शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

मानव सृष्टि संचालित करने हेतु भगवान ने जो विधिविधान बनाए हैँ, वही धर्म है The religion

The woman
*धर्म* religion
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मनुष्य का सच्चा मित्र धर्म ही है। जब कोई साथ नही देता तब धर्म साथ देता है । धनसंपत्ति नष्ट हो जाए कोई चिन्ता नही किन्तु धर्म को नष्ट न होने देना चाहिए ।सभी सुखो का साधन धन मानना अज्ञानता है , धर्म ही सुख का सच्चा साधन है । मानव सृष्टि संचालित करने हेतु भगवान ने जो विधिविधान बनाए हैँ, वही धर्म है ।

धर्म का आरम्भ सत्य से होकर आत्मसमर्पण पर समाप्त होता है -

1. सत्य ही ईश्वर का स्वरुप है,धर्म की गति सूक्ष्म है ।सत्य वह साधन है जिसका आश्रय ग्रहण करने वाला सत्यनारायण मे  लीन होता है ।जिससे सर्वकल्याण हो सके ऐसा विवेकयुक्त वचन ही सत्य है ।
"सत्य भूतहितम् प्रोक्तम् "।

2.दयाभाव -जहाँ तक हो सके दूसरो भला करना चाहिए ।
"तुलसी दया न छाँड़िए जब लग घट मेँ प्रान ।"

3. पवित्रता - पावित्र्य सभी का धर्म है । आजकल शरीर बहुत शुद्ध किया जाता है किन्तु मन नहीँ ।मन एवं चित्त शुद्धि परमावश्यक है ।मृत्यु पश्चात मन साथ जाता है अतः इसे शुद्ध रखने का हर संभव प्रयास होना चाहिए ।

4. तपश्चर्या- विचार , वाणी , वर्तन को शुद्ध रखना ही तपश्चर्या है।

5. तितिक्षा - भगवद्कृपा से जो दुःख मिले उसे सहन करते हुए शत्रु के प्रति भी सद्भाव बनाए रखना ही तितिक्षा है ।

6. अहिँसा -मन,बचन,एवं काया से किसी को दुःखी न करना ही अहिंसा है ।

7. ब्रह्मचर्य -किसी स्त्री या पुरुष का भी चिँतन न करना ही सच्चा ब्रह्मचर्य है।कामभाव के गीत श्रवण करना भी ब्रह्मचर्य भंग ही है । ब्रह्मचर्य तो मन को स्थिर करने का साधन है ।

8. त्याग - कुछ भी त्याग करना धर्म है ।

9. स्वाध्याय - सद्ग्रन्थ का चिँतन , मनन ही स्वाध्याय है । जो सभी का धर्म है ।
10. आर्जवम् - स्वभाव को सरल रखना ही सभी का धर्म है ।

11. संतोष - ईश्वर ने जो और जितना दिया है ,उसी मेँ संतुष्ट रहने वाला ही श्रीमंत एवं असंतुष्ट रहने वाला दरिद्र है ।

12. समदृष्टि - सभी के प्रति समदृष्टि से देखना सभी का धर्म है। 

13. मौन - बिना कारण व्यर्थ कुछ भी न बोलना ही मौन है जो सभी का धर्म है । मौन से मन को शांति मिलती है एवं मानसिक पापो का शमन होता है ।

14. आत्म चिँतन - प्रतिदिन चिँतन करेँ कि मैँ शरीर नहीँ,बल्कि परामात्मा का अंश हूँ । जन्म के पूर्व न कोई रिश्तेदार था और न मृत्यु के बाद रहेगा । इन दोनो के मध्य ही रिश्तेदार होते हैँ । आत्मस्वरुप को बराबर जानने वाला ही आनन्द पा सकता है ।

15.पंच महाभूतोँ मेँ ईश्वर की भावना करना, ईश्वर का अनुभव करना सभी का धर्म है । 

16. कृष्णकथा का श्रवण करना भी सभी का धर्म है ।

17. कृष्ण कीर्तन , स्मरण , सेवा , पूजा , नमस्कार और उनके प्रति दास्य सख्य और आत्मसमर्पण ये सभी का धर्म है ।
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