रविवार, 3 अक्तूबर 2021

जीवन की सात मर्यादाओं का भंग न करो〰️〰️🔸〰️〰️🔸🔸〰️〰️🔸〰️〰️

जीवन की सात मर्यादाओं का भंग न करो
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क्रान्तदर्शी विद्वानों ने व्यक्ति को पाप से बचाने के लिए सात मर्यादाओं का निर्माण किया है उन मर्यादाओं का उल्लंघन किसी को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए यथा―

(१)स्तेय👉 चोरी न करना, मालिक की दृष्टि बचाकर उसकी वस्तु का अपने लिये उपयोग करना यह साधारण चोरी है। उसकी उपस्थिति में बलपूर्वक छीन लेना 'लूट' कहाता है, जो व्यापारी पूरे पैसे लेकर कम तोलता है, कम नापता है, बढ़िया पैसे माल के लेकर घटिया देता है, वस्तुओं में मिलावट करके बेचता है, पूरा वेतन लेकर कम काम करता है, जो अधिकारी या नौकर घूंस (रिश्वत) लेता है, जो आवश्यकता से अधिक संग्रह करता है वह चोर, डाकू, लुटेरा है। सब प्रकार की चोरी, डाका, लूट से बचना ही अस्तेय है। अर्थात् प्रत्येक प्रकार की शारीरिक , मानसिक चोरी का त्याग अस्तेय है।

(२)तल्पारोहण त्याग👉 किसी भी पराई स्त्री से भोग करना तल्पारोहण कहलाता है। परस्त्री सम्पर्क का दोष दर्शाते हुए नीतिकारों ने कहा है:―

बधो बन्धो धनभ्रंशस्तापः शोक कुलक्षयः ।
आयासः कलहो मृत्युर्लभ्यन्ते पर दारकै ।।

भावार्थ👉 पराई स्त्री से सहवास करने वालों को कतल होना, कैद में पड़ना, धन का नाश, सन्ताप प्राप्ति, शोकाकुलता, कुल का नाश, थकान का आना, कलह और मृत्यु से दो चार होना पड़ता है।अतः इससे बचना बहुत आवश्यक है।_

मनु महाराज ने भी कहा है―

*न हीदृशमनायुष्यं लोके किञ्चन विद्यते ।*
*यादृशं पुरुषस्येह परदारोपसेवनम् ।।*
―(मनु० ४।१३४)

अर्थात्👉 इस संसार में मनुष्य की आयु को क्षीण करनेवाला और कोई वैसा कार्य नहीं है, जैसा दूसरे की स्त्री का सेवन करना, [ अतः इसे सर्वथा त्याग देना चाहिए । ]

(३)भ्रूण हत्या का त्याग👉 अर्थात् गर्भपात से बचना अथवा अण्डे, माँस, आदि का न खाना, किसी कवि का वचन है

पेट भर सकती हैं तेरा जब सिर्फ दो रोटियाँ ।
किस लिये फिर ढूंढता है बे-जुबां की बोटियां ।
गर हिरस है तो हिरस का पेट भर सकता नहीं ।
दुनिया का सब कुछ मिले तो तृप्त कर सकता नहीं।

(४)मादक वस्तुओं का त्याग👉 सुरापान, भंग, चरस, अफीम,तम्बाकू, बीड़ी,सिगरेट आदि बुद्धिनाशक वस्तुओं का त्याग, नशीली वस्तुओं का प्रयोग बड़ा हानिकारक है। क्योंकि नशीले पदार्थों के सेवन से बुद्धि विकृत होकर चित्त में भ्रान्ति हो जाती है, चित्त के भ्रान्त होने पर मनुष्य पाप करता है, पाप करके दुर्गति को प्राप्त होता है।

(५) दुष्कृत कर्मों का त्याग:👉 बुरे कर्मों की बार-बार जीवन में आवृत्ति नहीं करनी चाहिए, बुरे कर्मों से सदा बचना चाहिए,

भलाई कर चलो जग में तुम्हारा भी भला होगा ।तुम्हारे कर्म का लेखा किसी दिन बरमला होगा ।

