11 दिसम्बर 1931 को ओशो का जन्म हुआ। सातवें
दशक के मध्य में रजनीश नाम के एक व्यक्ति ने
लोगों के कानों में धमाके के साथ प्रवेश किया। चर्चा खुब
होती थी लेकिन फुसफुसाहटों के साथ
लेकिन धीरे- धीरे रजनीश के
नाम का इतना शौर मचा कि कोई उनके नाम से कोई
भी अनजान न रहा। उनके बारे में कुछ ऐसी बातें जो कम
ही लोग जानते हैं…..
ओशो जूते नहीं पहनते थे उन्हें चप्पल
पहनना पसंद थी। समय
की पाबंदी उनके दिमाग में
भरी रहती थी। वे
मनुस्मृति को दुनिया की सबसे कुरुप पुस्तक मानते थे।
कहीं से
भी थोड़ी सी बदबू आ
रही हो तो उनके लिए सोना असंभव था। वैसे चाहे
ओशो कितने ही पुरुषों द्वारा सेक्स गुरु कहे जाते रहे
हों लेकिन
ओशो को कभी किसी स्त्री ने
सेक्स गुरु नहीं कहा।
खूबसूरत पेनों का उपयोग करना और फोटों खिंचवाना उन्हें बेहद
पसंद था। अपने जीवन में उन्होंने अनगिनत फोटो सेशन
दिए। ओशो के विरोधी तक यही मानते हैं
कि ओशो जैसा तार्किक विद्वान सदियों में होता है, लेकिन वे तर्क के
सख्त विरोधी रहे। उनका पूरा नाम स्कूल में
रजनीश चंद्र मोहन जैन मिलता है। लेकिन मिडिल
स्कूल में उन्होंने खुद के नाम से जैन शब्द हटा दिया। हाईस्कुल
में आने पर मोहन हटाकर केवल रजनीश चंद्र लिखने
लगे।
ओशो ने जब लिखना आरंभ किया, तब वे बाएं हाथ से लिखते थे।
मस्तो बाबा वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने रजनीश
को भगवान कहकर संबोधित किया। ओशो को केनेडा ड्राय सोडा बहुत
पसंद था।आशो को धूल और गंध से
एलर्जी थी। वे
अपनी नानी को मां और
मां को भाभी कहकर पुकारते थे। सुबह उठने पर चाय
पीना उनकी कमजोरी
थी।
-ओशो की पढ़ी हुई लगभग साढ़े
तीन हजार किताबों में विभिन्न प्रकार के हस्ताक्षर
और उनके द्वारा बनाई गई रंगीन पेंटिग्स
भी हैं जिन्हें ओशो पुस्तक के अंत में बनाते थे। इन
पेंटिंग्स
की पहली प्रदर्शनी मई
2012 में भोपाल के स्वराज भवन में लगाई गई थी।
ओशो को पढऩे का इतना शोक था कि वे चोर बाजार से किताबें
खरीदा करते थे।
वे घर में बनी चाट, नमकीन व मिठाई के
दिवाने थे। उन्हें देशी घी से
बनी चीजें बहुत पसंद थी।
काजू विशेषकर नमकीन काजू के वे इतने
शौकीन थे कि उनकी जेब हमेशा इससे
भरी रहती थी। आलू पराठा,
मेथी पकोड़े व
कचौड़ी जैसी मसालेदार चीजें
उन्हें पसंद आती थी। खाने
की उनकी थाली
चमचमाती हुई
चांदी की होती थी।
बड़ी सी और उसमें दस
चांदी की कटोरियां और सोने
की चम्मच होती थी।
शुरू में उनके पास रेलिस ब्रांड की एक लेडिज साइकल
हुआ करती थी। जिसे वे
इतनी चमकाकर रखते थे कि हमेशा लगता था कि यह
अभी-अभी आई है।
ओशो की हर पुस्तक पर छपा होता है सर्वाधिकार
सुरक्षित जबकि वे कभी सुरक्षा के पक्ष में
नहीं रहे। माता-पिता व भाईयों के अलावा ओशो का परिवार
उनका विरोध ही करता था।
भारत में ओशो का एक तिहाई समय रेलगाडिय़ों में सफर करते हुए
बीता। ओशो संगीत के शौकिन थे। पंडित
हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरी वादन के वे प्रशंसक थे।
उन्हें नूरजहां का गाया गीत” वो जो हममे तुममे करार
था, तुम्हे याद हो कि न याद हो”बेहद पसंद था।उसे आरंभ में वे
तकरीबन रोज सुना करते थे।
19 जनवरी 1990
संध्या 5 बजे
ओशो आश्रम,पुणे
भारत
उनसे पूंछा गया कि सब सन्यासियों को क्या कहा जाय ?
