"कल्पना- साधना"
Science of imagination कल्पना- शक्ति का विज्ञान
कल्पना से ध्यान में प्रवेश -
कल्पनाशक्ति तुम्हें काव्य और चित्रांकन और कला दे सकती है, और कल्पनाशक्ति तुम्हें पागलपन भी दे सकती है। यह निर्भर करता है कि तुम कैसे इसका प्रयोग करते हो। सारे महान वैज्ञानिक अन्वेषण कल्पनाशक्ति द्वारा पैदा हुए हैं। उन व्यक्तियों द्वारा जन्मे हैं जो कल्पना कर सकते थे, जो असंभव की कल्पना कर सकते थे।
अभी हम हवा में उड़ सकते हैं, अब हम चांद पर जा सकते हैं। ये बहुत गहरी कल्पनाएं रही हैं। सदियों से, हजारों सदियों से आदमी कल्पना कर रहा है कि कैसे उड़े, कैसे चांद पर जायें। हर बच्चे की अभिलाषा होती है कि चांद पर जाये, चांद को पकड़ ले। तो हम उस तक पहुंच गये। कल्पना द्वारा सृजन होता है, लेकिन कल्पना द्वारा विनाश भी आता है।
पतंजलि कहते हैं कि कल्पनाशक्ति मन की तीसरी वृत्ति है। तुम इसका उपयोग गलत ढंग से कर सकते हो, और तब यह तुम्हें नष्ट कर देगा। या तुम इसका उपयोग सही ढंग से कर सकते हो। इसलिए कल्पना आधारित ध्यान की विधियां हैं। वे कल्पना से आरंभ होती हैं, लेकिन धीरे— धीरे कल्पना सूक्ष्म और सूक्ष्म और सूक्ष्मतर होती जाती है। इसके बाद अंत में कल्पना मिट जाती है और तुम सत्य के ऐन सामने होते हो।
ईसाइयों और मुसलमानों के सारे ध्यान मूल स्वप्न से कल्पनाशक्ति के हें। पहले तुम्हें किसी चीज की कल्पना करनी होती है। तुम इसकी कल्पना किये चले जाते हो, और फिर कल्पनाशक्ति के द्वारा तुम आस—पास एक वातावरण रच लेते हो। तुम इसका प्रयोग कर सकते हो। तुम देख सकते हो कि कल्पनाशक्ति के द्वारा क्या संभव होता है। असंभव भी संभव हो जाता है।
यदि तुम सोचते हो कि तुम सुंदर हो, यदि तुम कल्पना करते हो कि तुम सुंदर हो, तो एक अनिवार्य सुंदरता तुम्हरे शरीर में घटित होने लगेगी। जब कभी कोई पुरुष किसी स्त्री से कहता है, 'तुम सुंदर हो' वह स्त्री उसी क्षण बदल जाती है। चाहे पहले वह सुंदर न रही हो। हो सकता है इस क्षण से पहले वह सुंदर न रही हो, घरेलू—सी, 'साधारण हो, लेकिन इस आदमी ने उसे कल्पना दे दी है।
इसलिए वह औरत जो प्रेम पाती है, सुंदर हो जाती है। वह पुरुष जिसे प्रेम मिलता है, ज्यादा सुंदर हो जाता है। ऐसा व्यक्ति जिसे प्रेम न मिला हो, चाहे स्वप्नवान हो, कुस्वप्न हो जाता है। क्योंकि वह कल्पना नहीं कर सकता, जड़ कल्पना नहीं कर सकती। और यदि कल्पनाशक्ति नहीं होती है, तो तुम सिकुड़ जाते हो।
