद्धि करने से हमारे शरीर में शुद्धि और पवित्रता आती है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

८) आहार और विहार: आहार और विहार करने से हमारे शरीर में स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती आती है। यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

९) संगति और साथी: संगति और साथी करने से हमारे मन में संतुष्टि और शांति आती है। यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

१०) धार्मिक अनुष्ठान: धार्मिक अनुष्ठान करने से हमारे मन में शांति और संतुष्टि आती है। यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।

महोदय, कृपया ध्यान दें,

   यद्यपि इसे (पोस्ट) तैयार करने में पूरी सावधानी रखने की कोशिश रही है। फिर भी किसी घटनाएतिथि या अन्य त्रुटि के लिए मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है । अतः अपने विवेक से काम लें या विश्वास करें। इस वेवसाइट का उद्देश मात्र सभी तक जानकारी पहंुचाना मात्र है।

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किस मन्त्र के जाप से एवं किसी अन्य उपाय से होगा वास्तु दोष दूर ?

 #मन्त्र के जाप के वैदिक के गुण 

 

#मन्त्र के जाप के वैदिक के गुण
 #मन्त्र के जाप के वैदिक के गुण 

*जानिए की किस मन्त्र के जाप से किस दिशा का होगा वास्तु दोष( प्रभाव )दूर :-*
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वास्तु दोषों को दूर करने और संबंधित दिशाओं से कृपा प्राप्त करने के लिए मंत्रों के जाप के साथ-साथ कुछ विशिष्ट उपाय भी किए जा सकते हैं। प्रत्येक दिशा से संबंधित दोष और उपाय निम्न प्रकार हैं:


1. उत्तर दिशा (कुबेर और चंद्र की दिशा)

  • दोष: धन की कमी, मानसिक अस्थिरता।
  • मंत्र:
    ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कुबेराय नमः
  • उपाय:
    1. उत्तर दिशा में धन के स्थान (तिजोरी) को व्यवस्थित रखें।
    2. कुबेर यंत्र की स्थापना करें।
    3. चांदी का सिक्का या चंद्रमा का प्रतीक उत्तर दिशा में रखें।
    4. इस दिशा को हमेशा साफ और हल्का रखें।

2. उत्तर-पूर्व (ईशान कोण - शिव की दिशा)

  • दोष: आध्यात्मिक अवरोध, मानसिक और शारीरिक अशांति।
  • मंत्र:
    ॐ नमः शिवाय
  • उपाय:
    1. इस स्थान पर शिवलिंग या जल से भरा कलश रखें।
    2. ईशान कोण में पूजा स्थल बनाएं।
    3. इस स्थान को कभी भारी सामान से न भरें।
    4. नियमित गंगाजल का छिड़काव करें।

3. पूर्व दिशा (सूर्य और इंद्र की दिशा)

  • दोष: सम्मान की हानि, आलस्य।
  • मंत्र:
    ॐ सूर्याय नमः
  • उपाय:
    1. इस दिशा में खिड़कियां खुली रखें।
    2. सुबह के समय सूर्य को जल अर्पित करें।
    3. पूर्व दिशा में हल्के सुनहरे या नारंगी रंग का प्रयोग करें।

4. दक्षिण-पूर्व (अग्नि कोण - अग्नि देव की दिशा)

  • दोष: स्वास्थ्य समस्याएं, पारिवारिक कलह।
  • मंत्र:
    ॐ अग्नये नमः
  • उपाय:
    1. इस दिशा में रसोईघर या अग्नि का स्थान बनाएं।
    2. लाल या गुलाबी रंग का उपयोग करें।
    3. अगर रसोई इस दिशा में नहीं है, तो अग्नि यंत्र स्थापित करें।

5. दक्षिण दिशा (यम और मंगल की दिशा)

  • दोष: भय, रोग, शत्रु बाधा।
  • मंत्र:
    ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
  • उपाय:
    1. इस दिशा में स्थायित्व का प्रतीक भारी वस्तु रखें।
    2. नियमित लाल रंग का दीप जलाएं।
    3. दक्षिण दीवार पर यम यंत्र लगाएं।

6. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण - राहु और पितरों की दिशा)

  • दोष: पारिवारिक अस्थिरता, नकारात्मक ऊर्जा।
  • मंत्र:
    ॐ राहवे नमः
  • उपाय:
    1. इस दिशा में भारी सामान रखें।
    2. राहु यंत्र या पितृ यंत्र स्थापित करें।
    3. काले तिल का दान करें और इस दिशा को रोशनी से भरपूर रखें।

7. पश्चिम दिशा (वरुण देव और शनि की दिशा)

  • दोष: सफलता में बाधा, आलस्य।
  • मंत्र:
    ॐ वं वरुणाय नमः
  • उपाय:
    1. इस दिशा में जल से भरी कटोरी रखें।
    2. नीले या हल्के रंग का प्रयोग करें।
    3. शनि यंत्र की स्थापना करें।