उन्होंने कहा कि- “सबसे कहना कि अमेरिका में शार्लट, नार्थ केरोलाइना की जेल में रहने के बाद से उनका शरीर जर्जर होता चला गया।
ओक्लाहोमा जेल में उन्हें थेलियम जहर दिया गया और रेडियेशन से गुजारा गया,जिसका कि चिकित्सा विशेषज्ञों से संपर्क करने पर बहुत बाद में पता चल पाया,इस तरह जहर दिया गया जिसका पीछे कोई सबूत न छूटे।
मेरा जर्जर शरीर अमरीकी सरकार के इसाई मतान्धो की कारस्तानी है। अपनी शारीरिक पीड़ा को मैंने स्वयं तक ही रखा,लेकिन इस शरीर में रहकर कार्य करना अब घोर कष्टप्रद एवं असंभव हो गया है।”
इतना कहकर वे लेटकर आराम करने लगे। उस समय जयेश वहाँ नहीं था।
अमृतो जयेश के पास भागा-भागा गया और उसे बताया कि ओशो स्पष्टतः शरीर छोड़ रहे है। ओशो ने जब अम्रतो को पुकारा तब अम्रतो ने ओशो को बताया,कि जयेश भी आया हुआ है तो उन्होंने जयेश को भी भीतर लाने को कहा। जब दोनों उनके पास बिस्तर पर बैठ गये तब उन्होंने कहा,
“मेरे संबंध में कभी भी अतीत काल में बात मत करना। मेरे प्रताड़ित शरीर से मुक्त होकर मेरी उपस्थिति कई गुना बढ़ जायेगी। मेरे लोगो को याद दिलाना कि वे अब मुझे और भी अधिक महसूस कर सकेंगे-मेरे लोगो को तत्क्षण पता चल जायेगा।”
अम्रतो उनका हाथ थामे हुये था और यह सुनकर वह रोने लगा। उन्होंने उसकी ओर कड़ी नजर से देखा।
वे बोले-“नहीं,नहीं यह ढंग नहीं है ?”यह सुनकर उसने तत्क्षण रोना बंद कर दिया तब उन्होंने बड़े सुंदर ढंग से मुस्कराते हुये उसे स्नेह से भरकर निहारा।
फिर उन्होंने कहा मैं चाहता हूं कि मेरे काम का विस्तार जारी रहे। अब मैं अपना शरीर छोड़ रहा हूं। अब बहुत से लोग आयेंगे,और बहुत-बहुत से लोगो का रस जागेगा। और उनका कार्य इतने अविश्वसनीय रूप से बढ़ेगा जिसकी तुम सब कल्पना भी नहीं कर सकते। मैं तुम सबको अपना स्वप्न सौंपता हूं।”
उनके हाथ की नब्ज अम्रतो देख रहा था जो आहिस्ता आहिस्ता विलीन होती गई। जब वह बहुत मुश्किल से नब्ज को महसूस कर पा रहा था तो उसने कहा
“ओशो ! मैं समझता हूं
This is it ।(अब समय आ गया)”
उन्होंने केवल धीमे से सिर हिलाकर हामी भरी और चिरकाल के लिये अपने कमलनयनों को बंद कर लिया।
❤️❤️
My Love Osho
ओशो के 20 सूत्र वाक्य, जो आपका जीवन बदल देंगे :
1. जिसके पास जितना कम ज्ञान होगा, वह अपने ज्ञान के प्रति उतना ही हठी होगा.
2. जीवन को हर संभावित तरीके से महसूस करो– अच्छा-बुरा, मीठा-कड़वा, अंधेरा-रोशनीभरा. जीवन के हर द्वैतभाव को अनुभव करो. अनुभव से घबराओ मत, क्योंकि तुम जितना अनुभवी बनोगे, उतना ही परिपक्व होते जाओगे.
