शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

शास्त्रों के अनुसार मित्रता वाले नक्षत्र, शत्रुता वाले नक्षत्र एवं ग्रहों से सम्बन्ध

शास्त्रों के अनुसार किस नक्षत्र की किस नक्षत्र से मित्रता तथा किस नक्षत्र से शत्रुता एवं किस से सम भाव रहता है?

 

शास्त्रों में नक्षत्रों के आपसी संबंधों के आधार पर उनके बीच मित्रता, शत्रुता और समभाव का विवरण इस प्रकार है:

1. मित्रता वाले नक्षत्र

कई नक्षत्रों के बीच मित्रता होती है, जो उनकी ऊर्जाओं का एक-दूसरे के साथ सकारात्मक तालमेल दर्शाती है। इसका लाभ जातक को सहयोगी व सकारात्मक गुणों के रूप में मिल सकता है। जैसे:

  • अश्विनी और मघा में मित्रता होती है क्योंकि दोनों का स्वामी केतु होता है।
  • भरणी और पूर्वा फाल्गुनी में मित्रता होती है क्योंकि दोनों का स्वामी शुक्र है।
  • रोहिणी और हस्त में मित्रता होती है क्योंकि दोनों का स्वामी चंद्र है।

2. शत्रुता वाले नक्षत्र

कई नक्षत्रों के बीच शत्रुता होती है, जो उनके बीच की ऊर्जा असमानता को दर्शाती है। इससे जातक को कुछ नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। जैसे:

  • कृतिका और पूर्वाषाढ़ा में शत्रुता होती है क्योंकि दोनों का स्वामी अलग-अलग ग्रह (सूर्य और शुक्र) हैं और दोनों की ऊर्जाएं विरोधाभासी होती हैं।
  • आद्रा और ज्येष्ठा में शत्रुता होती है क्योंकि आद्रा का स्वामी राहु है और ज्येष्ठा का स्वामी बुध होता है, जिनके प्रभाव एक-दूसरे से मेल नहीं खाते।

3. समभाव वाले नक्षत्र

कुछ नक्षत्र ऐसे भी होते हैं जिनके बीच समभाव होता है। यह दर्शाता है कि ये न तो पूरी तरह से मित्र हैं और न ही शत्रु, बल्कि एक समन्वय की स्थिति होती है। जैसे:

  • मूल और श्रवण के बीच समभाव होता है, क्योंकि इनके स्वामी क्रमशः केतु और चंद्र हैं, जिनमें न तो मित्रता होती है और न ही शत्रुता।
  • उत्तराषाढ़ा और धनिष्ठा के बीच समभाव होता है क्योंकि इनके स्वामी सूर्य और मंगल होते हैं, जो आपस में तटस्थ भाव रखते हैं।

यह नक्षत्रों की मित्रता, शत्रुता और समभाव का विवरण मूल रूप से उनके स्वामी ग्रहों के गुण, तत्व और ऊर्जाओं पर आधारित होता है। ज्योतिष में इन संबंधों का विश्लेषण करने से जातक की जन्म कुंडली में नक्षत्रों के प्रभाव का सही आकलन किया जा सकता है।

 शास्त्रों के अनुसार किस नक्षत्र की किस ग्रह से मित्रता तथा किस ग्रह से शत्रुता एवं किस से सम भाव रहता है?

 

शास्त्रों के अनुसार नक्षत्रों की मित्रता, शत्रुता और समभाव का निर्धारण मुख्य रूप से उनके स्वामी ग्रहों के आधार पर किया गया है। हर नक्षत्र का एक स्वामी ग्रह होता है, और इस ग्रह के अन्य ग्रहों के साथ संबंध के आधार पर यह तय होता है कि वह नक्षत्र किस ग्रह के साथ मित्र, शत्रु या समभाव रखता है।

नक्षत्रों का ग्रहों के साथ संबंध

  1. अश्विनी, मघा, मूल (स्वामी: केतु)

    • मित्र ग्रह: शुक्र, बुध, सूर्य
    • शत्रु ग्रह: चंद्र
    • सम ग्रह: शनि, मंगल, गुरु
  2. भरणी, पूर्व फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा (स्वामी: शुक्र)

    • मित्र ग्रह: शनि, बुध, केतु
    • शत्रु ग्रह: सूर्य, चंद्र
    • सम ग्रह: मंगल, गुरु
  3. कृतिका, उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा (स्वामी: सूर्य)

    • मित्र ग्रह: मंगल, गुरु, चंद्र
    • शत्रु ग्रह: शुक्र, शनि
    • सम ग्रह: बुध, केतु
  4. रोहिणी, हस्त, श्रवण (स्वामी: चंद्र)

    • मित्र ग्रह: सूर्य, बुध
    • शत्रु ग्रह: केतु, शुक्र
    • सम ग्रह: शनि, मंगल, गुरु
  5. मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा (स्वामी: मंगल)