कुए- पश्चिम के बड़े मनोवैज्ञानिकों में एक, उसने केवल कल्पनाशक्ति द्वारा कई-कई रोगों से छुटकारा पाने में लाखों लोगों की मदद की। उसका फार्मूला बड़ा सीधा था। वह कहता कि महसूस करना शुरू करो कि तुम ठीक हो। मन के भीतर दोहराते ही रहो, 'मैं बेहतर से बेहतर होता जा रहा हूं। हर रोज मैं बेहतर हो रहा हूं।’ रात को जब तुम सो जाते हो, तो सोचते जाना, 'मैं स्वस्थ हूं मैं हर पल अधिक स्वस्थ होता जा रहा हूं ' और तुम सुबह होने तक दुनिया के सबसे अधिक स्वस्थ व्यक्ति —हो जाओगे। तो बस ऐसी कल्पना किये चले जाओ।
और उसने लाखों लोगों की मदद की। असाध्य रोग भी ठीक हो गये थे। यह चमत्कार जान पड़ता था, लेकिन ऐसा कुछ था नहीं। यह सिर्फ एक बुनियादी नियम है—तुम्हारा मन तुम्हारी कल्पनाशक्ति के पीछे चलता है।
मनोवैज्ञनिक अब कहते हैं कि यदि तुम बच्चों को कहो कि वे मूढ़ हैं, मंद हैं, तो वे वैसे ही हो जाते हैं। तुम उन्हें मंद होने के लिए धक्का देते हो—उनकी कल्पनाशक्ति को इनके सुझाव दे—दे कर।
और इसे सिद्ध करने के लिए कई प्रयोग किये गये हैं। यदि तुम एक बच्चे से कहते हो, तू मंदबुद्धि है, तू कुछ नहीं कर सकता। तू इस गणित को, इस प्रश्र को हल नहीं कर सकता।’और फिर तुम उसे प्रश्र दो और इसे करने के लिए उससे कहो,तो वह इसे हल नहीं कर पायेगा। तुमने द्वार बंद कर दिया है। लेकिन यदि तुम बच्चे से कहो, 'तुम बहुत बुद्धिमान हो और मैंने तुम जैसा बुद्धिमान कोई दूसरा लड़का नहीं देखा है। अपनी उम्र के लिहाज से तुम बहुत ज्यादा बुद्धिमान हो। तुममें बहुत संभावनाएं दिखती हैं, तुम कोई भी प्रश्र हल कर सकते हो। और फिर तुम उससे प्रश्र हल करने के लिए कहो, वह उसे हल कर पायेगा। तुमने उसे कल्पना दे दी है।
अब तो वैज्ञानिक अन्वेषण हुए हैं और उनके प्रमाण है कि जो भी बात कल्पना में उतर जाती है, वह बीज बन जाती है। कई पीढ़ियों को, कई सदियों को, कई राष्ट्रों को बदल डाला गया है कल्पनाशक्ति का प्रयोग करके।
तुम भारत में, पंजाब में जाकर देख सकते हो। एक बार मैं दिल्ली से मनाली तक की यात्रा कर रहा था। मेरा ड्राइवर एक सिख, एक सरदार था। वह सड़क खतरनाक थी और हमारी कार बहुत बड़ी थी। कई बार ड्राइवर भयभीत हुआ। कई बार कह उठा, ' अब मैं और आगे नहीं जा सकता। हमें पीछे जाना पड़ेगा।' हमने हर तरह से उसे राजी करने की कोशिश की। एक जगह तो वह इतना डर गया कि उसने कार रोक दी और वह बाहर निकल आया और कहने लगा, 'नहीं! अब मैं यहां से आगे नहीं बढ़ सकता।’ वह कहने लगा, 'यह खतरनाक है। हो सकता है यह आपके लिए खतरनाक न हो; आप मरने के लिए तैयार हो सकते हो। लेकिन मैं नहीं हूं। मैंने वापस जाने की ठान ली है।'
संयोगवश मेरा एक मित्र जो सरदार ही था और जो एक बड़े पुलिस अफसर थे, वह भी उसी सड़क पर साथ ही आ रहे थे। मनाली में ध्यान शिविर में भाग लेने के लिए वह मेरे पीछे ही आ रहा था। उसकी कार उसी जगह आ पहुंची, जहां हम रुक गये थे। सो मैंने उससे कहा, 'कुछ करो। यह आदमी तो कार से उतर पड़ा है।'