(६) ब्रह्महत्या से बचना:👉 अर्थात् भक्ति का त्याग न करना, भक्ति तीन प्रकार की होती है―जाति भक्ति, देश भक्ति,प्रभु भक्ति अथवा किसी ईश्वरभक्त, वेदपाठी सदाचारी विद्वान् की हत्या न करना या उसे किसी प्रकार से कष्ट न पहुँचाना।

(७) पाप करके उसे न छिपाना👉 पाप छिपाने से बढ़ता और प्रकट करने से घटता है। इसलिये बुद्धिमान को पाप करके छिपाना नहीं चाहिए। 

जो उपरोक्त मर्यादाओं का पालन करता है वही श्रेष्ठ पुरुष है। उस पर पाप का कभी भी आक्रमण नहीं होता, वह सदा सुख की और अग्रसर होता है। वेद का सन्देश इस प्रकार है–

स॒प्त म॒र्यादा॑: क॒वय॑स्ततक्षु॒स्तासा॒मेका॒मिद॒भ्यं॑हु॒रो गा॑त् । आ॒योर्ह॑ स्क॒म्भ उ॑प॒मस्य॑ नी॒ळे प॒थां वि॑स॒र्गे ध॒रुणे॑षु तस्थौ ॥* - ऋग्वेद १०.५.६

भावार्थ👉 क्रान्तदर्शी विद्वानों ने सात मर्यादाएं बनाई हैं उनमें से एक को भी जो तोड़ता है वह पापी है। निश्चय से दीर्घायु की इच्छा वाले जितेन्द्रिय उत्पादक ईश्वर के आश्रय में रहते हुए और कुमार्गों का त्याग करके उत्तम लोकों को प्राप्त करते हैं उत्तम गति पाते है
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वन में मर्यादाएं (Boundaries) एक ऐसा नैतिक ढांचा प्रदान करती हैं, जो व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास को सुनिश्चित करता है। सात प्रमुख मर्यादाएं जिन्हें भंग नहीं करना चाहिए, और उनका कारण तथा समाज पर प्रभाव नीचे दिया गया है:


1. सत्य की मर्यादा

भंग नहीं करनी चाहिए क्योंकि:

  • सत्य जीवन का आधार है। झूठ बोलने से संबंधों में दरार आती है और आत्मसम्मान घटता है।
    समाज पर प्रभाव:
  • सत्य की मर्यादा तोड़ने से अविश्वास और अराजकता फैलती है। समाज में न्याय और ईमानदारी कमजोर होती है।

2. धर्म और कर्तव्य की मर्यादा

भंग नहीं करनी चाहिए क्योंकि:

  • धर्म का अर्थ "कर्तव्य" है। अपने कर्तव्यों का पालन न करना व्यक्ति और समाज दोनों के लिए हानिकारक है।
    समाज पर प्रभाव:
  • जब लोग अपने धर्म (कर्तव्य) का पालन नहीं करते, तो समाज में अव्यवस्था और तनाव बढ़ता है।

3. परिवार और रिश्तों की मर्यादा

भंग नहीं करनी चाहिए क्योंकि:

  • पारिवारिक संबंध आपसी विश्वास और प्रेम पर आधारित होते हैं। इनकी मर्यादा भंग करने से परिवार टूट सकता है।
    समाज पर प्रभाव:
  • परिवार समाज की इकाई है। यदि परिवार कमजोर होगा, तो समाज में अस्थिरता बढ़ेगी।

4. अहिंसा की मर्यादा

भंग नहीं करनी चाहिए क्योंकि:

  • हिंसा से न केवल दूसरों को नुकसान पहुंचता है, बल्कि खुद की मानसिक शांति भी नष्ट होती है।
    समाज पर प्रभाव:
  • हिंसा और आक्रामकता से समाज में डर, असुरक्षा, और असंतोष बढ़ता है।

5. धन और संपत्ति की मर्यादा

भंग नहीं करनी चाहिए क्योंकि:

  • अपनी आवश्यकताओं के बाहर दूसरों का धन या संपत्ति लेना लालच और अनैतिकता को बढ़ावा देता है।
    समाज पर प्रभाव:
  • चोरी, भ्रष्टाचार, और असमानता बढ़ती है, जिससे समाज में असंतोष और संघर्ष उत्पन्न होता है।

