*श्रीरामचरित्रमानस के सात काण्ड मानव की उन्नति के सात सोपान:-*
*१) बालकाण्ड –*
बालक प्रभु को प्रिय है क्योंकि उसमेँ छल, कपट, नहीं होता विद्या, धन एवं प्रतिष्ठा बढ़ने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है, उसी को भगवान प्राप्त होते है। बालक जैसा निर्दोष निर्विकारी दृष्टि रखने पर ही राम के स्वरुप को पहचान सकते है। जीवन मेँ सरलता का आगमन संयम एवं ब्रह्मचर्य से होता है। बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से जीवन मेँ सरलता आती है बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगा। जहाँ युद्ध, वैर, ईर्ष्या नहीँ है, वही अयोध्या है।
*२) अयोध्याकाण्ड –*
यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार बनाता है। जब जीव भक्ति रुपी सरयू नदी के तट पर हमेशा निवास करता है, तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है। भक्ति अर्थात् प्रेम, अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता है। राम का भरत प्रेम, राम का सौतेली माता से प्रेम आदि, सब इसी काण्ड मेँ है। राम की निर्विकारिता इसी मेँ दिखाई देती है। अयोध्याकाण्ड का पाठ करने से परिवार मेँ प्रेम बढ़ता है। उसके घर मेँ लड़ाई झगड़े नहीँ होते। उसका घर अयोध्या बनता है। कलह का मूल कारण धन एवं प्रतिष्ठा है। अयोध्याकाण्ड का फल निर्वैरता है। सबसे पहले अपने घर की ही सभी प्राणियोँ मेँ भगवद् भाव रखना चाहिए।
*३) अरण्यकाण्ड –*
यह निर्वासन प्रदान करता है। इसका मनन करने से वासना नष्ट होगी। बिना अरण्यवास (जंगल) के जीवन मेँ दिव्यता नहीँ आती। रामचन्द्र राजा होकर भी सीता के साथ वनवास किया। वनवास मनुष्य हृदय को कोमल बनाता है। तप द्वारा ही कामरुपी रावण का बध होगा। इसमेँ सूपर्णखाँ (मोह) एवं शबरी (भक्ति) दोनों ही है। भगवान राम सन्देश देते हैँ कि मोह को त्यागकर भक्ति को अपनाओं।
*४) किष्किन्धाकाण्ड –*
जब मनुष्य निर्विकार एवं निर्वैर होगा तभी जीव की ईश्वर से मैत्री होगी। इसमें सुग्रीव और राम अर्थात् जीव और ईश्वर की मैत्री का वर्णन है। जब जीव सुग्रीव की भाँति हनुमान अर्थात् ब्रह्मचर्य का आश्रय लेगा तभी उसे राम मिलेँगे। जिसका कण्ठ सुन्दर है वही सुग्रीव है। कण्ठ की शोभा आभूषण से नहीं बल्कि राम नाम का जप करने से है। जिसका कण्ठ सुन्दर है, उसी की मित्रता राम से होती है किन्तु उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी पड़ेगी।
*५) सुन्दरकाण्ड –*
जब जीव की मैत्री राम से हो जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है। इस काण्ड मेँ हनुमान को सीता के दर्शन होते है। सीताजी पराभक्ति है, जिसका जीवन सुन्दर होता है उसे ही पराभक्ति के दर्शन होते है। संसार समुद्र पार करने वाले को पराभक्ति सीता के दर्शन होते है। ब्रह्मचर्य एवं रामनाम का आश्रय लेने वाला संसार सागर को पार करता है। संसार सागर को पार करते समय मार्ग मेँ सुरसा बाधा डालने आ जाती है, अच्छे रस ही सुरसा है, नये नये रस की वासना रखने वाली जीभ ही सुरसा है। संसार सागर पार करने की कामना रखने वाले को जीभ को वश में रखना होगा। जहाँ पराभक्ति सीता है वहाँ शोक नहीं रहता, जहाँ सीता है वहाँ अशोक वन है।
*६) लंकाकाण्ड –*
जीवन भक्तिपूर्ण होने पर राक्षसों का संहार होता है काम क्रोधादि ही राक्षस हैँ। जो इन्हेँ मार सकता है, वही काल को भी मार सकता है। जिसे काम मारता है उसे काल भी मारता है लंका शब्द के अक्षरों को इधर उधर करने पर होगा कालं काल सभी को मारता है किन्तु हनुमान जी काल को भी मार देते हैँ। क्योँकि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैँ पराभक्ति का दर्शन करते है।
*७) उत्तरकाण्ड –*
इस काण्ड मेँ काकभुसुण्डि एवं गरुड़ संवाद को बार बार पढ़ना चाहिए। इसमेँ सब कुछ है। जब तक राक्षस, काल का विनाश नहीँ होगा तब तक उत्तरकाण्ड में प्रवेश नहीं मिलेगा, इसमेँ भक्ति की कथा है। भक्त कौन है? जो भगवान से एक क्षण भी अलग नहीं हो सकता वही भक्त है पूर्वार्ध में जो काम रुपी रावण को मारता है उसी का उत्तरकाण्ड सुन्दर बनता है, वृद्धावस्था मे राज्य करता है। जब जीवन के पूर्वार्ध में युवावस्था मे काम को मारने का प्रयत्न होगा तभी उत्तरार्ध – उत्तरकाण्ड सुधर पायेगा। अतः जीवन को सुधारने का प्रयत्न युवावस्था से ही करना चाहिए।
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