पुलिस अफसर उस आदमी के पास गया और बोला, 'तुम एक सरदार, एक सिख हो और ऐसे डरपोक? चलो कार में जाओ।’ वह आदमी फौरन कार में आ बैठा। कार चला दी। तो मैंने उससे पूछा, 'क्या हुआ? वह बोला, 'अब उसने मेरे अहंकार को छू दिया है। उसने कहा था,तुम कैसे सरदार हो? सरदार का अर्थ है, लोगों का अगुआ। एक सिख और ऐसा डरपोक? उसने मेरी कल्पना को जगा दिया है। उसने मेरे स्वाभिमान को छू दिया है।’ उस आदमी ने कहा- 'अब हम जा सकते हैं। मुर्दा या जिन्दा हम मनाली पहुंचेंगे।’
और ऐसा केवल एक व्यक्ति के साथ घटित नही हुआ है। यदि तुम पंजाब जाओ, तो तुम देखोगे कि ऐसा लाखों के साथ घटित हुआ है। पंजाब के हिंदुओं और पंजाब के सिखों को जरा देखना। उनका खून एक ही है, वे एक ही प्रजाति के हैं। केवल पांच सौ वर्ष पहले सब हिंदू ही थे। लेकिन एक अलग तरह की प्रजाति, एक अलग तरह की सैनिक जाति पैदा हो गयी। केवल दाढ़ी बढा लेने से, केवल अपना चेहरा भर बदल लेने से, तुम बहादुर नहीं बन सकते। लेकिन तुम बन सकते हो। यह केवल कल्पनाशक्ति की बात है।
नानक ने सिखों को एक कल्पना दे दी कि उनकी एक भिन्न प्रजाति है। उन्होंने उनसे कहा, 'तुम अजेय हो।’ और एक बार उन्होंने इस पर विश्वास कर लिया, एक बार पंजाब में कल्पनाशक्ति कार्य करने लगी तो पांच सौ वर्षों के भीतर,पंजाबी हिंदुओं से बिलकुल भिन्न एक नयी प्रजाति अस्तित्व में आ गयी। भारत में उनसे ज्यादो बहादुर कोई नहीं हैं। इन दो विश्वयुद्धों से प्रमाणित हो गया है कि सारी पृथ्वी पर सिखों की कोई तुलना नहीं। वे निडरता से लड सकते है।
क्या घटित हो गया है? इतना ही हुआ है कि उनकी कल्पनाशक्ति ने उनके आस—पास एक वातावरण निर्मित कर दिया है। वे अनुभव करते हैं कि केवल सिख हो जाने से ही वे भिन्न हो जाते हैं। कल्पना काम करती है। यह तुम्हें बहादुर आदमी बना सकती है, यह तुम्हें डरपोक बना सकती है।
ओशो
पतंजलि योग सूत्र, भाग - 1, प्रवचन - 3
..…...….............................................
कल्पना ध्यान प्रयोग में कैसे उतरें -
हमारा शरीर हमारे विचारों से प्रभावित होकर सतत क्रियाशील रहता है। यानी मन में जो भाव और विचार उठते हैं उनके अनुसार क्रिया करता रहता है। यदि भावुक क्षणों में गहरे दुःख का भाव उठेगा तो आंखें आंसुओं से भर जाएंगी और शरीर रोने लगेगा।
और यदि दुश्मन का विचार आता है तो हमारा शरीर कल्पना में ही उसे धूंसे मारता है और हम सचमुच में ही मुठ्ठी बांध कर हवा में मारने लगते हैं जबकि दुश्मन यहां है ही नहीं?