3. प्रेम में दूसरा व्यक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, वासना में तुम महत्वपूर्ण होते हो.
4. सत्य बाहर स्थित कोई चीज नहीं कि जिसे खोजा जाना है. वह भीतर है, उसे अनुभव किया जाना है.
5. दोस्ती सबसे शुद्ध प्रेम है. वह प्रेम का सबसे उच्चतम स्वरूप है, जहां कोई मांग नहीं होती. कोई शर्त नहीं होती, सिर्फ देने का आनंद होता है.
6. इस संसार में हर व्यक्ति अपनी खास नियति लेकर आता है. उसे कुछ पूरा करना होता है, कोई संदेश देना होता है, कोई काम खत्म करना होता है. तुम यहां ऐसे ही दुर्घटनास्वरूप नहीं आ गए- तुम्हारे यहां होने का कोई अर्थ है. तुम्हारे यहां होने का एक उद्देश्य है. ब्रह्मांड तुम्हारे जरिए कुछ करना चाहता है.
7. अगर तुम एक फूल को प्यार करते हो, तो उसे तोड़ो मत. क्योंकि अगर तुम उसे तोड़ दोगे, तो वह मर जाएगा और वह नहीं रहेगा, जिसे तुम प्यार करते हो. इसीलिए अगर तुम फूल को प्यार करते हो, तो उसे खिला हुआ ही रहने दो. प्रेम किसी पर आधिपत्य नहीं है. प्रेम सराहना है.
8. इस दुनिया में सबसे ज्यादा डर इस बात से लगता है कि दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं. जैसे ही तुम भीड़ से डरना बंद कर देते हो, तुम भेड़ नहीं रह जाते. एक शेर बन जाते हो. तुम्हारे हृदय में एक जोरदार दहाड़ पैदा होती है. मुक्ति की दहाड़.
9. जीवन अपने को नासमझी में दोहराता चला जाता है – जब तक कि तुम सचेत नहीं होते, जागरूक नहीं होते, वह एक पहिए कि तरह खुद को दोहराते रहता है.
10. होओ, बनने की कोशिश मत करो. होने और बनने – इन दोनों शब्दों के बीच तुम्हारा पूरा जीवन समाया हुआ है. होना प्रबोधन है, जागरण है, बनना अज्ञानता है.
11. यथार्थवादी बनो, चमत्कार की योजना बनाओ.
12. दुनिया में लाखों लोग दुखी हैं, क्योंकि वे प्रेम पाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें प्रेम देना नहीं आता. और प्रेम एकालाप के रूप में नहीं हो सकता; वह दो लोगों के बीच संवाद है, एक लय से भरा हुआ संवाद.
13. कुछ बनने का विचार छोड़ दो, क्योंकि तुम पहले ही एक महान कृति हो. तुम इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकते. तुम्हें बस यही बात समझनी है, यही जानना और अनुभव करना है.
14. साहस अज्ञात के साथ एक प्रेम संबंध है.
15. एक आरामपूर्ण और सुविधाजनक जीवन वास्तविक जीवन नहीं है- जितना ज्यादा आरामपूर्ण, उतना कम जीवंत. सबसे ज्यादा आरामपूर्ण जीवन कब्र में होता है.
16. अपने दिमाग से बाहर निकलो और अपने दिल में प्रवेश करो. सोचो कम, महसूस ज्यादा करो.
17. जैसे अंधेरा प्रकाश न होने से जन्म लेता है, वैसे ही अहंकार जागरुकता के अभाव में जीवित रहता है.
18. प्रेम लक्ष्य है, जीवन एक यात्रा.
19. सवाल यह नहीं कि मृत्यु के बाद जीवन का अस्तित्व है या नहीं, सवाल यह है कि क्या तुम मृत्यु से पहले जीवित हो?
20. तुम्हें अगर किसी को नुकसान पहुंचाना हो, तभी ताकत की जरूरत है. वरना तो प्रेम पर्याप्त है, करुणा पर्याप्त है.
महोदय, कृपया ध्यान दें,
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