1.धर्म किसे कहते हैं ?
धर्मम् तु साक्षात भगवत प्राणितम ।
भगवान की आज्ञानुसार आचरण को धर्म कहते हैं । जिन कर्मों के करने से उन्नति हो और सच्चा सुख मिले उन कर्मों के आचरण को धर्म कहते हैं ।
2. धर्म का पालन करना क्यों आवश्यक है?
धर्म का पालन करने से ही मनुष्य उन्नति कर सकता है और सच्चा सुख पा सकता है, अगले जन्मों में क्रमशः उन्नति करते हुए मुक्ति को प्राप्त करता है। इसलिए धर्म का पालन करना आवश्यक है।
3. धर्म का पालन नहीं करने से क्या हानि है ?
धर्म का पालन नहीं करने से मनुष्य दिन पर दिन पतित होता जाता है, उसका जीवन दुखी हो जाता है और अगले जन्मों में पशु या कीड़े मकोडों का जन्म पाता है । धर्म का पालन नहीं करने से यही हानि है।
4. धर्म के क्या लक्षण हैं ?
धर्म के दस लक्षण मनु महाराज ने बताए हैं -धृति,क्षमा,दम,अस्तेय,शौच, इन्द्रिय निग्रह ,धी,विद्या, सत्य और अक्रोध ।
5. धृति किसे कह्ते हैं ?
कष्ट आने पर नहीं घबड़ाना, धीरज रखना , शांत मन से अपने कार्य करते जाना धृति कहलाता है।
6. क्षमा किसे कहते हैं ?
किसी से अनजाने में अपराध हो जाय तो बुरा न मानना, क्रोध न करना, उससे बदले की भावना न रखना क्षमा कहलाता है।
7. दम किसे कहते हैं ?
सुख-दुख में अपने मन को वश में रखना दम कहलाता है।
8. अस्तेय किसे कहते हैं ?
दूसरे की चीज बिना उसकी जानकारी के नहीं लेना अस्तेय कहलाता है।चोरी न करना अस्तेय कहलाता है।
9. शौच किसे कहते हैं ?
घर-बाहर,शरीर,मन और वाणी को साफ रखना शौच कहलाता है।
10. इन्द्रिय निग्रह किसे कहते हैं ?
अपनी इन्द्रियों को वश में रखने को इन्द्रिय-निग्रह कहते हैं ।
11. धी किसे कहते हैं ?
धी का अर्थ होता है-बुद्धि ।अपनी बुद्धि का विकास करना चाहिए। बुद्धि से अच्छी बातें ही सोचनी चाहिए।
12. विद्या किसे कहते हैं ?
विद्या कहते है ज्ञान को। मनुष्य को सत्य ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। असत्य ज्ञान को छोड़ देना चाहिए।
13. सत्य किसे कहते हैं ?
सच्चिदानंद श्रीकृष्ण ही पूर्ण-पुरुषोत्तम भगवान हें
सत्य-हरि का नाम सत्य
चेतन-आत्मा के रूप में
शरीर को जीवित
आनन्द- सुखदाता हें ।
उमा कहुँ मेँ अनुभव अपना
सत्य श्रीहरि जगत सब सपना ।।
14. अक्रोध का क्या अर्थ होता है ?
क्रोध नहीं करने को अक्रोध कहते हैं । किसी भी कारण से मन मे क्षोभ नहीं उत्पन्न होने देना चाहिए।
15. धर्म का बोध किस प्रकार होगा?
