*ओशो*
"जब तुम
संन्यास लेने आये थे तो मेरी शर्त थी कि मैं
तुम्हारे पास जो कुछ है, उसे छीन लूँगा । तुम्हें
कोरा कागज़ बना दूंगा, ताकि उस पर नई
इबारत उतरे ! आज मैं तुमसे स्वयं को भी
छीन रहा हूँ, क्योंकि तुमने उसे धंधा बनाना
शुरू कर दिया है ।
अपने
स्वभाव की खोज और उसके विकास के
बजाय तुम एक जैसी आदतों में भेड़-बकरी बन
गए! तुम्हारा वश चले तो तुम मुझे गणेश और
हनुमान बना डालो या शिवलिंग की तरह मेरे
नाम के ओशोलिंग खड़े करने लग जाओ !
जिन
मूर्खताओं को जलाने मैं आया हूँ, तुम मेरे
नाम से वही मूर्खताएं मेरे रहते करने लगे हो । आरती उतारने लगे हो ।
तो आगे तो तुम दुनिया भर के गधों से पैसे
लेकर बुद्धत्व की डिग्रियां भी बेचने लगोगे ।
मेरे वास्तविक प्यारे तो इनेगिने ही हैं, जिन्हें
पहचानना तुम्हारे वश में नहीं है । अब मैँ
'ओशो' नहीं हूँ, सिर्फ रजनीश हूँ। चक्र पूरा
हुआ !
मेरे असली प्यारे
सच्चाई और सजगता के मार्ग पर मिलेंगे
और उन्हें मेरे नाम और मेरे चिन्हों से
पहचानना मुश्किल हो जाएगा ।
वही मेरा और
अपना नवनीत काम करेंगे और मेरे नाम से संप्रदाय बनाने
वालों को
ललकारेंगे । वहीँ से नई लपटे उठेंगी।
"बाहरी तौर पर 'ओशो' शब्द का इस्तेमाल
तो नहीं रुकेगा, लेकिन 'ओशो' नाम से चलने
वाले को अभी जागना पड़ेगा ।
- एक विद्रोही फुल-
*"ओशो"*
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