8. उत्तर-पश्चिम (वायु देव की दिशा)

  • दोष: मानसिक अशांति, असंतोष।
  • मंत्र:
    ॐ वायवे नमः
  • उपाय:
    1. वायु यंत्र स्थापित करें।
    2. इस स्थान को हल्का और खुला रखें।
    3. सफेद या हल्के रंग का उपयोग करें।

अतिरिक्त सामान्य उपाय:

  1. गंगाजल का छिड़काव: सभी दिशाओं में नियमित रूप से करें।
  2. सूर्य को जल चढ़ाना: सुबह की ऊर्जा को सक्रिय करता है।
  3. धूप और दीप जलाना: नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है।
  4. भजन और मंत्रोच्चार: नियमित रूप से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाते हैं।

इन उपायों के साथ नियमित रूप से मंत्र जाप करने से वास्तु दोष दूर होते हैं और दिशाओं के देवता की कृपा प्राप्त होती है।

                  

आज में आपको सभी दिशाओं के दोष को दूर करने का सबसे आसान तरीका बता रहा हूँ।। इन मंत्र जप के प्रभाव स्वरूप (फलस्वरूप) आप काफी हद तक अपने वस्तुदोषो से मुक्ति प्राप्त कर पायेंगें ।। ऐसा मेरा विश्वास हें।।
ध्यान रखें मन्त्र जाप में में आस्था और विश्वास अति आवश्य हैं। यदि आप सम्पूर्ण भक्ति भाव और एकाग्रचित्त होकर इन मंत्रो को जपेंगें तो निश्चित ही लाभ होगा।।

देश- काल और मन्त्र सधाक की साधना(इच्छा शक्ति) अनुसार परिणाम भिन्न भिन्न हो सकते हैं।।
तर्क कुतर्क वाले इनसे दूर रहें।। इनके प्रभाव को नगण्य मानें।।

ईशान दिशा
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इस दिशा के स्वामी बृहस्पति हैं। और देवता हैं भगवान शिव। इस दिशा के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नियमित गुरू मंत्र ‘ओम बृं बृहस्पतये नमः’ मंत्र का जप करें। शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का 108 बार जप करना भी लाभप्रद होता है।

पूर्व दिशा
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घर का पूर्व दिशा वास्तु दोष से पीड़ित है तो इसे दोष मुक्त करने के लिए प्रतिदिन सूर्य मंत्र ‘ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का जप करें। सूर्य इस दिशा के स्वामी हैं। इस मंत्र के जप से सूर्य के शुभ प्रभावों में वृद्घि होती है। व्यक्ति मान-सम्मान एवं यश प्राप्त करता है। इन्द्र पूर्व दिशा के देवता हैं। प्रतिदिन 108 बार इंद्र मंत्र ‘ओम इन्द्राय नमः’ का जप करना भी इस दिशा के दोष को दूर कर देता है।।

आग्नेय दिशा
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इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र और देवता अग्नि हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शुक्र अथवा अग्नि के मंत्र का जप लाभप्रद होता है। शुक्र का मंत्र है ‘ओम शुं शुक्राय नमः’। अग्नि का मंत्र है ‘ओम अग्नेय नमः’। इस दिशा को दोष से मुक्त रखने के लिए इस दिशा में पानी का टैंक, नल, शौचालय अथवा अध्ययन कक्ष नहीं होना चाहिए।

दक्षिण दिशा
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इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और देवता यम हैं। दक्षिण दिशा से वास्तु दोष दूर करने के लिए नियमित ‘ओम अं अंगारकाय नमः’ मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। यह मंत्र मंगल के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है। ‘ओम यमाय नमः’ मंत्र से भी इस दिशा का दोष समाप्त हो जाता है।

नैऋत्य दिशा
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इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह हैं। घर में यह दिशा दोषपूर्ण हो और कुण्डली में राहु अशुभ बैठा हो तो राहु की दशा व्यक्ति के लिए काफी कष्टकारी हो जाती है। इस दोष को दूर करने के लिए राहु मंत्र ‘ओम रां राहवे नमः’ मंत्र का जप करें। इससे वास्तु दोष एवं राहु का उपचार भी उपचार हो जाता है।

पश्चिम दिशा
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यह शनि की दिशा है। इस दिशा के देवता वरूण देव हैं। इस दिशा में किचन कभी भी नहीं बनाना चाहिए। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शनि मंत्र ‘ओम शं शनैश्चराय नमः’ का नियमित जप करें। यह मंत्र शनि के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है।

