प्रश्न:- हमारे पाप कर्म और पुण्य कर्म, जिस जन्म के हैं, उसी जन्म में उसका फल मिलना चाहिये। आगे के जन्मों में carry forward (आगे जुड़ जाना) क्यों होते हैं
उत्तर:- आइये पहले हम जानते हैं कि इसका क्या कारण है:-*
सृष्टि के आदि (सतयुग और त्रेतायुग) में आत्मा के कर्म अकर्म होते हैं। जब आत्मा द्वापर में आती है तो कर्म विकर्म बन जाते हैं क्योंकी तब विकार आ जाते हैं। *विकारों के कारण आत्मा का पाप और पुण्य का हिसाब-किताब बनना शुरू हो जाता है।*
पाप और पुण्य द्वापर से हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हैं। कर्म सिद्धांत के अनुसार हम अच्छा करें या बुरा करें, उसका कर्मफल तो जरूर मिलना ही है। या तो इसी जन्म में मिले या फिर अगले जन्म में।
हमारे पाप पुण्य अगले जन्म में carry forward होना स्वाभाविक भी है और प्रकृति का नियम भी है और यही सत्यता भी है।
सृष्टि के आदि (सतयुग और त्रेतायुग) में आत्मा के कर्म अकर्म होते हैं। जब आत्मा द्वापर में आती है तो कर्म विकर्म बन जाते हैं क्योंकी तब विकार आ जाते हैं। *विकारों के कारण आत्मा का पाप और पुण्य का हिसाब-किताब बनना शुरू हो जाता है।*
पाप और पुण्य द्वापर से हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हैं। कर्म सिद्धांत के अनुसार हम अच्छा करें या बुरा करें, उसका कर्मफल तो जरूर मिलना ही है। या तो इसी जन्म में मिले या फिर अगले जन्म में।
हमारे पाप पुण्य अगले जन्म में carry forward होना स्वाभाविक भी है और प्रकृति का नियम भी है और यही सत्यता भी है।
*चलिये अब इस बात को निम्नलिखित कुछ मुख्य बिंदुओं द्वारा समझते हैं:-*
1. हम यह सब जानते हैं कि जो भी कर्म हम करते हैं उसका फल भविष्य में हमारे सामने आता है। जैसे बैंगन और हरी सब्जियों की फसल आने में तीन चार महीने लगते हैं लेकिन आम के पेड को फल देने में कुछ साल और नारियल के पेड़ हो फल देने में उससे भी अधिक समय लगता है। यह प्रकृति का नियम है।
इसी तरह जो कर्म हम करते हैं वह कर्म बीज है। कर्म ने कितनी गहराई तक प्रभाव डाला है उस स्तर से कर्म का फल प्राप्त होता है।
*इसी तरह आत्मा को कुछ कर्मों का फल तुरन्त मिल जाता है। कुछ कर्मो का फल कुछ महीनों में या कुछ वर्षों में वर्तमान शरीर में ही भोग लेती है। इस बीच यदि आत्मा शरीर छोड़ देती है तो अगले किसी भी जन्म में जब उस कर्म के सदृश्य समय और परिस्थिति निर्मित होती है, तब उसे उसका फल प्राप्त होता है।*
इन सारे कर्मों का फल एक जन्म में मिल जाए यह संभव नहीं है क्योंकि जिन कर्मों की प्रधानता होती है उनके अनुसार फल अगले जन्म में मिलता है और जिन कर्मों की अप्रधानता रहती है वह कर्म संचित कर्मों में जाकर जुड़ जाते हैं और तब तक फल नहीं देते हैं जब तक की उन्हीं के सदृश्य देने वाले कर्मों की प्रधानता ना हो जाए।