6. आत्म-संयम और इच्छाओं की मर्यादा

भंग नहीं करनी चाहिए क्योंकि:

  • इच्छाओं की अति मन और शरीर को कमजोर बनाती है। आत्म-संयम से जीवन में संतुलन बना रहता है।
    समाज पर प्रभाव:
  • अगर हर व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण खो दे, तो संसाधनों की कमी और असंतुलन बढ़ेगा।

7. प्रकृति और पर्यावरण की मर्यादा

भंग नहीं करनी चाहिए क्योंकि:

  • प्रकृति के संसाधनों का अति दोहन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है।
    समाज पर प्रभाव:
  • पर्यावरणीय असंतुलन से जलवायु परिवर्तन, आपदाएं, और संसाधनों की कमी होती है। यह समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करता है।

समाज में इन मर्यादाओं का महत्व

  1. सामाजिक स्थिरता: मर्यादाओं का पालन करने से समाज में संतुलन और स्थिरता बनी रहती है।
  2. विश्वास और सहयोग: सत्य, रिश्तों और कर्तव्यों की मर्यादा समाज में विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देती है।
  3. आत्म-विकास: मर्यादा में रहकर जीवन जीने से व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होता है।
  4. भविष्य की सुरक्षा: प्रकृति और संपत्ति की मर्यादा समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करती है।

 हिंदू धर्मशास्त्रों में जीवन की सात मर्यादाओं का वर्णन किया गया है, जिन्हें भंग नहीं करना चाहिए:

सात मर्यादाएं

1. सत्य: सत्य बोलना और सच्चाई का पालन करना।
2. निष्ठा: अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा और समर्पण।
3. धैर्य: धैर्य और संयम के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना।
4. तप: आत्म-नियंत्रण और तपस्या के माध्यम से आत्म-विकास।
5. दान: दान और परोपकार के माध्यम से समाज की सेवा।
6. सेवा: समाज की सेवा और जरूरतमंदों की मदद।
7. संयम: इंद्रियों को नियंत्रित करना और संयमित जीवन जीना।

इन मर्यादाओं को भंग नहीं करने के कारण

इन मर्यादाओं को भंग नहीं करने से व्यक्तिगत और सामाजिक लाभ होते हैं:

1. आत्म-सम्मान: मर्यादाओं का पालन करने से आत्म-सम्मान बढ़ता है।
2. सामाजिक प्रतिष्ठा: समाज में आदर और प्रतिष्ठा मिलती है।
3. आंतरिक शांति: मर्यादाओं का पालन करने से आंतरिक शांति और संतुष्टि मिलती है।
4. सामाजिक स्थिरता: मर्यादाओं का पालन करने से सामाजिक स्थिरता और सामंजस्य बढ़ता है।
5. आध्यात्मिक विकास: मर्यादाओं का पालन करने से आध्यात्मिक विकास होता है।

समाज में प्रभाव

इन मर्यादाओं को भंग नहीं करने से समाज में कई सकारात्मक परिणाम होते हैं:

1. सामाजिक एकता: मर्यादाओं का पालन करने से सामाजिक एकता और सामंजस्य बढ़ता है।
2. नैतिकता: समाज में नैतिकता और सदाचार का प्रसार होता है।
3. शांति और स्थिरता: मर्यादाओं का पालन करने से शांति और स्थिरता बढ़ती है।
4. आध्यात्मिक विकास: समाज में आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
5. उत्तम समाज: मर्यादाओं का पालन करने से उत्तम समाज का निर्माण होता है।

निष्कर्ष

जीवन की मर्यादाएं न केवल व्यक्ति को एक सकारात्मक जीवन जीने में मदद करती हैं, बल्कि समाज को मजबूत और स्थिर बनाती हैं। जब ये मर्यादाएं भंग होती हैं, तो समाज में अव्यवस्था, तनाव, और अन्याय बढ़ता है। इसलिए, मर्यादाओं का पालन करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।

 

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