धर्म का बोध प्रमाणिक धर्म ग्रन्थों एवं संतों की शरणागति से होगा।
नोट:-धर्म सभी मनुष्यों के लिए लाभकारी एवं उपयोगी होता है जबकि मज़हब कुछ मनुष्यों के समूह के लिये उपयोगी और अन्य के लिये अनुपयोगी एवं अहितकारी होता है। और जो वेदों में वर्णित है और जो गीता, , रामायण और वेदानुकूल आचरण है वही धर्म है।
संकलित--/arun shastri जबलपुर।
प्रश्न नही वेदादिधर्मशास्त्र का अनुशरण करें।।
मनुस्मृति - अध्याय 8/15-17 एवं 6/92
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मों न हन्तव्यो मा न धर्मो हतोऽवधीत्।।
अर्थ ~ जो मनुष्य धर्म का हनन करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है और जो धर्म की रक्षा करता है,उसकी धर्म भी रक्षा करता है। अतः हमारे द्वारा नष्ट किया हुआ धर्म कभी हमें मार न डाले, इस भय से कभी भी धर्म का हनन अर्थात् त्याग न करना चाहिये।
वृषो हि भगवान् धर्मस्तस्य यः कुरुते ह्यलम्।
वृषलं तं विदुर्देवास्तस्माद् धर्म न लोपयेत्।।
अर्थ ~ सुख की वर्षा करने वाला जो सब ऐश्वर्य का दाता धर्म है, उसका लोप करने वाले को विद्वान लोग नीच समझते हैं, इसलिये किसी भी मनुष्य को धर्म का लोप न करना चाहिये।
एक एव सुहृद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति यः।
शरीरेण समं नाशं सर्वमन्यद्धि गच्छति।।
अर्थ ~ एक धर्म ही मनुष्य का ऐसा मित्र है जो मरने पर भी उसके साथ जाता है, अन्य सब सम्बन्ध तो शरीर के नाश होते ही समाप्त हो जाते हैं।
जिस धर्म की मनु महाराज इतनी प्रशंसा कर रहे हैं,उस धर्म के लक्षण निम्न बतलाये हैं --
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्।।
अर्थ ~ धैर्य, क्षमाशीलता, मन की वृत्तियों को रोकना, चोरी न करना, पवित्रता, इंद्रियों को अपने वश में रखना, शास्त्र का ज्ञान, आत्म-ज्ञान, सत्यभाषण और क्रोध को अपने वश में रखना ये धर्म के दस लक्षण हैं अर्थात् इन दस बातों को जीवन में धारण कर लेना ही मनुष्य के धार्मिक होने का प्रमाण है।
हमारा जीवन भी एक महाभारत ही है ।
जीवन अंतर्द्वंदो से भरा हुआ है ये महाभारत आज हर व्यक्ति के साथ हो रहा है ।
मानव स्वार्थ ऒर व्यक्तिगत लाभ के लिए कभी कभी पलायन , झूठ और विकल्प ढूढँता रहता है । तब गीता की जरूरत पड़ती है ।
असत्य , अधर्म का नाश ही भगवान का मूल उद्देश्य था और है परमात्मा का एक नाम सत्यनारायण है । सम्पूर्ण भगवत गीता और सारे पुराण केवल सत्यम परम् धीमहि का ही ज्ञान और शिक्षा देते है । हिन्दू धर्म ह
िंसावादी नही है पर धर्म की स्थापना के लिए हिंसा से भी नही कतराता हैं ।
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l"
(अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है) (और धर्म रक्षार्थ हिंसा भी) (उसी प्रकार श्रेष्ठ है)
इसलिए भगवान ने प्रथम प्रयास किया युद्ध न हो , फिर युद्ध मे सब आ चुके हैं सारी तैयारियां हो चुकी हो और मैदान में खड़े हैं फिर मन से गिर जाना, सामर्थ्य होने के बाद भी पलायन करना ये कायरता बताया गीता के माध्यम से जीवन मे द्वंद सबके आता है वैसे अर्जुन को द्वंद हुआ , करू या न करू ? उसे दूर किया गीता के माध्यम से । ये द्वंद दूर करना परम्(अति) आवश्यक था वे ऐसा न करते तो पापियों के अत्याचार बढ़ जाते और पृथ्वी आततायियों से हल्की न होती । इसलिए धर्म की स्थापना के लिए कभी कभी अधर्मिक दिखने वाले कार्य भी भगवान कर लेते है क्योकि लोहे को काटने के लिए लोहा ही चाहिए । बस यह विवेक हमे भी अपनाना होगा । मतलब प्रथम प्रयास शांति का , दूसरे प्रयास में क्रांति हो ।
हमने हमारे अँवतारोँ की बात भुलाई है मानी नहीं हैं इसलिये आर्य सँसकृति अनेक राष्टो्ँ से मिट गई है हम अकल से अन्धै होकर सब दोष भाग्य
व परमात्मा पर लगा देते है!!
सनातनधर्मविजयते।।
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