इसी तरह जो कर्म हम करते हैं वह कर्म बीज है। कर्म ने कितनी गहराई तक प्रभाव डाला है उस स्तर से कर्म का फल प्राप्त होता है।
*इसी तरह आत्मा को कुछ कर्मों का फल तुरन्त मिल जाता है। कुछ कर्मो का फल कुछ महीनों में या कुछ वर्षों में वर्तमान शरीर में ही भोग लेती है। इस बीच यदि आत्मा शरीर छोड़ देती है तो अगले किसी भी जन्म में जब उस कर्म के सदृश्य समय और परिस्थिति निर्मित होती है, तब उसे उसका फल प्राप्त होता है।*
इन सारे कर्मों का फल एक जन्म में मिल जाए यह संभव नहीं है क्योंकि जिन कर्मों की प्रधानता होती है उनके अनुसार फल अगले जन्म में मिलता है और जिन कर्मों की अप्रधानता रहती है वह कर्म संचित कर्मों में जाकर जुड़ जाते हैं और तब तक फल नहीं देते हैं जब तक की उन्हीं के सदृश्य देने वाले कर्मों की प्रधानता ना हो जाए।
2. *अगर आत्मा के कर्मो का हिसाब-किताब सबके साथ एक ही जन्म में पूरा हो जाये तब तो आगे की आत्मा की यात्रा ही समाप्त हो जाये।*
जिन आत्माओं के साथ हमारा प्रेम होता है, हम चाहते हैं की उनके साथ ये हिसाब-किताब जन्मों तक चलता रहे और गलत हिसाब-किताब जल्दी पूरा हो जाये। इसी के चलते दूर व नजदीक के रिश्ते बनते है या दोस्त दुश्मन होते रहते है और ये ही जीवन है।
जिन आत्माओं के साथ हमारा प्रेम होता है, हम चाहते हैं की उनके साथ ये हिसाब-किताब जन्मों तक चलता रहे और गलत हिसाब-किताब जल्दी पूरा हो जाये। इसी के चलते दूर व नजदीक के रिश्ते बनते है या दोस्त दुश्मन होते रहते है और ये ही जीवन है।
3. कर्मफल अगले जन्म में कैरी फॉरवर्ड होने का एक कारण अहंकार भी है। (धनबल+जनबल+तनबल+मनबल) के बढ़ने से, हम न्याय नहीं होने देते। *निचली अदालत से उच्च न्यायालय। फिर उच्चत्तम न्यायालय में उलझाकर, न्याय नहीं होने देते।*
*न्याय मांगने वाला शरीर छोड़ देता है, तो दूसरे जन्म में न्याय मिलता है।* अन्ततः अन्तिम जन्म में तो फाइनल सब का हिसाब होना ही है।
*न्याय मांगने वाला शरीर छोड़ देता है, तो दूसरे जन्म में न्याय मिलता है।* अन्ततः अन्तिम जन्म में तो फाइनल सब का हिसाब होना ही है।
4. वर्तमान समय ऐसा चल रहा है कि यहाँ अकाले मृत्यु होती रहती हैं। इस तरह यदि किसी आत्मा ने इस जन्म में बहुत ही अच्छे पुण्य कर्म किये हैं अर्थात बहुत दुआएँ कमाई है। यानि उसका जमा का खाता इतना अधिक है कि यदि वो पूरे जीवन बैठकर भी खाए तो भी समाप्त नही हो सकता, तो इस बीच माना यदि उस आत्मा की किसी कारण-अकारण से मृत्यु हो जाती है और उसका जमा का खाता शेष बच जाता है अर्थात वह अपना जमा का खाता उसी जन्म में खर्च नही कर पाती, तब इस स्थिति में उसका यह खाता अगले जन्म के लिए carry forward हो जाता है।
ताकि उस आत्मा की मेहनत (कर्मों) का फल उसे अब भी मिल सके। आप ही सोचें कि यदि उस आत्मा द्वारा पिछले जन्म में कमाई गयी पूँजी वहीं रद्द हो जाती है, जबकि उसने अभी खर्च भी नही की है तो क्या यह एक धोखा जैसा नही माना जायेगा?