वायव्य दिशा
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चन्द्रा इस दिशा के स्वामी ग्रह हैं। यह दिशा दोषपूर्ण होने पर मन चंचल रहता है। घर में रहने वाले लोग सर्दी जुकाम एवं छाती से संबंधित रोग से परेशान होते हैं। इस दिशा के दोष को दूर करने के लिए चन्द्र मंत्र ‘ओम चन्द्रमसे नमः’ का जप लाभकारी होता है।

उत्तर दिशा
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यह दिशा के देवता धन के स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा बुध ग्रह के प्रभाव में आता है। इस दिशा के दूषित होने पर माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है।। माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है। आर्थिक कठिनाईयों का भी सामना करना होता है। इस दिशा को वास्तु दोष से मुक्त करने के लिए ‘ओम बुधाय नमः या ‘ओम कुबेराय नमः’ मंत्र का जप करें। आर्थिक समस्याओं में कुबेर मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है ।

 

वास्तु दोष दूर करने के लिए कुछ और उपाय:
  • मुख्य द्वार के आस-पास हमेशा सफ़ाई रखें.
  • प्रवेश द्वार पर लकड़ी की थोड़ी ऊंची दहलीज़ बनवाएं.
  • मेन गेट पर गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर या स्टीकर लगाएं.
  • दरवाज़े के सामने फूलों की सुंदर फ़ोटो लगाएं
  • एक बांस का बंबू कम से कम 8 से 10 फिट लंबा होना ही चाहिए, उस पर केसरी ध्वज चढ़ाकर नैऋत्य कोण में, घर की छत पर लहरा दीजिए। पर्वत उठाते हुए हनुमान जी की आकृति उस ध्वज पर अवश्य ही सिलाई की गई होनी चाहिए।
  • घर में मधुर संगीत बजने दे ।

    पश्चिम दिशा में एरो केरिया का पौधा लगाएं।

    दक्षिण दिशा मे पित्रों की तस्वीर लगावें उन्हें प्रणाम करे।

    उत्तर पूर्व में तुलसी का पौधा लगाएं यह भी वास्तु दोष दूर करते हैं।

     
  • 1- नया मकान बनवाते या नया फ्लैट खरीदते समय गृह प्रवेश के दौरान वास्तु के देवता की पूजा जरूर करनी चाहिए।

    2- घर से वास्तु दोष को दूर करने के लिए मुख्य प्रवेश द्वार पर स्वास्तिक का चिन्ह जरूर लगाएं। यहीं से सबसे पहले नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती हैं।

    3- घर के मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ अशोक के पेड़ लगाने से सुख-शान्ति आती है। इसके अलावा ऐसा करने से वंश की वृद्धि होती है।

    4 - घर के प्रवेश द्वार पर घोड़े की नाल (लोहे की) लगाने से भी वास्तु दोष दूर हो जाती है।

    5- जिस घरों पर गेंदे का पौधा या तुलसी का पौधा लगा हुआ होता है वहां कभी भी किसी तरह का वास्तुदोष उत्पन्न नहीं होता।

    6-घर पर बने मंदिर में नियमित रूप से घी का दीपक जलाने से कभी भी नकारात्मक ऊर्जाएं घर के अंदर प्रवेश नहीं करती।

    7- सुबह पूजा के दौरान शंख बजान से नकारात्मक ऊर्जा घर से बाहर निकल जाती है।

    8- घर पर झाडू को हमेशा उचित स्थान पर ही रखें और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कभी भी झाडू को पैर से स्पर्श ना करें।

    9- ईशान कोण में कोई भी भारी वस्तु और कचरा न रखें ऐसा करने से धन की हानि हो सकती है।

    10- घर पर उत्तर दिशा में कभी भी स्टोररूम ना बनाएं है।

    11-अगर घर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में है तो मुख्य द्धार पर श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा लगानी चाहिए।

    12- घर के मंदिर में देवताओं की मूर्तिया या तस्वीरों को आमने-सामने नहीं रखना चाहिए।

    13- कमरे में सूखे हुए फूल नहीं रखना चाहिए। सूखे फूल रखने से आपकी किस्मत भी सूखने लगती है।

    14- घर में वास्तुदोष निवारण यंत्र की स्थापना जरूर करनी चाहिए।

    15- घर पर तिजोरी इस स्थान पर रखे की खोलते समय तिजोरी का द्वार पूर्व दिशा की ओर खुले।

    16- इस बात का जरूर ध्यान रखें कि खाने की टेबल चौकोर होना चाहिए न की गोल या ओवल।

    17-घर पर पूर्वजो की तस्वीर हमेशा दक्षिण दिशा में लगानी चाहिए भूलकर भी पूर्व दिशा या मंदिर में न लगाए।

    18-घर के मुखिया का शयन कक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए।

    19- घर में आइना पूर्व दिशा में ही रखना चाहिए।

    20- घर पर मोरपंख और गंगाजल जरूर होना चाहिए।

     
  • आइए जानते हैं कि वास्तु दोष क्यों होता है:

