जो भगवान् शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं नमस्कार करता हूँ । नमस्कार करता हूँ ।
#शिवकवचम्
।। अमोघ शिव कवच ।।
शिव कवच अत्यंत दुर्लभ परन्तु चमत्कारिक है, इसका प्रभाव अमोघ है। बड़ी से बड़ी मुसीबतों को समाप्त करने में सिद्धहस्त यह शिव कवच परम-कल्याणकारी है।
अथः विनियोग:
अस्य श्री शिव कवच स्त्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टुप छंद:, श्री सदाशिव रुद्रो देवता, ह्रीं शक्ति:, रं कीलकम, श्रीं ह्रीं क्लीं बीजं, श्री सदाशिव प्रीत्यर्थे शिवकवच स्त्रोत्र जपे विनियोग:।
अथः न्यास: ( पहले सभी मंत्रो को बोलकर क्रम से करन्यास करे , तदुपरांत इन्ही मंत्रो से अंगन्यास करे )
आपने जो "अमोघ शिव कवच" का पाठ साझा किया है, वह अत्यंत प्रभावशाली और दुर्लभ स्तोत्र है। इसे पढ़ने और समझने के लिए विस्तारपूर्वक प्रत्येक भाग का अर्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
1. अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्
अर्थ: जो भगवान शिव उज्जैन (अवन्तिकापुरी) में संतजनों को मोक्ष प्रदान करने और अकाल मृत्यु से रक्षा करने के लिए प्रकट हुए हैं, उन महाकाल को मैं प्रणाम करता हूँ।
2. विनियोग
श्लोक: अस्य श्री शिव कवच स्तोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि:... शिवकवच स्त्रोत्र जपे विनियोगः।
अर्थ: इस स्तोत्र का ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद अनुष्टुप है, देवता श्री सदाशिव हैं। यह कवच शिवजी की कृपा प्राप्ति और संकटों से बचाव के लिए उपयोग होता है।
3. करन्यास और अंगन्यास
यह प्रक्रिया शिव के मंत्रों को शरीर के विभिन्न अंगों और उंगलियों पर स्थापित करने के लिए है।
करन्यास: उंगलियों और हथेलियों पर मंत्र का जाप।
अंगन्यास: शरीर के अंगों (हृदय, शिखा, नेत्र आदि) पर मंत्र का जाप।
अर्थ: इन क्रियाओं से साधक अपने शरीर को शिवमय बनाता है और उनकी ऊर्जा को अपने भीतर स्थापित करता है।
4. दिग्बन्धन
श्लोक: ॐ भूर्भुवः स्वः।
अर्थ: यह मंत्र दिशाओं की सुरक्षा के लिए है, जिससे साधक को किसी भी प्रकार की बाधा या संकट का सामना न करना पड़े।
अर्थ: शिवजी का ध्यान कर्पूर के समान उज्ज्वल, करुणामय, संसार के सार, सर्पों की माला धारण करने वाले, और माता पार्वती के साथ हृदय में सदा विराजमान रूप में किया जाता है।
6. शिव कवच
श्लोक: ॐ नमो भगवते सदा-शिवाय। त्र्यम्बक सदा-शिव।
अर्थ: मैं उन सदा शिव को प्रणाम करता हूँ, जो त्र्यम्बक (तीन नेत्रों वाले), सृष्टि के कर्ता, पालक और संहारक हैं।
अर्थ: शिवजी समस्त तत्वों के अधिष्ठाता, आनंदमय, समस्त मंत्रों और यंत्रों के स्वरूप हैं। वे रुद्रावतार, नीलकंठ, गंगा धारण करने वाले, और सर्पों के आभूषण धारण करने वाले हैं।
8. शिव की कृपा का प्रभाव
श्लोक: सकल-लोकैक-कर्त्रे, सकल-लोकैक-भर्त्रे...
अर्थ: शिव समस्त लोकों के कर्ता, पालक और संहारक हैं। वे समस्त वेदों के सार, गुरु, और साक्षी हैं। उनकी कृपा से सारे भय, रोग और बाधाएं दूर होती हैं।
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