इस तरह तो फिर विधाता की ओर भी अँगुली उठने लगेगी कि उसने उस आत्मा द्वारा कमाई गयी पूंजी उस आत्मा को नही दी।
इसके विपरीत यदि किसी आत्मा ने अपने जीवन में बहुत ही घिनोने कर्म किये हैं और अभी तक उसे उसके इन दुष्कर्मों का फल नही मिला है क्योंकि अभी उसके खाते में कुछ पिछले पुण्य कर्मों का प्रभाव है और यदि इन पुण्य कर्मों की पूंजी ख़त्म होते ही वह आत्मा शरीर छोड़ देती है।
तो आप ही विचार कीजिये कि उसको उसके इस जीवन के दुष्कर्मों का फल कब मिलेगा? निश्चित ही अब उसके अगले जन्म में ही मिलेगा ना....... क्योंकि यदि नही मिला तो फिर से विधाता की ओर अंगुली उठने लगेगी कि उसने उसके पाप कर्मों का फल दिया ही नही। तो इसलिये हमारे पाप और पुण्य अगले जन्म के लिये carry forward हो जाते हैं।
ताकि उस आत्मा की मेहनत (कर्मों) का फल उसे अब भी मिल सके। आप ही सोचें कि यदि उस आत्मा द्वारा पिछले जन्म में कमाई गयी पूँजी वहीं रद्द हो जाती है, जबकि उसने अभी खर्च भी नही की है तो क्या यह एक धोखा जैसा नही माना जायेगा?
इस तरह तो फिर विधाता की ओर भी अँगुली उठने लगेगी कि उसने उस आत्मा द्वारा कमाई गयी पूंजी उस आत्मा को नही दी।
इसके विपरीत यदि किसी आत्मा ने अपने जीवन में बहुत ही घिनोने कर्म किये हैं और अभी तक उसे उसके इन दुष्कर्मों का फल नही मिला है क्योंकि अभी उसके खाते में कुछ पिछले पुण्य कर्मों का प्रभाव है और यदि इन पुण्य कर्मों की पूंजी ख़त्म होते ही वह आत्मा शरीर छोड़ देती है।
तो आप ही विचार कीजिये कि उसको उसके इस जीवन के दुष्कर्मों का फल कब मिलेगा? निश्चित ही अब उसके अगले जन्म में ही मिलेगा ना....... क्योंकि यदि नही मिला तो फिर से विधाता की ओर अंगुली उठने लगेगी कि उसने उसके पाप कर्मों का फल दिया ही नही। तो इसलिये हमारे पाप और पुण्य अगले जन्म के लिये carry forward हो जाते हैं।
5. *यदि हम ऊपर वर्णित आत्मा के बारे में थोड़ा और सोचे, मान लो अब यह आत्मा अपने पिछले जन्म में बड़े पाप कर्म करके अपने अगले जन्म में प्रवेश पा गयी है* और यह धीरे-धीरे शारिरिक रूप से बड़ी भी हो गयी है और अब इस आत्मा के खाते में सभी पुण्य कर्म खत्म हो गए हैं। बस अब इसके खाते में इसके पिछले जन्म के पाप कर्म ही बचे हैं।
अब उन पाप कर्मों का फल इस आत्मा के आगे अनेक प्रकार से बड़े भयानक रूप से आने लगा है जैसे कि अब वह हर तरफ से समस्याओं के सागर में डूबने लगी है जैसे शरीर की व्याधियों ने उसे घेर लिया है और संबंधों में भी बड़ा टकराव रहने लगा, आर्थिक स्थिति भी बड़ी दयनीय हो गयी है। आदि।
ऐसे में यदि वह आत्मा ये सोचकर कि जीवन में बड़े दुःख, परेशानी है, इन सबसे छूटने के लिये वह सोचे के इससे तो जीवघात (Suicide) ही कर ले तो इन सब परेशानियों से छूट सकते हैं। और ये सब सोचकर वह आत्मा बहुत ही कम समय में जीवघात कर लेती है तो फिर आपका क्या विचार है कि उसके पाप कर्म यही ख़त्म हो जाने चाहिए? कदापि नहीं।
इसलिये प्रकृति का (विधाता का) यह बहुत ही सुंदर और सच्चा नियम है कि हर आत्मा के पाप और पुण्य कर्म अगले जन्म के लिये carry forward हो जाते हैं।