रात जब हम गहरी नींद में होते हैं तब भी हमरा शरीर स्वप्न से प्रभावित होता रहता है, जैसा स्वप्न होता है वैसी प्रतिक्रिया देता है। यदि कामवासना वाला स्वप्न हो तो उर्जा काम- केंद्र पर भेज देता है और कामवासना में उतरने की तैयारी करने लगता है जबकि यक एक कल्पना ही है जो स्वप्न बन गई है।
यदि हमारा शरीर हमारे मन में उठे हुए भाव और विचारों से उठी कल्पनाओं, और स्वप्नों का स्वतः ही, बिना कहे ही अचेतन रूप से अनुगमन करने लगता है तो क्यों न हम जागते हुए इसे सचेतन रूप से ध्यान की कल्पना करते हुए कहें कि "मुझे ध्यान में प्रवेश करना है... मुझे ध्यान में प्रवेश करना है... मुझे ध्यान में प्रवेश करना है...।"
तो जो कल्पना हम इसे देंगे यह वैसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगेगा।
ध्यान के बाद, भोजन के बाद, रात सोते समय, जब भी विश्राम करने के लिए हम लेटें, शरीर को ढीला छोड़ दें ताकि श्वास नाभि तक स्वतः जाने लगे, नाभि तक श्वास जाएगी तो हमारा शरीर जल्दी ही विश्राम में जाने लगेगा।
मन में एक ही कल्पना हो "मुझे ध्यान में प्रवेश करना है... मुझे ध्यान में प्रवेश करना है... मुझे ध्यान में प्रवेश करना है...। "
यह कल्पना लेकर यदि हम रात को सोने जाते हैं तो यह कल्पना, संकल्प शक्ति को बढ़ाने में बहुत सहयोगी होगी। अभी हम रात को सोते समय कल्पना में सोचते हैं कि "सुबह मार्निग वाॅक पर जाना है" यह कल्पना तो काम करती है और सुबह मार्निग वाॅक पर जाने के लिए जल्दी जगा भी देती है, लेकिन संकल्प की कमी से हम आलस्य से भरकर "आज तो नींद आ रही है, कल देखेंगे...।" कहते हुए पुनः सो जाते हैं।
अतः यह ध्यान में प्रवेश करने वाली कल्पना संकल्प को जगाने में सहयोगी होगी। और यदि संकल्प जगना शुरू हो जाता है तो फिर हम कोई काम कल पर नहीं टाल सकेंगे।
कल्पना कैसे काम करती है?
यदि हम यह कल्पना लेकर विश्राम में, नींद में जाते हैं कि "मुझे ध्यान में प्रवेश करना है... मुझे ध्यान में प्रवेश करना है... मुझे ध्यान में प्रवेश करना है...!" तो हमारे भीतर कोई विचार नहीं होते हैं क्योंकि हमारा साक्षी जो विचारों में व्यस्त था, वह विचारों से मुक्त हो कल्पना करने लगता है और जब विचारों की जगह कल्पना आ जाती है तो कल्पना सीधे अचेतन में प्रवेश कर जाती है और संकल्प बनने लगती है।
कल्पना करते हुए जब हमारा नींद में प्रवेश होता है तो सामान्य नींद में और इस कल्पना वाली नींद में बहुत फर्क हो जाता है। सामान्य नींद में, वहां स्वप्न में साक्षी खो जाता है। यहां पर साक्षी जागा हुआ कल्पना कर रहा होता है 'कि मुझे ध्यान में प्रवेश करना है।' और जब साक्षी जागा हुआ हो और हमारा शरीर नींद में प्रवेश करता है तो स्वप्न विलीन हो जाएंगे क्योंकि स्वप्न देखने वाला तो साक्षी होकर ध्यान में प्रवेश करने की कल्पना कर रहा है? स्वप्न देखेगा कौन? और शरीर विश्राम में होगा, श्वास गहरी चलेगी तो शरीर तो नींद में जाने लगेगा और स्वप्न विलीन हो जाएंगे। और स्वप्न विलीन हो जाएंगे तो शरीर कोई प्रतिक्रिया नहीं करेगा,शांत और शिथिल हो जाएगा। शरीर शांत और शिथिल हो जाएगा तो मन भी शांत और शिथिल हो जाएगा यानी विचार भी शिथिल हो जाएंगे और हमारा निर्विचार यानी ध्यान में प्रवेश हो जाएगा। शरीर सोया रहेगा और हम भीतर जागे हुए चौथे तल पर रहेंगे जहां विचार नहीं होंगें, विचारों की अनुपस्थिति में एक सन्नाटा होगा जिसे अनहद नाद कहते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Please Do not Enter Any Spam Link in the Comment Box.
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई स्पैम लिंक न डालें।