    1. दिशा का गलत चुनाव:

  • मुख्य द्वार की दिशा: यदि मुख्य द्वार वास्तु शास्त्र के अनुसार सही दिशा में नहीं होता है, तो यह नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर सकता है।
  • कमरों की दिशा: रसोई, शयनकक्ष, पूजा कक्ष, और बाथरूम जैसे महत्वपूर्ण कमरों की दिशा का गलत चुनाव भी वास्तु दोष पैदा कर सकता है।

2. पंच तत्वों का असंतुलन:

  • अग्नि तत्व का असंतुलन: रसोई और अन्य अग्नि तत्व से जुड़े स्थानों का गलत दिशा में होना।
  • जल तत्व का असंतुलन: जल स्रोत जैसे कि पानी की टंकी, वॉटर फिल्टर, और बाथरूम का गलत दिशा में होना।

3. निर्माण की त्रुटियाँ:

  • विकृत या असमान भवन: भवन का आकार विकृत या असमान होना, जैसे त्रिकोणीय या अन्य अजीब आकार का होना।
  • भवन में दरारें: भवन में दरारें और फर्श की दरारें वास्तु दोष का संकेत होती हैं और नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती हैं।

4. स्थान का गलत उपयोग:

  • पूजा स्थान: पूजा स्थान का गलत दिशा में होना।
  • शयनकक्ष: शयनकक्ष का गलत दिशा में होना और उसमें प्रतिबिंबित दर्पण का होना।

5. प्राकृतिक तत्वों का अवरोध:

  • वायु और प्रकाश: वायु और प्रकाश का सही प्रवाह न होना, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • पेड़-पौधे: भवन के आसपास पेड़-पौधों का गलत स्थान पर होना या उनका अवरोध उत्पन्न करना।

6. भवन की बाहरी संरचना:

  • मुख्य द्वार: मुख्य द्वार के सामने अवरोध जैसे पेड़, खंभे, या अन्य संरचनाओं का होना।
  • छत और छज्जे: छत और छज्जों का गलत डिजाइन और दिशा।
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           वास्तु दोष को दूर करने के लिए कई मन्त्रों और उपायों का उपयोग किया जा सकता है। यहाँ कुछ मन्त्र और उपाय बताए जा रहे हैं जो विभिन्न दिशाओं के वास्तु दोष को दूर करने में मदद कर सकते हैं:

उत्तर दिशा का वास्तु दोष:

मन्त्र: "ॐ शं शनैश्चराय नमः"

उपाय:

उत्तर दिशा में एक पानी का फव्वारा या एक छोटा तालाब बनाएं।
उत्तर दिशा में एक पेड़ लगाएं, जैसे कि पीपल या बरगद।
उत्तर दिशा में एक शनि मंदिर या एक शनि यंत्र स्थापित करें।

दक्षिण दिशा का वास्तु दोष:

मन्त्र: "ॐ यमाय नमः"

उपाय:

दक्षिण दिशा में एक यम द्वार या एक यम यंत्र स्थापित करें।
दक्षिण दिशा में एक पेड़ लगाएं, जैसे कि नीम या आम।
दक्षिण दिशा में एक मिट्टी का दीया या एक मिट्टी का बर्तन रखें।

पूर्व दिशा का वास्तु दोष:

मन्त्र: "ॐ सूर्याय नमः"

उपाय:

पूर्व दिशा में एक सूर्य यंत्र या एक सूर्य मंदिर स्थापित करें।
पूर्व दिशा में एक पेड़ लगाएं, जैसे कि तुलसी या नारियल।
पूर्व दिशा में एक पानी का फव्वारा या एक छोटा तालाब बनाएं।

पश्चिम दिशा का वास्तु दोष:

मन्त्र: "ॐ वरुणाय नमः"

उपाय:

पश्चिम दिशा में एक वरुण यंत्र या एक वरुण मंदिर स्थापित करें।
पश्चिम दिशा में एक पेड़ लगाएं, जैसे कि पीपल या बरगद।
पश्चिम दिशा में एक पानी का फव्वारा या एक छोटा तालाब बनाएं।

केंद्र दिशा का वास्तु दोष:

मन्त्र: "ॐ ब्रह्मणे नमः"

उपाय:

केंद्र दिशा में एक ब्रह्म यंत्र या एक ब्रह्म मंदिर स्थापित करें।
केंद्र दिशा में एक पेड़ लगाएं, जैसे कि तुलसी या नारियल।
केंद्र दिशा में एक पानी का फव्वारा या एक छोटा तालाब बनाएं।

यह ध्यान रखें कि वास्तु दोष को दूर करने के लिए किसी भी उपाय को करने से पहले किसी वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित होगा।

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