*वरना यदि ऐसा नही होता तो भगवान को भी धोखा देने में कोई देरी नही करता जैसे ही उसके आगे कोई (पाप कर्मों का फल) परिस्तिथियाँ या समस्याएँ आदि आती तो वह इनसे छूटने के लिए तुरंत जीवघात (सुसाइड) कर लिया करता और अपने पाप कर्मों के फल से बच जाता।*
और फिर से अपने अगले जीवन में भी पाप कर्म करने से कभी नही डरता। इसलिये विधाता ने बड़े सोच समझकर, आदि-मध्य-अन्त तीनों को ध्यान में रखते हुए यह बड़ा सुन्दर नियम बनाया है कि हर आत्मा के पाप और पुण्य कर्म उसके अगले जन्म में carry forward हो जायेंगे।
अब उन पाप कर्मों का फल इस आत्मा के आगे अनेक प्रकार से बड़े भयानक रूप से आने लगा है जैसे कि अब वह हर तरफ से समस्याओं के सागर में डूबने लगी है जैसे शरीर की व्याधियों ने उसे घेर लिया है और संबंधों में भी बड़ा टकराव रहने लगा, आर्थिक स्थिति भी बड़ी दयनीय हो गयी है। आदि।
ऐसे में यदि वह आत्मा ये सोचकर कि जीवन में बड़े दुःख, परेशानी है, इन सबसे छूटने के लिये वह सोचे के इससे तो जीवघात (Suicide) ही कर ले तो इन सब परेशानियों से छूट सकते हैं। और ये सब सोचकर वह आत्मा बहुत ही कम समय में जीवघात कर लेती है तो फिर आपका क्या विचार है कि उसके पाप कर्म यही ख़त्म हो जाने चाहिए? कदापि नहीं।
इसलिये प्रकृति का (विधाता का) यह बहुत ही सुंदर और सच्चा नियम है कि हर आत्मा के पाप और पुण्य कर्म अगले जन्म के लिये carry forward हो जाते हैं।
*वरना यदि ऐसा नही होता तो भगवान को भी धोखा देने में कोई देरी नही करता जैसे ही उसके आगे कोई (पाप कर्मों का फल) परिस्तिथियाँ या समस्याएँ आदि आती तो वह इनसे छूटने के लिए तुरंत जीवघात (सुसाइड) कर लिया करता और अपने पाप कर्मों के फल से बच जाता।*
और फिर से अपने अगले जीवन में भी पाप कर्म करने से कभी नही डरता। इसलिये विधाता ने बड़े सोच समझकर, आदि-मध्य-अन्त तीनों को ध्यान में रखते हुए यह बड़ा सुन्दर नियम बनाया है कि हर आत्मा के पाप और पुण्य कर्म उसके अगले जन्म में carry forward हो जायेंगे।
6. *कर्म का अनुपात भी सम्भवतः या सुनिश्चित तौर पर समय या वर्षों में बढ़ता जाता होगा क्योंकि उदाहरण के लिए:-*
सन् 1918 में अगर मुझ आत्मा ने किसी से 100 रुपये का उधार लिया, जो कि उस समय की अच्छी खासी रकम होगी और उसको चुकाए बिना ही शरीर छोड़ दिया होगा तो अभी मैं 100रू ही थोड़े दूँगी, अभी तो ये देकर मुझे कुछ अहसास ही नहीं होगा।
बल्कि मुझे उस रकम से, उस समय मुझे प्राप्त हुए अहसास और अनुभूति को भी तो देना होगा।
और ये शायद अभी का एक लाख रुपये के रूप में पूरा हो। तो कर्मो के पाप पुण्य का हिसाब उसी जन्म मे पूरा होना संभव नहीं है।
सन् 1918 में अगर मुझ आत्मा ने किसी से 100 रुपये का उधार लिया, जो कि उस समय की अच्छी खासी रकम होगी और उसको चुकाए बिना ही शरीर छोड़ दिया होगा तो अभी मैं 100रू ही थोड़े दूँगी, अभी तो ये देकर मुझे कुछ अहसास ही नहीं होगा।
बल्कि मुझे उस रकम से, उस समय मुझे प्राप्त हुए अहसास और अनुभूति को भी तो देना होगा।