    • मित्र ग्रह: सूर्य, चंद्र, गुरु
    • शत्रु ग्रह: बुध
    • सम ग्रह: शुक्र, शनि, केतु
  6. आद्रा, स्वाति, शतभिषा (स्वामी: राहु)

    • मित्र ग्रह: शनि, शुक्र, बुध
    • शत्रु ग्रह: सूर्य, चंद्र
    • सम ग्रह: मंगल, गुरु
  7. पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वभाद्रपद (स्वामी: गुरु)

    • मित्र ग्रह: सूर्य, चंद्र, मंगल
    • शत्रु ग्रह: शुक्र, बुध
    • सम ग्रह: शनि, केतु
  8. पुष्य, अनूराधा, उत्तराभाद्रपद (स्वामी: शनि)

    • मित्र ग्रह: बुध, शुक्र, राहु
    • शत्रु ग्रह: सूर्य, चंद्र, मंगल
    • सम ग्रह: गुरु, केतु
  9. अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती (स्वामी: बुध)

    • मित्र ग्रह: शुक्र, राहु
    • शत्रु ग्रह: चंद्र
    • सम ग्रह: सूर्य, मंगल, गुरु, शनि, केतु

इस प्रकार, नक्षत्रों का ग्रहों के साथ संबंध उनके स्वामी ग्रह और अन्य ग्रहों के आपसी तालमेल पर आधारित होता है। इस जानकारी का उपयोग जन्म कुंडली में नक्षत्रों के प्रभाव का विश्लेषण करने में किया जा सकता है, ताकि जातक को उचित फल, शुभ-अशुभ प्रभाव, और उपाय सुझाए जा सकें।

 

शास्त्रों के अनुसार किस ग्रह की किस ग्रह से मित्रता तथा किस ग्रह से शत्रुता एवं किस से सम भाव रहता है?

 

शास्त्रों में ग्रहों के बीच के आपसी संबंधों का विश्लेषण उनकी ऊर्जा, गुण और तत्वों के आधार पर किया गया है। ग्रहों की आपसी मित्रता, शत्रुता और समभाव का इस प्रकार वर्णन किया गया है:

ग्रहों के आपसी संबंध

  1. सूर्य

    • मित्र ग्रह: चंद्र, मंगल, गुरु
    • शत्रु ग्रह: शुक्र, शनि
    • सम ग्रह: बुध
  2. चंद्र

    • मित्र ग्रह: सूर्य, बुध
    • शत्रु ग्रह: केतु, शुक्र
    • सम ग्रह: मंगल, गुरु, शनि
  3. मंगल

    • मित्र ग्रह: सूर्य, चंद्र, गुरु
    • शत्रु ग्रह: बुध
    • सम ग्रह: शुक्र, शनि
  4. बुध

    • मित्र ग्रह: सूर्य, शुक्र
    • शत्रु ग्रह: चंद्र
    • सम ग्रह: मंगल, गुरु, शनि
  5. गुरु (बृहस्पति)

    • मित्र ग्रह: सूर्य, चंद्र, मंगल
    • शत्रु ग्रह: शुक्र, बुध
    • सम ग्रह: शनि
  6. शुक्र

    • मित्र ग्रह: बुध, शनि
    • शत्रु ग्रह: सूर्य, चंद्र
    • सम ग्रह: मंगल, गुरु
  7. शनि

    • मित्र ग्रह: शुक्र, बुध
    • शत्रु ग्रह: सूर्य, चंद्र, मंगल
    • सम ग्रह: गुरु
  8. राहु

    • मित्र ग्रह: शुक्र, बुध, शनि
    • शत्रु ग्रह: सूर्य, चंद्र
    • सम ग्रह: मंगल, गुरु
  9. केतु

    • मित्र ग्रह: मंगल
    • शत्रु ग्रह: चंद्र
    • सम ग्रह: सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र, शनि

विवरण

  • मित्र ग्रह: जिन ग्रहों के साथ मित्रता होती है, उनसे संबंधित ऊर्जा का आदान-प्रदान सहजता और सहयोगात्मक होता है। ये ग्रह एक-दूसरे के सकारात्मक गुणों को बढ़ावा देते हैं।

  • शत्रु ग्रह: जिन ग्रहों के साथ शत्रुता होती है, उनसे संबंधित ऊर्जाओं का विरोधात्मक प्रभाव होता है। ऐसे ग्रहों का एक साथ होना कुंडली में तनावपूर्ण प्रभाव पैदा कर सकता है।

  • सम ग्रह: जिन ग्रहों के साथ समभाव होता है, उनसे न तो कोई विशेष मित्रता होती है और न ही शत्रुता। ये तटस्थ स्थिति में रहते हैं और इनका प्रभाव अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर बदलता है।

ग्रहों के बीच के इन संबंधों का उपयोग ज्योतिष में जन्म कुंडली के विश्लेषण और जातक के जीवन में आने वाले फलों के निर्धारण में किया जाता है।

 

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