बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

Osho Prvachan in Hindi Whatsapp ke liye, (प्रार्थनाएँ)


..........🌹प्रिया आत्मन🌹..............
                                                  तुम्हारी सारी प्रार्थनाएँ एकालाप हैं, वार्तालाप नहीं। और सदियाँ हो गईं ये प्रार्थनाएँ करते, कब जागोगे?
संदेह ही करना हो तो परमात्मा पर करो। और मैं तुमसे कहता हूँ, परमात्मा पर संदेह उठ आए पूरा-पूरा और तुम्हारी संदेह की अग्नि में तुम्हारी परमात्मा की तथाकथित धारणा भस्मीभूत हो जाए तो तुम्हारे जीवन में क्रांति घट सकती है।
तब तुम बाहर हाथ न फैलाओगे। तुम बाहर हाथ न जोड़ोगे। तुम भीतर मुड़ोगे। तुम भीतर तलाशोगे।
बाहर तो कोई नहीं है। आकाश में तो कोई भी नहीं है। सात आसमानों के पार तो कोई भी नहीं है।
तब फिर एक ही जगह बचती है कि अपने भीतर झाँक लूँ और तलाश लूँ, शायद वहाँ हो। और जिन्होंने वहाँ झाँका है, निश्चित पाया है तुम्हीं हो।
तुम्हारे ही केंद्र पर वह दीया जल रहा है। और यह दीया प्रार्थनाओं से नहीं पाया जा सकता, क्योंकि प्रार्थना बहिर्मुखी होती है। यह दीया ध्यान से ही पाया जा सकता है। ध्यान अंतर्मुखी होता है।
                                                                                                                 ओशो
                                                                                    'पीवत रामरस लगी खुमारी' प्रवचनमाला का एक अंश

..........🌹प्रिया आत्मन🌹..............
                                          छोटासा ध्यान
                                                               जबभी आपको लगता है कि आप अच्छी मनोदशामें नहीं हैं और काममें मन नहीं लगता है तो केवल पांच मिनटके लिए, गहऱी साँस छोड़ें। साँस छोड़ते हुए सोचिए  कि आप अपनी उदासी  बाहर फेंक रहे हैं ! पांच मिनटके भीतर आपकी उदासी गायब हो जाएगी!
        यदि आप अपना काम, ध्यानमें बदल सकते हैं, तो सबसे अच्छी बात है !तब ध्यान आपके जीवनके साथ संघर्षमें कभी नहीं होता है!

         आप जो कुछ भी करते हैं वह ध्यान बन सकता है ध्यान कुछ अलग नहीं है; यह जीवनका एक हिस्सा है !यह बस साँस लेनेकी तरह है: जैसे ही आप अंदर  सांस लेते हैं और बाहर छोड देते है !

       और यह केवल जोरकी एक बदलाव है!जो चीजें आप लापरवाहीसे कर रहे हैं, ध्यानसे शुरू करना! उदाहरणके लिए, कुछ परिणामोंके लिए आप जो चीजें कर रहे हैं;पैसा- यह ठीक है! यदि आपका काम आपको पैसे देता है, अच्छा है ; पैसोंकी की जरूरत है, लेकिन यह सब नहीं है ;उससे आप कई सुखोंका आनंद ले सकते हैं !
        आप अपना काम करते होंगे ,आप पसंद करते हो या नहीं बस, काम ध्यानसे करेंगे तो अभूतपूर्व आनंदका लाभ पाओगे!
                    ओशो🌹


..........🌹प्रिया आत्मन🌹..............
                                             मौलिकताका दुसरा नाम है ओशो!🌹
       
       ओशो सर्वथा मौलिक हैं, क्योंकि उनकी सत्यकी अनुभूती  शास्त्रोंसे नहीं हुई, उधार ज्ञानसे नहीं हुई, परमात्माके मूल स्रोतसे जुडनेसे हुई! जो मूलसे जुड़ जाता है वह मौलिक हो जाता है। ओशोने धर्म को उदासी और गंभीरतासे मुक्त करके धार्मिकताकी मौलिक देशना दी है। वे कहते हैं:

       'मेरी दृष्टि में, धर्म वही है जो नाचता हुआ है और दुनियाको एक नाचते हुए परमात्माकी जरूरत है। उदास परमात्मा काम नहीं आया। उदास परमात्मा सच्चा सिद्ध नहीं हुआ। क्योंकि आदमी वैसेही उदास था, और उदास परमात्माको लेकर बैठ गया। उदास परमात्मा तो लगता है उदास आदमीकी ईजाद है, असली परमात्मा नहीं। नाचता, हंसता परमात्मा चाहिए और जो धर्म हंसी न दे और जो धर्म खुशी न दे और जो धर्म तुम्हारे जीवनको मुस्कुराहटों से न भर दे, उत्साहसे न भर दे—वह धर्म,धर्म नहीं है, आत्महत्या है। उससे राजी मत होना। वह धर्म मुर्दो का धर्म है— जिनके जीवनकी धारा बह गई है और सब सूख गया है। धर्म जवान चाहिए। धर्म तो युवा चाहिए। धर्म तो छोटे बच्चों जैसे पुलकता, फुदकता, नाचता, आश्चर्य— भरा चाहिए।’

       'तो मैं यहां तुम्हें उदास और लंबे चेहरे सिखाने को नहीं हूं और मैं नहीं चाहता कि तुम यहां बड़े गंभीर होकर जीवनको लेने लगो। गंभीरताही तो तुम्हारी छातीपर पत्थर हो गई है। गंभीरता रोग है। हटाओ गंभीरता के पत्थर को।
                  स्‍वामी चैतन्‍य कीर्ति

..........🌹प्रिया आत्मन🌹..............

                                               आदमीकी प्रौढ़ता और ध्‍यान--       
                                                                                             आदमी अकेला प्राणी है, जिसको प्रौढ़ होनेमें बहुत समय लगता है। कुत्‍तेका बच्‍चा पैदा होता है;कितनी देर लगती है प्रौढ़ होने में? घोड़ेका बच्‍चा पैदा होते ही चलने लग जाता है। सिर्फ आदमीका बच्‍चा असहाय पैदा होता है। उसको प्रौढ़ होनेमें बीस-पच्‍चीस साल लग जाते है। अगर आदमीके बच्‍चेको असहाय छोड़ दिया जाए तो वह मर जाएगा। आदमी अप्रौढ़ पैदा होता है क्‍योंकि आदमीके पास बड़ी प्रतिभाकी संभावना है। उस प्रतिभाको प्रौढ़ होनेमें समय लगता है। घोड़ेके बच्‍चेके पास प्रतिभाकी बड़ी संभावना नहीं है; प्रौढ़ होनेमें कोई समय नहीं लगता।  प्रौढ़ होनेके लिए जितना समय मिलता है उतनी  प्रतिभा पकती है।

      ध्‍यान तो प्रतिभाकी अंतिम अवस्‍था है। एक जन्‍म काफी नहीं है। अनेक जन्‍म लग जाते है, तब प्रतिभा पकती है। और कोई व्‍यक्‍ति अनंत जन्‍मोंतक अगर सतत प्रयास करे तो ही!अन्‍यथा कई बार प्रयास छूट जाता है। अंतराल आ जाते है; जो पाया था वह भी खो जाता है। भटक जाता है। फिर-फिर पाना होता है। अगर सतत  प्रयास चलता रहे तो अनंत जन्‍म लगते है,तब समाधि उपलब्‍ध होती है।

      इससे घबड़ा मत जाना, इससे बैठ मत जाना पत्‍थर के किनारे कि अब क्‍या होगा। अनंत जन्‍मोंसे आप चलही रहे हो;घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है। आ गया हो वक्‍त। तो जब कोई कहता है कि एकही कोस दूर; तो हो सकता है कि आपके लिए एकही कोस बचा हो। क्‍योंकि कोई आजकी यात्रा नहीं है; अनंत जन्मोंसे आप चल रहे है। इस क्षणभी ध्‍यान घटित हो सकता है अगर पिछेकी परिपक्‍वता साथ हो, अगर पिछे कुछ किया हो। कोई बीज बोए हों तो फसल इस क्षणभी काटी जा सकती है। इसलिए भयभीत होनेकी कोई जरूरत नहीं है। और न भी पिछे कुछ किया हो तो भी बैठ जानेसे कुछ हल नहीं है। कुछ करें ताकि आगे कुछ हो सकें।
                                                                                                                                   ओशो🌹

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