और ये शायद अभी का एक लाख रुपये के रूप में पूरा हो। तो कर्मो के पाप पुण्य का हिसाब उसी जन्म मे पूरा होना संभव नहीं है।
7. *हर आत्मा को अपने पाप और पुण्य कर्मों को चुक्तू करने का अवसर अवश्य मिलता है।*
पाप कर्म कभी कोई शारीरिक पीड़ा, दुःख, कारोबार में घाटा आदि प्रकार से चुक्तू होते है। परन्तु देह के भान में लिप्त मनुष्य उसे अपने कर्मों का फल मानता ही नहीं। वह उसके लिए भगवान को वा दूसरों को जिम्मेवार समझता है।
*इस आई हुई पीड़ा को टालने के लिए वह अनेक मार्ग ढूँढता रहता है। वह जप, तप, तीर्थ, दान धर्म, तंत्र-मंत्र, वास्तु दोष, ... के माध्यम से उसे टालता रहता है।*
*इससे कर्म के फल को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है परन्तु हमेशा के लिए समाप्त नही हो सकता है।*
मनुष्य भोगना नहीं चाहता, उसके कर्मों के फल ब्याज सहित संचित हो जाते हैं, जो उसे चुकाने ही पड़ते हैं - चाहे तो इस जन्म में या अगले जन्मों में।
इसलिए कर्मों का खाता, चुक्तु के लिए अगले जन्मों में carry forward होता है।
पाप कर्म कभी कोई शारीरिक पीड़ा, दुःख, कारोबार में घाटा आदि प्रकार से चुक्तू होते है। परन्तु देह के भान में लिप्त मनुष्य उसे अपने कर्मों का फल मानता ही नहीं। वह उसके लिए भगवान को वा दूसरों को जिम्मेवार समझता है।
*इस आई हुई पीड़ा को टालने के लिए वह अनेक मार्ग ढूँढता रहता है। वह जप, तप, तीर्थ, दान धर्म, तंत्र-मंत्र, वास्तु दोष, ... के माध्यम से उसे टालता रहता है।*
*इससे कर्म के फल को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है परन्तु हमेशा के लिए समाप्त नही हो सकता है।*
मनुष्य भोगना नहीं चाहता, उसके कर्मों के फल ब्याज सहित संचित हो जाते हैं, जो उसे चुकाने ही पड़ते हैं - चाहे तो इस जन्म में या अगले जन्मों में।
इसलिए कर्मों का खाता, चुक्तु के लिए अगले जन्मों में carry forward होता है।
8. एक जन्म में कर्म का खाता चुक्तु नही हो सकता। मृत्यु का समय तो निश्चित है तो पुण्य का खाता और पाप का खाता कभी बैलेंस नही होता।
ये हम अकालमृत्यु से समझ सकते हैं। इसलिए हमारे बचे हुए कर्म खाते, अगले जन्म में कैरी फारवर्ड हो जाते हैं।
ये हम अकालमृत्यु से समझ सकते हैं। इसलिए हमारे बचे हुए कर्म खाते, अगले जन्म में कैरी फारवर्ड हो जाते हैं।
*अतः हमें यह याद रखना चाहिए की किसी भी जीवात्मा के कर्म व कर्मफल कदापि समाप्त नहीं होते। ये भी आत्मा के समान अनादि व अनंत हैं।*
*अपने कुछ कर्मों का फल (कर्म की गहराई के स्तर से) आत्मा वर्तमान शरीर में रहकर भोग लेती है। शेष कर्मों का फल ईश्वरीय ज्ञान (गणित) और आत्मिक स्मृति में बने रहते हैं। इन्हीं शेष बचे हुए कर्मों के आधार पर अगले जन्म की प्रालब्ध प्राप्त होती है।*
*ओम शान्ति।*
*अपने कुछ कर्मों का फल (कर्म की गहराई के स्तर से) आत्मा वर्तमान शरीर में रहकर भोग लेती है। शेष कर्मों का फल ईश्वरीय ज्ञान (गणित) और आत्मिक स्मृति में बने रहते हैं। इन्हीं शेष बचे हुए कर्मों के आधार पर अगले जन्म की प्रालब्ध प्राप्त होती है।*
*ओम शान्ति।*
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